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देश सिर्फ ‘नेत्रहीन समर्थकों’ का नहीं, समझने वाले नागरिकों का भी: आलोक श्रीवास्तव

स्मरण रहे कि हम जिस संसार में रहते हैं उसे ‘जगत्’ भी कहते हैं, जहां सब कुछ गतिमान है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago

आलोक श्रीवास्तव, लेखक व कवि।

साल 2013 की बात है। मैं ‘आजतक’ न्यूज चैनल में हुआ करता था। तब कभी-कभी किसी पॉलिटिकल शो के सिलसिले में तत्कालीन सत्ताधारी कांग्रेस के सीनियर लीडर्स से मिलना हो जाता था। उस दौरान एक बात लगभग सभी बड़े नेताओं में नोट कर रहा था।

‘9 साल सत्ता में रहने के बाद लगभग सभी में बला का अहंकार आ गया था, एक ठसक सी आ गई थी। ’ उन्हें लगने लगा था कि ‘अब उनका तख्त कोई नहीं हिला सकता, कोई है ही नहीं, जो उन्हें तख्त से उतारे। ’ पर ऐसा नहीं हुआ। वे लोकतंत्र के हाथों खदेड़े गए और बेहतरीन तरीके से खदेड़े गए। आज की सत्ताधारी बीजेपी को भी 9 साल हो गए हैं। वही अहंकार, वही ठसक इस सरकार के सीनियर्स में भी दिखने लगी है।

वहीं, इनकी देखा-देखी, नीचे काम कर रहे कार्यकर्ताओं में भी आ गई है। इन्हें लगने लगा है कि ‘अब इनका तख्त कोई नहीं हिला सकता, कोई है ही नहीं, जो इन्हें उनके तख्त से उतारे, 'पर ऐसा नहीं है। यह देश सिर्फ ‘नेत्रहीन समर्थकों’ का ही देश नहीं है, बल्कि सोचने-समझने वाले नागरिकों का देश भी है।

यदि यही अहंकार, यही ठसक बरकरार रही तो प्रजातंत्र के हाथों यह भी खदेड़े जाएंगे और बेहतरीन तरीके से खदेड़े जाएंगे। याद रहे, कई राज्यों में खदेड़े भी गए हैं, क्योंकि यह देश आज भी लोकतंत्र की ताकत और उसकी मजबूत बुनियाद पर खड़ा है।

इसकी जमीन के नीचे की हलचल कभी-कभी धरातल के शोर में दब जाती है, पर जब यही हलचल तेज़ हो जाती है तो फिर धरातल पर सिर्फ़ बदलाव आता है और कुछ नहीं। स्मरण रहे कि हम जिस संसार में रहते हैं उसे ‘जगत्’ भी कहते हैं, जहां सब कुछ गतिमान है। कुछ भी ठहरा हुआ या स्थायी नहीं। सबको चलते रहना है।

यहां देह से दुनिया तक, चला-चली का अद्भुत चलन है, और इस चलन में जो ठीक से नहीं चलेंगे, वे एक दिन चलते कर दिए जाएंगे। जय हिन्द।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

 

 


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