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कुछ ऐसे थे जाने-माने पत्रकार व लेखक शांतनु गुहा रे...
शांतनु गुहा रे जैसे व्यक्ति के बारे में कोई कैसे लिख सकता है? वह बहुत ही बड़े दिल वाले व्यक्ति थे। वह अपने हर काम के प्रति जुनूनी थे।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 months ago
स्वाति भट्टाचार्य ।।
शांतनु गुहा रे जैसे व्यक्ति के बारे में कोई कैसे लिख सकता है? वह बहुत ही बड़े दिल वाले व्यक्ति थे। वह अपने हर काम के प्रति जुनूनी थे। वह हर पार्टी की जान थे और एक ऐसे व्यक्ति थे, जो हर किसी की बहुत परवाह करते थे। वह अब हम सभी के जीवन में एक बड़ा खालीपन छोड़ गए हैं।
शांतनु से मैं पहली बार 20 साल पहले मिली थी, जब मैं दिल्ली में एक पीआर प्रोफेशनल के तौर पर अपनी पहली नौकरी कर रही थी। मैं उनसे यह पूछने के लिए मिलने गयी थी कि क्या वह मेरे एक क्लाइंट्स पर स्टोरी करेंगे, जो उस समय मुसीबत में था। मैं झिझकते हुए और दिल में घबराहट लेकर उनके पास गयी थी। हालांकि अधिकांश अन्य सीनियर मीडिया प्रोफेशनल शायद मिलने से भी इनकार कर दें, लेकिन मुझे हैरानी हुई कि शांतनु ने मुझसे स्वागतपूर्वक मुलाकात की और न केवल वो स्टोरी सुनी, बल्कि मेरे विचारों को भी जाना। उन्होंने स्टोरी के हर एंगल पर चर्चा की। यहां तक कि जब हम वहां थे, तो उन्होंने मुझे एक कप चाय भी पिलाई। उस दिन से लेकर अब तक और पिछले शनिवार को जब हमने एक साथ रात्रि भोज किया था, मैं आने वाले इस दुर्भाग्यपूर्ण दिन से अनजान थी। मैं हमेशा सलाह के लिए, उनकी राय के लिए और जब भी मेरा दिन खराब होता था और मुझे हंसी की जरूरत होती थी, उनके पास जाती थी।
उन्होंने उत्साह के साथ काम किया और भी अधिक उत्साह के साथ पार्टियां कीं और जीवन को एक राजा की तरह जिया। उन्होंने जो कुछ भी किया वह असाधारण था। जिन रिसर्च स्टोरीज पर उन्होंने गहराई से शोध किया और लिखा, उसे अधिकांश पत्रकार नहीं छू पाए। जिन पुस्तकों को लिखने में उन्होंने महीनों बिताए, जिससे उन्हें पुरस्कार मिले, युवा पत्रकारों को सलाह देने में उन्होंने जो घंटे बिताए, जो कुछ भी उन्होंने किया, उसने एक गहरा अमिट "शांतनु" छोड़ दिया।
अपने परिवार और दोस्तों के प्रति उनका समर्पण और अगाध प्रेम मुझे हमेशा अभिभूत कर देता था। उनका जीवन उनकी पत्नी और बेटी के इर्द-गिर्द घूमता था। उनके लिए और कुछ मायने नहीं रखता था। मुझे एक अवसर याद है जब उन्होंने मुझे अपनी पत्नी केया से यह कहते हुए सुना था कि मेरे पास 'लाल पार' साड़ी (लाल बॉर्डर वाली विशिष्ट बंगाली साड़ी) नहीं है और मैं एक खरीदने की सोच रही हूं। अगली सुबह उनके ड्राइवर ने मेरे घर एक पैकेट पहुंचाया। मैंने इसे खोला तो मुझे सबसे खूबसूरत 'लाल पार' साड़ी मिली। ऐसी थी उनकी विचारशीलता और उदारता।
जो कोई भी शांतनु को जानता था, वह हर साल उनके घर पर होने वाली भव्य दुर्गा पूजा को जानता था। हममें से कई लोगों के लिए वह पूजा का मुख्य आकर्षण थे। हर चीज को विस्तार से करने पर उनका फोकस होता था। वह यह भी देखते थे कि जो भी दुर्गा पूजा से जाए उसे भोग दिया जाए। यदि आप दोपहर के भोजन तक नहीं रुक सकते, तो वह पैकेट पैक करके सैकड़ों घरों तक पहुंचाते थे। अब पूजा कभी भी वैसी नहीं होगी। दरअसल, जिंदगी कभी भी एक जैसी नहीं रहती है। जो चीज मुझे सबसे ज्यादा याद आएगी, वह है दिन के बीच में उनकी कॉल और उनके शब्द "बॉस एकटू कॉफी होबे ना?"
(लेखक एक सीनियर मार्केटिंग कम्युनिकेशन प्रोफेशनल हैं)
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