होम / विचार मंच / अशांत पर्वतीय क्षेत्र पर शांति की बयार या राजनीतिक बारूद की बिसात: आलोक मेहता

अशांत पर्वतीय क्षेत्र पर शांति की बयार या राजनीतिक बारूद की बिसात: आलोक मेहता

पूर्वोत्तर में प्रगति के साथ सूचना क्रांति, अभिव्यक्ति की आजादी और सोशल मीडिया के प्रभाव से यह भ्रम बनाने के प्रयास हुए हैं कि यह अभूतपूर्व स्थिति है।

समाचार4मीडिया ब्यूरो 1 year ago

आलोक मेहता, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और स्तंभकार।

मणिपुर में दो महीने से हुई अशांति और हिंसा की स्थिति पर अब नियंत्रण की आशा दिखने लगी है। निश्चित रूप से इस तरह की भयावह हिंसा के घाव वर्षों तक दर्द देते रह सकते हैं। इस बीच राजनीतिक हंगामे और पड़ोसी राज्य मिजोरम को भी उत्तेजित करने के लिए हुए प्रयास भारत के दूरगामी हितों और अंतरराष्ट्रीय छवि के लिए खतरनाक हैं। मणिपुर में करीब 140 लोगों की मृत्यु और पचासों घर जल जाने तथा तनाव अविश्वास का माहौल सचमुच दुखद है, लेकिन इस स्थिति पर अतिरंजित पूर्वाग्रहों के साथ राजनीतिक बवाल भी उचित नहीं है।

पूर्वोत्तर में प्रगति के साथ सूचना क्रांति, अभिव्यक्ति की आजादी और सोशल मीडिया के प्रभाव से यह भ्रम बनाने के प्रयास हुए हैं कि यह अभूतपूर्व स्थिति है। जिम्मेदार राजनेताओं और जागरुक संस्थाओं के लोगों को ध्यान होगा कि आजादी के बाद हुई सबसे बड़ी साम्प्रदायिक हिंसा असम में 1983 में हुई थी, जब करीब दो हजार लोग मारे गए थे। केंद्र में श्रीमती इंदिरा गांधी की कांग्रेस सरकार सत्ता में थी। भारी हिंसा के 688 प्रकरण दर्ज हुए। जांच के लिए तिवारी आयोग बना, जिसने 600 पेज की रिपोर्ट दी। कांग्रेसी मुख्यमंत्री हितेश्वर सेकिया ने रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं होने दिया। महीनों तक 378 मामलों में कानूनी कार्यवाही भी चली, लेकिन लेकिन 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की सरकार द्वारा किए गए असम समझौते के तहत ये प्रकरण भी बंद कर दिए गए। बहरहाल, हाल के वर्षो में असम ही नहीं सम्पूर्ण पूर्वोत्तर राज्य तेजी से प्रगति कर रहे हैं।

पूर्वोत्तर की सामाजिक राजनीतिक चुनौतियां हमेशा रही हैं। 1966 में तो लुशाई पहाड़ियों में हजार से अधिक मिज़ो विद्रोहियों ने पूरे इलाके को तहस नहस कर दिया था, पुल उड़ा दिए थे, टेलीफोन के तार काट दिए थे और सरकारी दफ्तरों पर कब्जा कर लिया था। गड़बड़ी इतनी हो गई थी कि कथित विश्वसनीय विदेशी रेडियो बीबीसी ने तो मिजो क्षेत्र के भारत से अलग हो जाने की खबर प्रसारित कर दी थी। असम, मिजोरम, मणिपुर और नागालैंड में विदेशी समर्थन से अलगाववादी तत्व सदा सक्रिय रहे हैं। इसलिए पूर्वोत्तर में शांति के लिए वर्षों तक कार्य करने वाले और विद्रोही लालडेंगा को समझौते के रास्ते पर लाने वाले विधिवेत्ता मिजोरम के पूर्व राज्यपाल स्वराज कौशल द्वारा पिछले दिनों सोशल मीडिया ट्वीटर पर व्यक्त की गई यह आशंका सही लगती है कि “मणिपुर में हो रही हिंसा किसी षड्यंत्र का परिणाम है। पूर्वोत्तर पहले कभी भ्रष्टाचार मुक्त नहीं था और भाजपा शासन के दौरान सही अर्थों में विकास होने लगा। इस दृष्टि से यह भाजपा विरोधी ताकतों का षड्यंत्र है।” श्री स्वराज कौशल ने ट्वीट में यह चिंता भी व्यक्त की है कि “किसी इलाके में अलगाव और उग्रवाद का आंदोलन शुरू होने पर 25 वर्षों तक चलने का ख़तरा रहता है। इसलिए मणिपुर में शांति के लिए तत्काल हर संभव प्रयास होने चाहिए। "

