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समान नागरिक संहिता भाजपा का आखिरी वादा, समय रहते वोट बैंक को साधा: जयदीप कर्णिक

भाजपा ने अपने तरकश से वो बहुप्रतीक्षित तीर आखिर निकाल ही लिया है जिसको दिखाकर इसके पहले के भी कई युद्ध जीते जा चुके हैं।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago

जयदीप कर्णिक, संपादक, अमर उजाला डिजिटल।

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनावों की आहट तेज हो चुकी है। जहां पटना में विपक्षी दलों की महाबैठक रूठे हुए अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी की मनुहार के बीच पूरी हो चुकी है, वहीं भाजपा ने भी कमर कस ली है। भाजपा ने अपने तरकश से वो बहुप्रतीक्षित तीर आखिर निकाल ही लिया है जिसको दिखाकर इसके पहले के भी कई युद्ध जीते जा चुके हैं। चुनावी राजनीति में भाजपा ने अपने मतदाताओं से तीन बड़े वादे किए थे। ये तीनों ही वादे शुरुआती दिनों से ही किए हुए हैं। राम मंदिर का निर्माण, धारा 370 को हटाना, समान नागरिक संहिता।  इन तीनों ही वादों को लेकर विपक्षी दल भाजपा पर हमलावर भी रहे हैं और उसका मजाक भी उड़ाते रहे हैं। जब मजबूरी के चलते भाजपा गठबंधन के रास्ते सत्ता में आई तो अपना कोई भी वादा पूरा करने की स्थिति में नहीं थी।

उसको ये उलाहना सुनना पड़ता था! मंदिर वहीं बनाएंगे पर तारीख नहीं बताएंगे। मंदिर अब आकार ले रहा है, भले ही न्यायालय के फैसले के कारण पर जनवरी 2024 में प्राण-प्रतिष्ठा तय है। धारा 370 हट चुकी और 35ए भी गया। समान नागरिक संहिता की संवेदनशीलता को देखते हुए भाजपा सरकार ने इसे राज्यों के रास्ते धीरे से परीक्षण के लिए उतारा। फिर जब 2024 की आहट तेज हुई तो अपने तरकश में बचे वादे के इस आखिरी तीर को भी प्रत्यंचा पर चढ़ा ही दिया। प्रधानमंत्री मोदी ने जब अपनी हाल ही की मध्य प्रदेश यात्रा के दौरान मंच से हुंकार भरी तो दो ही बातें प्रमुख थीं– समान नागरिक संहिता का वादा और पसमांदा मुसलमान। दोनों ही तीर लक्ष्यभेदी हैं और बेहद मारक। 

समान नागरिक संहिता ने उम्मीद के मुताबिक ही देशव्यापी बहस छेड़ दी है। जहां एक और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को अपनी आपात बैठक बुलानी पड़ी, वहीं असद ओवैसी मुसलमानों के सबसे बड़े खैरख़्वाह बनते हुए गरज पड़े। उन्होंने धर्म के आधार पर चलने वाली संहिता को देश की विविधता से जोड़ दिया और इस पूरे समान नागरिक संहिता के विचार को लेकर भाजपा को इस विविधता का विरोधी बता दिया। और ये सब कुछ भाजपा की तय स्क्रिप्ट के मुताबिक ही हो रहा है। अपने इस तीर से भाजपा ने सबसे मारक प्रहार तो विपक्षी एकता के उस प्रयत्न पर किया जो अभी सिर्फ तस्वीरों और बैठकों तक सीमित है। अरविंद केजरीवाल खुलकर समान नागरिक संहिता के समर्थन में आ गए हैं। उद्धव की शिवसेना के लिए भी इससे दूर रहना आसान नहीं होगा।

समान नागरिक संहिता के इस तीर से होने वाला ध्रुवीकरण, सीधे निशाने पर एक बड़े वोट बैंक को लिए हुए है। तीन तलाक को खत्म किए जाने से समूचा उदारवादी मुस्लिम वर्ग पहले ही साधा जा चुका है, खास तौर पर महिलाएं। ये तीर भी वहीं जा लगेगा। सुधारवादी कदमों के बाद भी भाजपा को लेकर व्याप्त असुरक्षा और वोट देने को लेकर असमंजस मुस्लिम वर्ग में कायम है, इसमें कोई शक नहीं। इसी कारण भाजपा के नीति निर्धारकों ने इसे व्यापक समाज सुधार से जोड़ा है बजाय के धर्म के। 

एक ही देश के नागरिकों में किसी के लिए एक ही शादी वैध और किसी के लिए चार, इसी के साथ तलाक और हलाला का प्रावधान ये वो बातें हैं जो धर्म से ज्यादा प्रगतिशीलता और समाज सुधार से जुड़ीं हैं। विसंगति को दूर करने और सभी नागरिकों के लिए कानून समान करने के साथ ही भाजपा के कर्णधार इसे समाज सुधार से जोड़ रहे हैं। अगर इसे सही तरीके से प्रचारित किया गया तो इसमें बड़ी कामयाबी भी मिल सकती है। असल में परंपरा के नाम पर कुरीतियां कायम हो गईं और कुरीतियों ने कानून की आड़ ले ली। जो इस समान नागरिकता संहिता के कानून का विरोध करेगा वो इन कुरीतियों का समर्थन करता हुआ नजर आएगा।

यही भाजपा का सबसे बड़ा दांव है और ये सफल भी हो सकता है। इसीलिए भाजपा ने अपने तरकश से वादे का ये आखिरी तीर भी समय रहते निकाल ही लिया है। यों उसके पास चुनावी समर के लिए और भी तीर हो सकते हैं पर तीन बड़े वादों में यही एक रह गया था। अब ये तो मई 2024 में ही पता लगेगा की ये तीर निशाने पर लगा या नहीं पर तब तक इससे होने वाली हलचल पर नज़र रखना दिलचस्प होगा।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)


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