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दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनेगा भारत!, पढ़ें इस सप्ताह का 'हिसाब-किताब'

एक लाइन में समझिए कि हमारे आपके खर्चे, कंपनियों के खर्च और सरकार का खर्च मिल कर देश का GDP बनता है। यह अर्थव्यवस्था को मापने का पैमाना है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago

मिलिंद खांडेकर, मैनेजिंग एडिटर, तक चैनल्स, टीवी टुडे नेटवर्क।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस हफ्ते कहा कि उनके तीसरे टर्म में भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। अभी दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है। 2014 में भारत दस नंबर पर था। आज हिसाब-किताब में चर्चा भारत की अर्थव्यवस्था के बारे में। प्रधानमंत्री का दावा गलत नहीं है। एसबीआई  रिसर्च का अनुमान है कि भारत की अर्थव्यवस्था 2027 में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी। जर्मनी और जापान को भारत पार कर जाएगा।  पहले अनुमान था कि भारत 2029 में तीन नंबर पर पहुँचेगा। अब भारत की रफ्तार और बाकी दुनिया की सुस्ती से ये मुक़ाम चार साल में हासिल हो जाएगा।

2027 में भारत के आगे सिर्फ अमेरिका और चीन रह जाएगा। इन दोनों को पार करना मुश्किल होगा। Goldman Sachs का अनुमान है कि 2075 में जाकर भारत नंबर दो पर पहुंचेगा। चीन नंबर वन होगा और अमेरिका नंबर तीन पर। इसमें 50 साल लग जाएंगे। ये अनुमान देश की GDP पर लगाए गए हैं। हिसाब किताब में हम पहले चर्चा कर चुके हैं कि GDP क्या होती है ? एक लाइन में समझिए कि हमारे आपके खर्चे, कंपनियों के खर्च और सरकार का खर्च मिल कर देश का GDP बनता है। यह अर्थव्यवस्था को मापने का पैमाना है।

आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि हम दुनिया में पांचवें नंबर पर है और जल्द तीसरे नंबर पर होंगे, फिर गरीबी, बेरोजगारी खत्म क्यों नहीं हो रही है? इसका जवाब है प्रति व्यक्ति आय हमारा नंबर पहले 100 देशों में भी नहीं है। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर सी रंग राजन ने कहा था कि हम 197 देशों में 142 नंबर पर है। अभी हमारी प्रति व्यक्ति आय 1 लाख 65 हजार रुपये है और इसे 10 लाख रुपये तक पहुंचने में 25 साल लग जाएंगे। तब जाकर हम विकसित देश की श्रेणी में आ पाएंगे। आप इसे यूं भी समझिए कि चीन और भारत की आबादी लगभग बराबर है।

GDP अगर केक है तो चीन का केक हमारे केक से 5 गुना बड़ा है यानी पेट तो उतने ही भरने है पर चीन के पास हमसे 5 गुना ज्यादा खाना है। अमेरिका से तुलना कीजिए. उसके पास केक हमसे करीब 7 गुना बड़ा है, वहां खाने वाले हमारे मुकाबले एक चौथाई से कम है। हमारे यहां 100 लोग के लिए जितना बड़ा केक है अमेरिका के पास उससे 7 गुना केक है और खाने वाले हैं 20 लोग। यही कारण है कि 2014 से 2023 तक 10 वें नंबर से पाँचवें नंबर पर आने के बाद भी हमारी मुश्किलें कम नहीं हो रही है। भारत तीसरे नंबर पर 2027 में ना सही, 2030 तक तो पहुंच ही जाएगा।

मुश्किल उसके बाद होगी। Goldman Sachs ने कहा कि इंफ़्रास्ट्रक्चर, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज को बढ़ावा देना होगा। सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम कर रही है। सड़कें, पुल, एयरपोर्ट, रेलवे में काम हो रहा है। रिपोर्ट में जो बड़ी अड़चन बताई गई है वो है Labor force participation ratio ( LFPR), इसका मतलब होता है कि 15 साल से ज़्यादा उम्र के वो सभी लोग जो काम कर सकते हैं उनमें से कितने लोग काम कर रहे हैं या करना चाह रहे हैं। CMIE के मुताबिक पिछले वित्त वर्ष में ये आंकड़ा 100 में से 39 था। 2016-17 में ये 46 था।

बेरोजगारी दर LPFR के उन लोगों में गिनी जाती है जो काम करना चाह रहे हैं लेकिन उन्हें काम मिल नहीं रहा है, यहां तो काम करने या चाहने वालों की संख्या ही घट रही है. इसका सबसे बड़ा कारण है महिलाओं की घटती भागीदारी। 100 में से सिर्फकी 9 महिलाएं लेबर फोर्स का हिस्सा है जबकि 66 पुरुष लेबर फोर्स में हैं। महिलाओं की भागीदारी 2016-17 में 15 से घटकर 9 पर आ गई है।

यानी LFPR बढ़ाने का रास्ता महिलाओं को काम में भागीदारी से होगा। सिर्फ बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान से काम नहीं चलेगा। बेटी को काम भी करना होगा। बाक़ी दुनिया में महिलाओं की भागीदारी हमसे कहीं बेहतर है। यही देश की समृद्धि का रास्ता भी है।

(वरिष्ठ पत्रकार मिलिंद खांडेकर 'टीवी टुडे नेटवर्क' के 'तक चैनल्स' के मैनेजिंग एडिटर हैं और हर रविवार सोशल मीडिया पर उनका साप्ताहिक न्यूजलेटर 'हिसाब किताब' प्रकाशित होता है।)


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