यह स्वीकारा जाना चाहिए कि राज्य सरकार ने हिंसा रोकने के लिए समय पर पर्याप्त कदम नहीं उठाए। महिलाओं पर घिनोने अत्याचार के वीडियो सोशल मीडिया पर प्रसारित होने से स्थिति बिगड़ने के साथ प्रतिपक्ष को एक बड़ा मुद्दा मिल गया। गृहमंत्री अमित शाह ने पहले दो दिन लगाकर मेती और कुकी समुदाय के प्रतिनिधियों से विस्तार से बातचीत की। फिर भी स्थिति सामान्य नहीं हो पाई। बताया गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिन में तीन बार रिपोर्ट ले रहे हैं। अब केंद्र सरकार ने महिलाओं पर निर्मम अत्याचार की घटनाओं और उसके प्रचार से हिंसा भड़काए जाने की जांच सी बी आई को सौंपने का निर्णय कर लिया है। इस जांच से षड्यंत्र और अपराधियों पर कठोर कार्रवाई तथा राज्य प्रशासन की कमियों- गड़बड़ी भी सामने आ सकेगी।

कांग्रेस के कुछ नेताओं ने संसद में अविश्वास प्रस्ताव लाने के अलावा बार बार यह मुद्दा भी उठाया कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं मणिपुर क्यों नहीं गए? सरकार ने इस पर कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया। लेकिन मुझे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की एक बात याद आ गई, जो उन्होंने मुरादाबाद के बड़े सांप्रदायिक दंगे होने पर दो महीने तक उस क्षेत्र में न जाने के सम्बन्ध में कही थी। 21 अक्टूबर 1980 को पत्रकार के प्रश्न के उत्तर में कहा था- “जब सांप्रदायिक दंगे चल रहे हों तो परिस्थिति बिल्कुल भिन्न होती है, क्योंकि सब बातें सामने नहीं आती। प्रत्येक मौके पर चाहे मैं प्रधानमंत्री पद पर रही हूं या नहीं, प्रशासन यह महसूस करता है कि ऐसी यात्राओं से, विशेष रूप से किसी सरकारी व्यक्ति की यात्रा से तनाव बढ़ सकता है क्योंकि लोग आपके पास आते हैं और अपनी अपनी कहानियां सुनाते हैं और अगर बहुत से लोग एक जगह जमा हो जाएं तो कुछ भी घटित हो सकता है।” इस तरह की सलाह शायद आज भी वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी देते होंगे।

मुरादाबाद के दंगे में 2500 और बाद में भागलपुर के दंगों में 1000 से अधिक लोग मारे गए थे। चाहे मुरादाबाद हो या भागलपुर के भयावह दंगे रहे हों, यह तथ्य तो बाद में सरकारों ने माना है कि इन दंगों के लिए समाज के विभिन्न वर्गों को तत्कालीन सरकार के विरुद्ध भड़काने की कोशिश होती रही है। यही प्रयास अब भी हो रहे हैं। मणिपुर में पहले कुछ घटनाएं होती रही थी। वहीं मूल आदिवासी बहुसंख्यक मैती समाज के लोग ही भेदभाव और अत्याचार की शिकायतें करते रहे थे। इस बार एक अदालती आदेश से उन्हें भी आरक्षण सुविधा मिलने पर जब विरोध हुआ तो हिंसा भड़क गई। यह भी तथ्य है कि कुकी समुदाय और म्यांमार से आए हुए वर्ग को चर्च आदि का प्रश्रय मिलता रहा और आग भड़कने पर चर्च भी निशाना बन गए। चिंता की बात यह भी है कि किसी समय म्यांमार के रास्ते सक्रिय आतंकी तत्वों से निपटने के लिए स्थानीय समूहों को हजारों हथियार दिए गए थे। अब उन हथियारों का दुरुपयोग हो रहा है। देर से सही केंद्र सरकार ने 35  हजार सुरक्षा बल भेज दिया है। सेना द्वारा हथियारबंद लोगों को बहुत कड़ाई से रोकना होगा, ताकि हिंसा को पूरी तरह काबू किया जा सके।

इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता है कि असम और पूर्वोत्तर राज्य में गड़बड़ी के लिए विदेशी एजेंसियां और भारत विरोधी अलगाववादी संगठन सक्रिय रहे हैं। खासकर चीन और पाकिस्तान अवसर की तलाश में रहते हैं। सत्तर अस्सी के दशक में सी आई ए की गतिविधियों से निपटने के लिए केंद्र की सरकार सुरक्षा बलों के अलावा  गैर सरकारी राष्ट्रभक्त संगठनों  और सभी दलों के लोगो से सहयोग लेती थीं। भारत की बढ़ती शक्ति और सामाजिक आर्थिक विकास के साथ चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं। राष्ट्र की एकता, अखण्डता और सुरक्षा के लिए सर्वाधिक सद्भाव, राजनैतिक सहयोग और सुरक्षा प्रबंध की आवश्यकता है। आशा की जानी चाहिए कि संकीर्ण राजनीति से हटकर मणिपुर में शांति व्यवस्था लाने और सामान्य स्थिति बनने में यथा शीघ्र सफलता मिल सकेगी।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)


