होम / विचार मंच / ग़ुलाम कश्मीर भारत में विलय क्यों चाहता है?: राजेश बादल
ग़ुलाम कश्मीर भारत में विलय क्यों चाहता है?: राजेश बादल
पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर से छन-छनकर आ रही खबरें यही बताती हैं कि वहां सब कुछ ठीक नहीं है। हालात धीरे धीरे अशांति के आंतरिक विस्फोट की तरफ बढ़ रहे हैं।
राजेश बादल 7 months ago
राजेश बादल, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और स्तंभकार।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का हालिया बयान बेहद महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा है कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के लोग अपने साथ हो रहे भेदभाव से आजिज़ आ चुके हैं और अब वे स्वयं भारत में विलय के लिए अपने आप को प्रस्तुत कर देंगे। कुछ राजनीतिक प्रेक्षक लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र इसे सियासी मान सकते हैं और संभव है कि इसके पीछे चुनावी लाभ लेने की मंशा हो तो भी यह स्वीकार करने में कोई हिचक नहीं होना चाहिए कि पाकिस्तान ने अपने क़ब्ज़े वाले कश्मीर में अवाम के साथ लगभग उसी तरह अत्याचारों का सिलसिला शुरू कर दिया है ,जैसा क़रीब पचपन साल पहले उसने पूर्वी पाकिस्तान ( आज का बांग्ला देश ) में किया था। आम जनता को उसके नागरिक अधिकारों से वंचित करना आज के विश्व में किसी भी बड़े राष्ट्र के लिए मुमकिन नहीं है।
पाकिस्तान के क़ब्ज़े वाले कश्मीर से छन छन कर आ रही ख़बरें यही बताती हैं कि वहाँ सब कुछ ठीक नहीं है। हालात धीरे धीरे अशांति के आंतरिक विस्फोट की तरफ बढ़ रहे हैं। रक्षा मंत्री के इस कथन के पीछे पाकिस्तानी प्रधानमंत्री शाहबाज़ शरीफ़ का एक ताज़ा तीख़ा बयान भी है। इसमें उन्होंने कहा था कि फिलिस्तीन और कश्मीर की आज़ादी के लिए अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को अब निर्णायक रुख अपनाना होगा। यक़ीनन प्रधानमंत्री होने के नाते उनके पास ग़ुलाम कश्मीर की असल तस्वीर होगी ,जहाँ आए दिन मुल्क़ से अलग होने के लिए प्रदर्शन हो रहे हैं। पिछले महीने ही इलाक़े के बड़े राजनीतिक नेता अमज़द अयूब मिर्ज़ा ने खुले तौर पर कहा था कि अब पाकिस्तान से अलग होने के लिए इस ख़ूबसूरत घाटी के लोग छटपटा रहे हैं।
वे जल्द ही हिन्दुस्तान में विलय के लिए बड़ा आंदोलन छेड़ने जा रहे हैं। इस आंदोलन को बलूचिस्तान में अलगाववादी आंदोलन चला रहे सभी गुटों का भी समर्थन है। वादी के गिलगित बाल्टिस्तान में तो इस मसले पर अरसे से हालात तनावपूर्ण बने हुए हैं। नौबत यहाँ तक आई कि सरकार को चेतावनी जारी करनी पड़ी कि वहाँ साम्प्रदायिकता बर्दाश्त नहीं की जाएगी। चिलास क़स्बे की दिया मीर युवा उलेमा कौंसिल के अध्यक्ष मौलाना अब्दुल मलिक ने तो ऐलान किया था कि साफ़ जब तक सरकार अपना रवैया नहीं बदलती ,तब तक इस खूबसूरत प्रदेश में शांति बहाल होना मुश्किल है।
दरअसल इस इलाक़े में साम्प्रदायिक मुद्दा अजीब सा है। यह मुस्लिमों को मुस्लिमों के ख़िलाफ़ उत्तेजित करता है। गिलगित इलाक़े में शिया आबादी बहुतायत में है। ईरान में सबसे अधिक शिया रहते हैं। उसके बाद भारत में शियाओं की संख्या है। पाकिस्तान सुन्नी बाहुल्य राष्ट्र है। पर ,उसके क़ब्ज़े वाले गिलगित बाल्टिस्तान में लगभग दस लाख शिया मुसलमान रहते हैं। सुन्नी मुस्लिम शियाओं को फूटी आँखों नहीं देखते और उन्हें अपने इस्लाम का हिस्सा नहीं मानते। जब तब वहाँ शिया -सुन्नी टकराव होता रहता है। पाक सरकार इसे साम्प्रदायिक तनाव बताती है। पाकिस्तान सरकार चुपचाप वहाँ सुन्नियों को बसाने का काम करती रही है। इसका विरोध भी समय समय पर होता रहा है।
