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टाटा ग्रुप का मालिक अब टाटा नहीं! पढ़िए इस सप्ताह का 'हिसाब-किताब'

टाटा ग्रुप की 30 बड़ी कंपनी है। नमक से लेकर सॉफ़्टवेयर बनाता है, चाय बनाता है, कारें बनाता है, हवाई जहाज़ चलाता है। स्टील बनाता है, बिजली बनाता है। ये सब कंपनियां अपना कारोबार ख़ुद चलाती है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 3 hours from now

मिलिंद खांडेकर, मैनेजिंग एडिटर, तक चैनल्स, टीवी टुडे नेटवर्क।

आम बोलचाल की भाषा में हम कहते हैं कि मुकेश अंबानी रिलायंस के मालिक हैं या गौतम अदाणी अपने ग्रुप के मालिक हैं। ये दोनों परिवार अपने अपने बिज़नेस के 100% मालिक नहीं है। अंबानी परिवार के पास रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के क़रीब 49% शेयर है जबकि अदाणी परिवार के पास अपनी कंपनियों के 60% से लेकर 72% तक शेयर है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि टाटा परिवार के पास टाटा सन्स के 3% शेयर है बल्कि उनसे ज़्यादा शेयर तो मिस्री परिवार के पास हैं। हिसाब किताब में समझेंगे कि टाटा परिवार बिना शेयरों के कैसे ग्रुप को कंट्रोल करता है।  

टाटा ग्रुप की 30 बड़ी कंपनियाँ है। नमक से लेकर सॉफ़्टवेयर बनाता है, चाय बनाता है, कारें बनाता है, हवाई जहाज़ चलाता है। स्टील बनाता है, बिजली बनाता है। ये सब कंपनियाँ अपना कारोबार ख़ुद चलाती हैं। टाटा ग्रुप का टर्न ओवर 13 लाख करोड़ के आसपास है। शेयर बाज़ार में लिस्टेड कंपनियों की क़ीमत 33 लाख करोड़ रुपये के आसपास है। इन कंपनियों में टाटा सन्स के शेयर है। वो इन कंपनियों के कुछ हिस्से की मालिक है। यही टाटा सन्स सब कंपनियों को टाटा ग्रुप का हिस्सा बनाता है। ये ग्रुप 1868 में जमशेद जी टाटा ने मुंबई में स्थापित किया था।

टाटा सन्स का मालिक सीधे टाटा परिवार नहीं है। टाटा सन्स के सबसे बड़े शेयर होल्डर टाटा ट्रस्ट है। टाटा सन्स के 66% से ज़्यादा शेयर टाटा ट्रस्ट के पास है।  टाटा परिवार इन्हीं ट्रस्ट के ज़रिए पूरे ग्रुप को कंट्रोल करता है। रतन टाटा के बाद अब उनके सौतेले भाई नोएल टाटा दोनों ट्रस्ट के चेयरमैन बने हैं। यह ट्रस्ट टाटा सन्स में एक तिहाई डायरेक्टर नियुक्त करने का अधिकार रखता है।

इसका उपयोग कर रतन टाटा ने टाटा सन्स के चेयरमैन सायरस मिस्री को हटा दिया था यानी रोज़मर्रा के फ़ैसलों में ट्रस्ट भले दख़लंदाज़ी ना करें वो टाटा सन्स में बड़े फ़ैसले ले सकता है। यही टाटा सन्स ग्रुप की बाक़ी कंपनियों में दख़ल रखता है। ट्रस्ट को टाटा सन्स से हर साल जो डिवीडेंड मिलता है उसे चैरिटी में खर्च करता है। टाटा सन्स की कमाई ग्रुप की कंपनियों से मिलने वाले डिवीडेंड से होती है।

टाटा कंपनियों के ज़्यादा मुनाफ़े का मतलब है चैरिटी के लिए ज़्यादा पैसे। टाटा ट्रस्ट को पिछले 923 करोड़ रुपये डिवीडेंड मिला था। बिज़नेस का यह अनोखा मॉडल क़रीब सौ साल से चल रहा है।

रतन टाटा ने इसमें पिछले कुछ सालों में बदलाव भी किए। उन्होंने 2012 में सायरस मिस्री को अपना उत्तराधिकारी चुना। मिस्री परिवार के पास 18.6% शेयर है। परिवार के बाहर से वो दूसरे चेयरमैन थे। विवाद के बाद मिस्री को हटाया गया। टाटा सन्स का चेयरमैन पारसी होता था। उन्होंने TCS के CEO एन चंद्रशेखर को चेयरमैन बनाया। अब तक टाटा सन्स का चेयरमैन ही टाटा ट्रस्ट का भी चेयरमैन होता था। रतन ने टाटा सन्स छोड़ने के बाद भी अपने पास रखा और अब यह ज़िम्मेदारी उनके सौतेले भाई नोएल टाटा को मिली है यानी सारी शक्ति एक व्यक्ति के हाथ में नहीं रहेगी।  

(वरिष्ठ पत्रकार मिलिंद खांडेकर 'टीवी टुडे नेटवर्क' के 'तक चैनल्स' के मैनेजिंग एडिटर हैं और हर रविवार सोशल मीडिया पर उनका साप्ताहिक न्यूजलेटर 'हिसाब किताब' प्रकाशित होता है।)


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