टैग्स
सम्बंधित खबरें

'S4M पत्रकारिता 40अंडर40' के विजेता ने डॉ. अनुराग बत्रा के नाम लिखा लेटर, यूं जताया आभार

इस कार्यक्रम में विजेता रहे ‘भारत समाचार’ के युवा पत्रकार आशीष सोनी ने अब इस आयोजन को लेकर एक्सचेंज4मीडिया समूह के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ डॉ. अनुराग बत्रा के नाम एक लेटर लिखा है।

1 day ago

हरियाणा की जीत पीएम नरेंद्र मोदी में नई ऊर्जा का संचार करेगी: रजत शर्मा

मोदी की ये बात सही है कि कांग्रेस जब-जब चुनाव हारती है तो EVM पर सवाल उठाती है, चुनाव आयोग पर इल्जाम लगाती है, ये ठीक नहीं है।

2 days ago

क्या रेट कट का टाइम आ गया है? पढ़िए इस सप्ताह का 'हिसाब-किताब'

रिज़र्व बैंक की मॉनिटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक सोमवार से हो रही है। लेकिन बैठक से पहले आयीं ज़्यादातर रिसर्च रिपोर्ट कह रही है कि रेट कट अभी नहीं होगा।

5 days ago

पांच भाषाओं को क्लासिकल भाषा का दर्जा देना सरकार का सुचिंतित निर्णय: अनंत विजय

किसी भी भाषा को जब शास्त्रीय भाषा के तौर पर मानने का निर्णय लिया जाता है तो कई कदम भी उठाए जाते हैं। शिक्षा मंत्रालय इन भाषाओं के उन्नयन के लिए कई प्रकार के कार्य आरंभ करती हैं।

5 days ago

आरएसएस सौ बरस में कितना बदला और कितना बदलेगा भारत: आलोक मेहता

मेरे जैसे कुछ ही पत्रकार होंगे, जिन्हें 1972 में संघ प्रमुख गुरु गोलवरकर जी से मिलने, प्रोफेसर राजेंद्र सिंह जी और के सी सुदर्शनजी से लम्बे इंटरव्यू करने को मिले।

5 days ago


बड़ी खबरें

वरिष्ठ TV पत्रकार अभिषेक उपाध्याय का क्या है ‘TOP सीक्रेट’, पढ़ें ये खबर

अभिषेक उपाध्याय ने अपने ‘एक्स’ (X) हैंडल पर इस बारे में जानकारी भी शेयर की है। इसके साथ ही इसका प्रोमो भी जारी किया है।

4 hours from now

‘दैनिक भास्कर’ की डिजिटल टीम में इस पद पर है वैकेंसी, जल्द करें अप्लाई

यदि एंटरटेनमेंट की खबरों में आपकी रुचि है और आप मीडिया में नई नौकरी की तलाश कर रहे हैं तो यह खबर आपके लिए काफी काम की हो सकती है।

14 hours ago

इस बड़े पद पर फिर ‘एबीपी न्यूज’ की कश्ती में सवार हुईं चित्रा त्रिपाठी

वह यहां रात नौ बजे का प्राइम टाइम शो होस्ट करेंगी। चित्रा त्रिपाठी ने हाल ही में 'आजतक' में अपनी पारी को विराम दे दिया था। वह यहां एडिटर (स्पेशल प्रोजेक्ट्स) के पद पर अपनी जिम्मेदारी निभा रही थीं।

1 day ago

’पंजाब केसरी’ को दिल्ली में चाहिए एंकर/कंटेंट क्रिएटर, यहां देखें विज्ञापन

‘पंजाब केसरी’ (Punjab Kesari) दिल्ली समूह को अपनी टीम में पॉलिटिकल बीट पर काम करने के लिए एंकर/कंटेंट क्रिएटर की तलाश है। ये पद दिल्ली स्थित ऑफिस के लिए है।

1 day ago

हमें धोखा देने वाले दलों का अंजाम बहुत अच्छा नहीं रहा: डॉ. सुधांशु त्रिवेदी

जिसकी सीटें ज़्यादा उसका सीएम बनेगा, इतने में हमारे यहाँ मान गये होते तो आज ये हाल नहीं होता, जिस चीज के लिए गये थे उसी के लाले पड़ रहे हैं।

1 day ago