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पुरानी पेंशन स्कीम से क्या खतरा है, पढ़िए इस सप्ताह का 'हिसाब किताब'
पुरानी पेंशन स्कीम ( OPS या Old Pension Scheme) में सरकारी कर्मचारी जिस सैलरी पर रिटायर होंगे उसकी आधी रकम जिंदगी भर पेंशन मिलती रहेगी।
समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago
मिलिंद खांडेकर, मैनेजिंग एडिटर, तक चैनल्स, टीवी टुडे नेटवर्क।
चुनाव का सीजन शुरू हो गया है। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव है, फिर लोकसभा चुनाव। सरकारी कर्मचारियों को पुरानी पेंशन स्कीम का वादा फिर किया जा सकता है। ऐसे में रिजर्व बैंक ने चेतावनी दी है कि पुरानी पेंशन स्कीम फिर से लागू की गई तो नतीजे बुरे होंगे। सरकार का पेंशन खर्च साढ़े चार गुना बढ़ जाएगा। विकास के लिए पैसे कम बचेंगे। पुरानी पेंशन स्कीम ( OPS या Old Pension Scheme) में सरकारी कर्मचारी जिस सैलरी पर रिटायर होंगे उसकी आधी रकम जिंदगी भर पेंशन मिलती रहेगी। साथ में महंगाई भत्ता भी, अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इसे बदल डाला।
1 अप्रैल 2004 से नौकरी में आने वाले केंद्रीय सरकारी कर्मचारियों के लिए ये सुविधा बंद कर दी गई। पश्चिम बंगाल और तमिलनाडु को छोड़कर सभी राज्यों ने भी नई स्कीम लागू कर दी। पुरानी पेंशन को बंद करने का मक़सद था कि सरकार का बोझ कम हो। नई स्कीम में कर्मचारी अपनी सैलरी का दस प्रतिशत पेंशन स्कीम में जमा करता है। सरकार अपनी तरफ से 14 प्रतिशत देती है। ये पैसे नेशनल पेंशन स्कीम (NPS) में जमा होते रहते हैं। कर्मचारी के पास ऑप्शन होता है कि इस पैसे का कितना हिस्सा वो शेयर बाजार में लगाना चाहता है।
ज़्यादा हिस्सा लगाने पर रिस्क ज़्यादा है और रिटर्न भी। अगर फ़िक्स इनकम में लगाया तो रिस्क कम है और रिटर्न भी कम। रिटायर होने पर कर्मचारी अपने खाते से 60% रक़म एकमुश्त निकाल सकता है। इस पर टैक्स नहीं लगता है। बाक़ी बची रक़म को फिर निवेश करना पड़ता है जो सालाना रिटर्न देता रहता है।
नई स्कीम से सरकार फायदे में है लेकिन कर्मचारी घाटे में। एक अनुमान के अनुसार रिटायर होने वाले कर्मचारियों को अपनी आखिरी सैलरी का 38% ही पेंशन मिल रही है। महाराष्ट्र में पुराने स्कीम की मांग करने वाले कर्मचारियों का दावा है कि महीने में दो से पांच हजार रुपये मिल रहे हैं। हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन स्कीम की मांग बीजेपी ने नहीं मानी। कांग्रेस और आप ने इसे लागू करने का वादा किया है। ये स्कीम कांग्रेस राजस्थान, छत्तीसगढ़ और हिमाचल प्रदेश में लागू कर चुकी है। कांग्रेस समर्थित झारखंड सरकार ने लागू कर दिया है जबकि आप ने पंजाब में।
हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार के बाद केंद्र सरकार हरकत में आ गईं। केंद्र सरकार ने नई पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर कमेटी बना दी। कमेटी की रिपोर्ट नहीं आयी है लेकिन आंध्र प्रदेश फार्मूले पर विचार हो रहा है। इस फार्मूले के तहत सरकार और कर्मचारी हर महीने अपना अपना योगदान पेंशन के लिए देते रहते हैं, सरकार ने 33% सैलरी की गारंटी दे रखी है। मान लीजिए सरकार 40% या 45% की गारंटी दे दें तो उसका खर्च पुरानी पेंशन स्कीम के मुकाबले कम होगा।
सरकार के नजर से देखिए तो सरकारी कर्मचारियों की सैलरी, पेंशन और पुराने कर्ज की अदायगी में उसका बजट खर्च हो जाता है। बाकी बचा पैसा नए काम पर खर्च होता है। केंद्र सरकार का आय 100 रुपये है उसमें से 41 रुपये कर्ज की अदायगी में जाते हैं जबकि 9 रुपये पेंशन पर यानी 50 रुपये का खर्च।
रिजर्व बैंक के अनुसार राज्य सरकारों की हालत ज्यादा खराब है। बिहार, केरल, उत्तर प्रदेश,पंजाब और पश्चिम बंगाल की अपनी आय के 100 रुपये में से 25 से ज़्यादा रुपये पेंशन पर खर्च कर रहे है। पहाड़ी राज्यों और उत्तर पूर्व राज्यों में ये खर्च 40 - 50 रुपये से ज्यादा है। सभी राज्यों सरकारों की आय ₹100 मानी जाएं तो ₹13 पेंशन पर खर्च हो जाते हैं। पेंशन के साथ खर्च में पुराना कर्ज की अदायगी और सरकारी कर्मचारी की सैलरी जोड़ लें तो ये खर्च ₹56 हो जाता है। ये खर्च फिक्स है, हर हाल में देना ही है। सरकार के पास जनता के लिए काम करने के लिए बचे ₹44, सरकार या तो और कर्ज लेंगी या फिर जनता पर होने वाले खर्च में कटौती करेगी।
रिजर्व बैंक ने कहा कि सभी राज्यों में पुरानी पेंशन लागू हो जाएं तो अगले कुछ साल खर्च कम होगा क्योंकि सरकारों को नई पेंशन के लिए अभी अपना हिस्सा नहीं देना होगा। करीब 15 साल बाद खर्च साढ़े चार पांच गुना बढ़ जाएगा। नेताओं को तो अगला चुनाव जीतने से मतलब है, समझना जनता को है कि उसके पैसे का इस्तेमाल किस तरह से किया जाए?
(वरिष्ठ पत्रकार मिलिंद खांडेकर 'टीवी टुडे नेटवर्क' के 'तक चैनल्स' के मैनेजिंग एडिटर हैं और हर रविवार सोशल मीडिया पर उनका साप्ताहिक न्यूजलेटर 'हिसाब किताब' प्रकाशित होता है।)
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