हाल यह है कि सुन्नियों की आबादी शियाओं से क़रीब दो गुनी हो चुकी है। यह प्रांत ताजिकिस्तान ,चीन और भारत के कारगिल - द्रास की ओर से जुड़ता है। चीन अपना ग्वादर तक जाने वाला गलियारा भी इसी क्षेत्र से बना रहा है। गिलगित के लोग इसके विरोध में रहते हैं। भारत में विलय की माँग के पीछे यह भी एक कारण है। इस खूबसूरत वादी में लोग बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। इंटरनेट की सुविधा आए दिन छीन ली जाती है। रैली या सभा के लिए उन्हें इजाज़त लेनी पड़ती है। सुन्नी नागरिक सशस्त्र बल के जवान उन पर चौबीस घंटे नज़र रखते हैं।
कुछ समय पहले गिलगित में विरोध प्रदर्शन हुए तो लोग भारत के समर्थन में नारे लगाते देखे गए थे। एक सुन्नी मौलवी ने शियाओं पर तीख़ी टिप्पणी कर दी। इससे हालात बिगड़ गए। स्थानीय पुलिस को सुन्नी मौलवी के ख़िलाफ़ मामला दर्ज़ करना पड़ा। तो दूसरी तरफ सुन्नियों ने स्कार्दू में एक शिया मौलवी के विरोध में मामला दर्ज़ करा दिया।स्थिति बेहद गंभीर हो गई थी। अब स्कार्दू इलाक़े के लोग कह रहे हैं कि उनके लिए भारत जाने वाली कारगिल सड़क खोल दी जाए,जिससे वे जीवन यापन की ज़रूरी चीज़ें खरीद सकें। पाकिस्तानी फ़ौज के पहरे ने उन्हें जीते जी मर जाने की नौबत ला दी है। वर्षों से यह मांग भी होती रही है कि कारगिल मार्ग भी खोल दिया जाए, जिससे पर्यटक बेरोकटोक भारत भी आ सकें। लेकिन पाकिस्तान सरकार इस मांग को सख़्ती से दबा देती है।
वास्तव में गिलगित - बाल्टिस्तान पाकिस्तान में होते हुए भी वहाँ के अन्य राज्यों की तरह नहीं है। उसे अधिक स्वायत्तता हासिल रही है । लेकिन दो तीन साल से पाकिस्तान वहाँ के लोगों को हासिल हक़ चालाकी से छीनता जा रहा है। भारत इस चीन -पाक आर्थिक परियोजना का विरोध भी इसलिए कर रहा है क्योंकि गिलगित -बाल्टिस्तान का बड़ा क्षेत्र इसमें शामिल है। भारत का कहना है कि यह कश्मीर का हिस्सा है और समूचे कश्मीर का विलय भारत में हो चुका है। इसलिए भारत का गिलगित इलाक़े को लेकर उठाया गया नया क़दम और बयान चीन को चिंता में डालने वाला है। कम लोग यह जानते होंगे कि पाकिस्तान और चीन के बीच एक रक्षा संधि भी है।
इस संधि के मुताबिक़ पाकिस्तान की किसी भी देश से जंग की स्थिति में चीन उसे अपने ऊपर आक्रमण मानेगा और पाकिस्तान को समर्थन देगा। आपको याद होगा कि शक्सगाम घाटी पाकिस्तान ने चीन को 1963 में एक समझौते के तहत उपहार में दे दी थी। ताज़ी सूचनाओं पर भरोसा करें तो पाकिस्तान चीन को गिलगित का एक बड़ा भू भाग मुफ़्त देना चाहता है। इसकी वजह यह है कि पाकिस्तान चीन आर्थिक गलियारा परियोजना के लिए चीन ने पाकिस्तान को क़रीब 22 अरब डॉलर क़र्ज़ दिया है। इसे वापस लौटाना पाकिस्तान के लिए अगले सौ बरस तक भी मुमकिन नहीं होगा। इसीलिए वह क्षेत्र का बड़ा हिस्सा चीन को तोहफे के तौर पर देना चाहता है। इसलिए भारत के लिए वहाँ प्रत्येक जन आंदोलन अनुकूल होगा जो भारत में विलय की मांग करता हो।
(यह लेखक के निजी विचार हैं ) साभार - लोकमत समाचार।
टैग्स राजेश बादल मीडिया पाकिस्तान भारत राजनाथ सिंह समाचार4मीडिया गुलाम कश्मीर