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'एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के लिए बेहतर नहीं रहा 2023, आने वाले समय में बेहतरी की उम्मीद'

वर्ष 2023 में सबसे बड़ी चर्चा टीवी के डिजिटल से पिछड़ने के बारे में रही। बड़ा सवाल यह है कि दर्शक क्या उम्मीद कर सकते हैं।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 9 months ago

अनूप चंद्रशेखरन, चीफ ऑपरेटिंग ऑफिसर (रीजनल कंटेंट)
IN10 मीडिया नेटवर्क ।।

साल खत्म होने के साथ ही नए साल की घंटिया तेजी से बजने लगती हैं, लेकिन एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की बात करें तो यह काफी धीमी गति से बजती हैं। ऐसे में तमाम तरह के सवाल भी उठते हैं। जैसे-जैसे थिएटर और लीनियर टीवी का युग अपनी सारी चमक खोता जा रहा है, ऐसे में स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म सामने आए हैं, जो एक तरह से पॉकेट थिएटर बन गए हैं। एक युग से दूसरे युग का अंत हो रहा है। एक उम्मीद दूसरे रूप में संजोई जा रही है।

लेकिन इस साल वास्तविकता स्तब्धता और भ्रम की स्थिति के अलावा कुछ नहीं थी। यह वास्तव में दुखद खबर है कि भारत के सबसे बड़े और सबसे लाभदायक नेटवर्क में से एक-डिज्नी इंडिया बिकने के कगार पर है और ‘जी’ जैसी एक और लाभदायक कंपनी को लेकर भी तमाम तरह की खबरें आ रही हैं। डिज्नी-जियो और सोनी-जी से जुड़ी खबरों में आए दिन लगातार नए-नए मोड़ आ रहे हैं। पिछले हफ्ते जियो और डिज्नी द्वारा एक गैर-बाध्यकारी समझौते (non binding agreement) पर हस्ताक्षर करने की घोषणा से संकेत मिलता है कि अंत में कुछ भी हो सकता है।

कुछ साल पहले की बात है, जब रिलायंस-सोनी समझौते की खबर आई थी, जिसके बीच में कई मोड़ आए और आखिरी समय में रिलायंस ने इस डील को आगे न बढ़ाने का फैसला किया। अब अगर मान लें कि यदि जी के साथ सोनी की बहुप्रतीक्षित डील नहीं होती है और यही हाल जियो-डिज्नी डील का भी हो, तो इंडस्ट्री पर क्या असर होगा। दूसरी बड़ी चुनौती जो एकीकरण यानी इनके विलय के साथ हो सकती है वह है बाजार में एक एकाधिकारवादी खिलाड़ी का उभरना, जो हमारी इंडस्ट्री पर हावी हो रहा है। यह एक खतरनाक प्रस्ताव है। ऐसे में बाजार पिछड़ सकता है और यह कदम सही साबित नहीं होगा, खासकर रचनात्मकता और नवीनता के मामले में। सामग्री और प्रतिभा को एक खिलाड़ी द्वारा नियंत्रित और निर्देशित किया जाना समग्र इंडस्ट्री के विकास के लिए सही नहीं होगा। प्रतिस्पर्धा कंपनियों को नवप्रवर्तन यानी नवाचारों के लिए बाध्य करती है। यह विज्ञापनों और दर्शकों के लिए अच्छा है लेकिन बिना किसी प्रतिस्पर्धा के ऐसा मुश्किल है और एकाधिकारवाद का बढ़ावा मिलता है।

‘डिज्नी इंडिया’ को लेकर लिए गए फैसले ने हम सभी को आश्चर्यचकित कर दिया है। उनका ब्रॉडकास्ट सेगमेंट लाभदायक है और उन्हें जियो के साथ एक हताश सौदा करते देखना सभी तर्कों को खारिज कर देता है। फॉक्स से भारी कीमत पर नेटवर्क खरीदने के बाद, इसे इतनी आसानी से और इतनी जल्दी छोड़ देना मुझे बरबैंक (Burbank) की टीम पर सवाल उठाने पर मजबूर करता है। बड़ा सवाल यह है कि फिर डिज्नी ने इतनी वैल्यूएशन पर स्टार इंडिया को खरीदने का सपना पहले कैसे पा लिया। डिज्नी इंडिया में सबसे बड़ी खामी यह देखी गई है कि वह क्रिकेट को बढ़ावा देने के लिए कंटेंट में आक्रामक तरीके से निवेश नहीं कर रहा है और इस तरह वह लक्ष्य पर निशाना साधने में असफल हो रहा है। जाहिर है, डिज्नी इंडिया ने लाभ-हानि का खेल (P&L game) खेलना शुरू कर दिया और यह स्पष्ट है कि उनका दीर्घकालिक विजन धुंधला हो गया है।

