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वरिष्ठ पत्रकार दयाशंकर मिश्र ने बताए, भय्यूजी महाराज के सुसाइड नोट के मायने
ऐसे व्यक्ति जिनके पास जीने के सौ कारण हैं, आत्महत्या का केवल एक....
समाचार4मीडिया ब्यूरो 6 years ago
‘जिंदगी में सपनों के पीछे पागल होना बुरा नहीं है। महत्वाकांक्षा खराब शब्द नहीं है। केवल तब तक जब तक आप इसकी डोर अपने हाथ से न फिसलने दें। जैसे ही यह डोर आपके हाथ से फिसलती है, जिंदगी अपने अर्थ छोड़कर भटकाव की पगडंडी पर निकल जाती है।’ अपने ब्लॉग ‘डियर जिंदगी’ के जरिए ये कहना है कि जी मीडिया के डिजिटल एडिटर दयाशंकर मिश्र का। भय्यूजी महाराज के सुसाइड पर लिखा उनका पूरा लेख आप यहां पढ़ सकते हैं-
भय्यूजी महाराज के सुसाइड नोट के मायने...
ऐसे व्यक्ति जिनके पास जीने के सौ कारण हैं, आत्महत्या का केवल एक। अगर इस एक को चुन रहे हैं तो समाज को वहां ठहरने
की जरूरत है। इसका अर्थ है कि हमने 'जीने' के जो कारण चुने हैं, उनमें जरूर कोई दोष आ गया है।
भय्यूजी महाराज 'मॉडल' संत
थे। मेरी भी उनसे एक मुलाकात थी। भोपाल में। वह हमारे अखबार के एमडी के मेहमान थे।
सब स्वागत के लिए बिछे थे। उनके सामने बिछने वालों की कतार बहुत लंबी थी। ऐसा
माना जाता है कि पहले वह फैशन डिजाइनर, मॉडल थे, जहां से होते हुए वह उस आध्यात्म के 'हीरो'
बन गए, जिसकी तलाश में अक्सर राजनेता,
ऐसे लोग होते हैं, जिन्हें ऐसे आत्मविश्वास
की जरूरत होती है, जिसका वह दिखावा तो करते हैं, लेकिन उनके भीतर वह होता नहीं।
भय्यूजी महाराज को ऐसा सेलिब्रिटी 'संत' कहा जा सकता है, जो जनता से 'क्लास' में जाने की जगह पहले 'क्लास' में लोकप्रिय हुआ, फिर जनता ने उसे जाना। उनकी 'रेंज' लोकप्रिय लोगों में भी ईर्ष्या पैदा करने वाली थी। जो भी हो भय्यूजी एक ऐसी दुनिया को रचने में सफल रहे, जिसमें समाज के धनवान, प्रतिष्ठित लोग विश्वास करने लगे, जिनके साथ होना 'ग्लैमरस' था।
ऐसा व्यक्ति जब अपने जीवन का अंत करने का निर्णय लेता है, तो यह चौंकाने वाली बात से अधिक परेशान करने वाली बात है। हम 'डियर जिंदगी' के पिछले कुछ अंकों में लगातार इस पर बात करते रहे हैं कि कैसे भारत, अमेरिका में ऐसे लोगों के बीच आत्महत्या लोकप्रिय हो रही है, जिनके पास वह सारी चीज़ें हैं, जिनके न होने के कारण, उनके लिए लोग बड़ी संख्या में जीवन समाप्त करने का निर्णय लेते हैं।
भय्यूजी के सुसाइड नोट के अंतिम शब्दों के भाव पकड़िए। 'मैं जा रहा हूं। थक गया हूं। परेशान हूं।' ऐसे व्यक्ति जिनके पास जीने के सौ कारण हैं, आत्महत्या का केवल एक। अगर इस एक को चुन रहे हैं तो समाज को वहां ठहरने की जरूरत है। इसका अर्थ है कि हमने 'जीने' के जो कारण चुने हैं, उनमें जरूर कोई दोष आ गया है। इसीलिए तो अनेक कारण छोड़कर एक सेलिब्रिटी जीवन के संघर्ष को छोड़कर जा रहा है।
दूसरों को सांत्वना देते-देते कई बार अपने लिए आंसू कम पड़ जाते हैं। दुनियाभर में सितारों के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है। अमेरिका की मशहूर फैशन डिजाइनर केट स्पेड और लोकप्रिय शेफ, फूड क्रिटिक एवं लेखक एंथनी बोरडैन की आत्महत्या की खबर भी इसी बात का विस्तार है। दुनिया इनमें सुख खोज रही थी, जबकि यह दुनिया की उस सामान्य चीज़ को तलाश रहे थे, जिसे आनंद, मौज, अपने में खुश रहना कहा जाता है।
'सब ठीक हो जाएगा, यह भी गुजर जाएगा', यह विचार कभी भारतीय जीवनशैली का अभिन्न हिस्सा रहे हैं। इसलिए भारत में तब आत्महत्या का खतरा उतना नहीं था, जब जिंदगी मुश्किल थी। अब जिंदगी आसान हो गई, तो हमारा जीना मुश्किल हो गया! इसलिए क्योंकि हम जीवन के मूल मंत्र 'सब ठीक हो जाएगा, यह भी गुजर जाएगा' से कहीं दूर निकल गए हैं।
जिंदगी में सपनों के पीछे पागल होना बुरा नहीं है। महत्वाकांक्षा खराब शब्द नहीं है। केवल तब तक जब तक आप इसकी डोर अपने हाथ से न फिसलने दें। जैसे ही यह डोर आपके हाथ से फिसलती है, जिंदगी अपने अर्थ छोड़कर भटकाव की पगडंडी पर निकल जाती है।
भय्यूजी जो परिवार, रिश्तों का पाठ दुनिया को पढ़ाते थे। असल में अपने शब्दों के अर्थ बहुत पहले खो चुके थे। उनके चरित्र में आए भटकाव से उनके अपने कष्ट में थे। जब कभी हम जीवन, मनुष्य और मनुष्यता को अनदेखा करके सपनों के पीछे दौड़ते हैं, तो हमारे जीवन के समंदर में गिरने का नहीं डूबने का खतरा होता है। ऐसी डूब जहां अच्छे से अच्छे गोताखोर हार जाते हैं।
इसलिए, किसी के पीछे पागल मत बनिए। किसी के फैन मत बनिए। अगर फिर भी दिल न माने तो बस अपने परिवार के फैन बनिए। उन दोस्तों, मित्रों में जिंदगी के अर्थ खोजिए, जो आपका साथ चाहते हैं। और आप बिना वजह उनमें रोशनी तलाश रहे हैं, जिनके चिराग में 'चरित्र', रिश्तों की कद्र और भावना की ईमानदारी नहीं है।
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