विलय होने अथवा न होने के नाम पर तमाम खबरों के बीच वर्ष 2023 गुजर गया। इस दौरान एक नेटवर्क से दूसरे नेटवर्क में प्रतिभा का पलायन, विशिष्ट टार्गेट ग्रुप्स (TGs) में वर्चस्व के दावे और डिजिटल बनाम ट्रेडिशनल के दावे बाहरी लोगों के लिए हंसी का पात्र बन गए। 

मेरे लिए सबसे बड़ी चिंता जो इस वर्ष देखी गई, वह विशिष्ट टार्गेट ग्रुप्स यानी लक्षित समूह और विशिष्ट समय बैंड में ब्रॉडकास्टर्स द्वारा अपने-अपने प्रदर्शन को लेकर किए गए दावे और प्रतिदावे रहे, जिससे ईकोसिस्टम में एक तरह की अराजकता पैदा हो गई है कि आखिर इन सब से क्या समझा जाए। क्या हम इस तरह की छोटी-छोटी बातों से अपनी इंडस्ट्री को खत्म कर रहे हैं? क्या हमें छोटी-मोटी चालों में उलझने के बजाय सही कंटेंट को बढ़ावा देने के लिए अपने सभी स्तरों पर ध्यान केंद्रित नहीं करना चाहिए? समय आ गया है जब ‘ब्रॉडकास्ट ऑडियंस रिसर्च काउंसिल’ (BARC) को कदम उठाना चाहिए और टार्गेट ग्रुप्स पर सभी के लिए स्वीकार्य एक स्पष्ट टेम्पलेट या नियंत्रण करना चाहिए ताकि सभी को भ्रमित करने के बजाय सही दावे किए जा सकें। हमारी इंडस्ट्री में उन कीमतों को लेकर भी सबसे बड़ी गलती हुई, जिनमें वर्ष 2023 में क्रिकेट और फिल्में खरीदी गईं। 

ग्राहकों को अपनी ओर करने के नाम पर उन सभी ने इस तरह के तमाम कदम उठाए, जो पूरी इंडस्ट्री के लिए सही नहीं हैं, क्योंकि उन मूल्यों पर इन एसेट्स को खरीदने का कोई वित्तीय अर्थ नहीं था। इस अदूरदर्शिता के फलस्वरूप एक ऐसी आपदा आएगी, जिससे इंडस्ट्री को उबरने में समय लगेगा।

दूसरी बड़ी चिंता उन कीमतों को लेकर है, जिन पर विभिन्न प्लेटफॉर्म्स द्वारा फिल्में खरीदी जाती हैं। ऐसा लगता है कि ये तमाम प्लेटफॉर्म्स बड़े नामों और बड़े निर्देशकों के पीछे रहे और इस कारण अच्छी क्वालिटी का कंटेंट चुनने से चूक गए हैं। विभिन्न प्लेटफॉर्म्स द्वारा फिल्मों को खरीदे जाने के खेल में पैकेजिंग शब्द पर काफी जोर दिया जाता है। हमारे सर्कल में आमतौर पर सबसे अधिक सुनी जाने वाली शब्दावली है कि एक डायरेक्टर/हीरो पैकेज रखें और कंटेंट के बारे में चिंता न करें। हमारी इंडस्ट्री में खलबली की भावना है क्योंकि मौजूदा तमाम प्लेयर्स त्वरित-फिक्स गेम खेल रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप पूरी इंडस्ट्री ध्वस्त सी हो गई है। ऐसे में सिर्फ समय ही उन सभी सवालों के जवाब देगा कि वर्ष 2023 में लिए गए खराब फैसलों से कैसे और कब हम उबरेंगे। 

वर्ष 2023 में सबसे बड़ी चर्चा टीवी के डिजिटल से पिछड़ने के बारे में रही। बड़ा सवाल यह है कि दर्शक क्या उम्मीद कर सकते हैं। लोग आज यूट्यूब, इंस्टाग्राम और गेमिंग पर ज्यादा समय बिता रहे हैं। क्या हमारी इंडस्ट्री एक मीडिया और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री है अथवा टेक्नोलॉजी और एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री है। क्या हमारी इंडस्ट्री ढहने, नया आकार लेने या फिर से ब्रैंडिंग के कगार पर है? इन सबका जवाब सिर्फ समय देगा। 

भारत की बात करें तो औसत रूप से एक परिवार 100 से अधिक चैनल्स के लिए 200 रुपये से कम का भुगतान करता है। क्या भुगतान वाले स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स इस तरह के भारतीय बाजार में बने रह सकते हैं या यदि यह एक विज्ञापन संचालित मॉडल है, तो स्ट्रीमिंग पर विज्ञापन देखना तमाम लोग पसंद नहीं करते और आम तौर पर इसे छोड़ देते हैं। वह कौन सी कीमत है, जो ऐडवर्टाइजर्स इंप्रेशन के लिए भुगतान करने को तैयार हैं और बड़ा सवाल इन प्लेटफॉर्म्स द्वारा दर्शाए गए इन इंप्रेशंस की विश्वसनीयता है। क्या कोई इसे मान्यता दे रहा है? शुरुआत में स्ट्रीमिंग विज्ञापन मुक्त थी लेकिन अब ऐसा नहीं है। ऐसे में क्या इसका मतलब यह है कि हमें स्ट्रीमिंग में विज्ञापनों के साथ रहना होगा?

भारत में स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स ने भी टियर 1 शहरों से SVOD (Subscription Video on Demand) रेवेन्यू जुटाने के बाद बड़े पैमाने पर टियर 2 और टियर 3 शहरों को लक्षित करने की आवश्यकता के बारे में बात की है। क्या इसका मतलब कंटेंट का व्यापकीकरण होगा और यदि ऐसा होता है तो क्या ये प्लेटफॉर्म्स टीवी का रास्ता अपनाएंगे और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स में सास-बहू नाटकों की शुरुआत देखेंगे। टेलीविजन में बिल्कुल यही हुआ। लीनियर टीवी ने मालगुडी डेज, फौजी, बुनियाद, भारत एक खोज और रजनी जैसे अच्छे फिक्शन शो को बढ़ावा दिया, लेकिन जब हमने बड़े पैमाने पर लोगों को लक्षित करना शुरू किया, तो प्रीमियम कंटेंट पीछे रह गया। विज्ञापन राजस्व पर भारी निर्भरता के साथ बड़े पैमाने पर कंटेंट तैयार होने लगा। फिर हमने कंटेंट की लागत के पीछे काम करना शुरू कर दिया। तो क्या यह गुणवत्तापूर्ण प्रीमियम और बड़े खर्च वाली वेब श्रृंखला कंटेंट के अंत की शुरुआत होगी? 

देश में स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स का हनीमून पीरियड खत्म हो चुका है। जब उनके मुख्य कार्यालय लाभप्रदता की रिपोर्ट करना चाहेंगे, तब क्या ये प्लेटफॉर्म्स अपने कंटेंट खर्च में कमी करना शुरू कर देंगे? टीवी व्युअरशिप और खर्च कम होने के साथ स्ट्रीमिंग को सॉल्यूशन माना जाता था, लेकिन अगले साल क्या स्ट्रीमिंग भी स्लो हो जाएगा? हममें से किसी के पास इन सवालों के जवाब नहीं हैं। भारतीय मार्केट में दस्तक देने वाली इन दिग्गज कंपनियों के लिए तमाम बड़े सवाल हैं- जैसे, यदि उन्हें लगता है कि वे मार्केट में मजबूत स्थिति में नहीं हैं, तो वे कुछ ही समय में भारत से बाहर चले जाएंगी, जैसा कि भारत में डिज्नी के साथ हो रहा है।

इस सारी उथल-पुथल में, वर्तमान में ब्रॉडकास्टर्स और स्ट्रीमर्स के साथ काम करने वाला टैलेंट असमंजस की स्थिति में है क्योंकि कुछ भी नहीं हो रहा है और काफी अनिश्चितता है। मार्केट में क्रिएटिव टैलेंट पूल भी मौजूदा स्थिति से पूरी तरह भ्रमित है। नाटकीय रूप से दर्शकों की संख्या बड़े कैनवास, बड़े सितारों और बड़े निर्देशकों तक ही सीमित है और प्लेटफॉर्म्स कंटेंट की लागत में कटौती करने की कगार पर हैं। किसी को भी इस बात का अंदाजा नहीं है कि भविष्य में उनका क्या होगा।

परिवर्तन अपरिहार्य है लेकिन इसे हमेशा आशा और आनंद के साथ जोड़ा जाना चाहिए। मुझे अब भी उम्मीद है कि इन तमाम बाधाओं को दूर कर दिया जाएगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हमारा अतीत काफी समृद्ध था और भविष्य में भी रहेगा। इन तमाम मुद्दों पर बात करना और इस स्थिति में सुधार करना हमारी ज़िम्मेदारी है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं।)


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