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जाने-माने न्यूज एंकर अनुराग मुस्कान ने अपने पापा को कुछ यूं किया याद...
'फादर्स डे' मौके पर जाने-माने न्यूज एंकर अनुराग मुस्कान ने फेसबुक पर अपने ब्लॉग से एक संस्मरण साझा किया है, जिसे उन्होंने अपने पिता जी की याद में साल 2010 में लिखा था---
समाचार4मीडिया ब्यूरो 6 years ago
'फादर्स डे' मौके पर जाने-माने
न्यूज एंकर अनुराग मुस्कान ने बीते वर्ष फेसबुक पर अपने ब्लॉग से एक संस्मरण साझा किया था,
जिसे उन्होंने अपने पिता जी की याद में साल 2010 में लिखा था। उनके इस संस्मरण को आप यहां पढ़ सकते हैं:
इमोश्नल अत्याचार....!
अभी-अभी एक हवाईजहाज सिर के ऊपर से उड़ कर निकला है। साल भर पहले जब पहली बार सचमुच हवाईजहाज में बैठा तो एहसास हुआ कि बचपन में इस हवाईजहाज ने भी कितना इमोशनल अत्याचार किया है हम पर। मन में, पापा से मिलने की कितनी बड़ी उम्मीद जगाई थी इसने, जो आगे चलकर जीवन की उलझनों को सुलझाने में पता नहीं कब और कहां गुम हो गई।
बचपन में स्कूल जाते हुए नन्हीं बहन पूछा करती थी कि ‘भईया, पापा हमारे पास नहीं आ सकते तो क्या हम भी पापा के पास नहीं जा सकते?’
- ‘पापा, भगवान जी के पास चले गए हैं पागल।’
- ‘तो क्या भगवान जी के पास अपन नहीं जा सकते, बोलेंगे हम पापा से मिलने आए हैं, हमारे पापा यहां आ गए हैं। प्लीज मिलवा दीजिए हमारे पापा से।’ वो मासूमियत से पूछती।
- ‘जा सकते हैं शायद, प्लेन में बैठकर जा सकते हैं, लेकिन उसके लिए बहुत सारे पैसे लगते हैं। एक दिन जाएंगे, जरूर।’
- ‘नहीं.... अभी चल ना मुझे मिलना है पापा से।’
और नन्हीं बहना आसमान में उड़ते एरोप्लेन को देखकर रोने लगती। स्कूल पास आते ही मैं उसे टीचर का डर दिला कर चुप करा देता। वो आंसू पोछकर चुप तो हो जाती थी लेकिन उसकी उसकी सुबकियां क्लॉस में दाखिल होने तक जारी रहतीं। ऐसा लगभग रोज ही होता था। क्योंकि स्कूल के पास ही खेरिया हवाईअड्डा था और थोड़े-थोड़े अंतराल पर वहां से हवाईजहाज होकर गुजरते थे। किसी-किसी रोज तो बहन पापा को याद करके रोते-रोते ‘मम्मी के पास जाना है’ की जिद पकड़ बैठती थी। फिर उसे उस रिक्शे में ही वापस भेजना पड़ता था। मैं तब चौथी क्लास में था और बहन पहली क्लास में। हम दोनों भाई-बहन एक साथ साईकिल रिक्शा में स्कूल जाते थे। स्कूल, आगरा का केन्द्रीय विद्यालय न.-1 घर से कोई आठ किलोमीटर दूर।
पिता के देहांत के बाद हम नागपुर से आगरा चले आए थे। हालत ही कुछ ऐसे बने कि नाना-नानी मां को उसके ससुराल वालों के साथ नहीं छोड़ सकते थे। उन्होने कभी खुद भी इच्छा जाहिर नहीं की मां को अपने साथ ले जाने की। वजह थी पापा की नौकरी। पापा के बाद किसे मिले उनकी नौकरी। दादी चाहती थीं कि नौकरी मेरे बेरोजगार चाचा को मिले। नाना-नानी चाहते थे कि नौकरी मेरी मां को मिले, जिससे हम भाई-बहन की परवरिश ठीक से हो जाए। हालांकि मां ने पापा के जीते-जी कभी घर से बाहर निकल कर नौकरी के बारे में सोचा तक नहीं था। हालात सब कुछ करवा देते हैं, नौकरी मां को मिली। और मां के ससुराल वाले इस बात से नाराज होकर इस हाल में उसे और अकेला कर गए।
पिता की मृत्यु के बाद मां की दुनिया पूरी तरह बदल चुकी थी। 28 साल की थी मेरी मां जब पापा इस दुनिया से गए। मेरी बहन को तो पापा का चेहरा तक याद नहीं। उनके साथ बिताया एक पल भी याद नहीं। मेरी यादों में फिर भी पापा के लाड़-प्यार के कुछ धुंधलके जरूर आज भी उमड़ते घुमड़ते हैं। हार्ट अटैक आया था पापा को। रात को सोते समय पलंग से गिर पड़े थे। मां की गोद में आखिरी सांस ली। मां ने पापा के चेहरे पर पानी के छींटे मारे, हाथेलियों और तलवों को रगड़ा, लेकिन पापा फिर नहीं जागे। मुझे नहीं पता था पापा अब नहीं लौटेंगे। बहन को तो इतना भी नहीं पता था। हम दोंनो बस मां को देखकर रोए जा रहे थे। मुझे लगा पापा बीमारी में बेहोश हो गए हैं, हॉस्पिटल से ठीक होकर आ जाएंगे। लेकिन वो ना ठीक हुए ना वापस आए।
उनके दाह संस्कार का वो पल मेरे बालमन के लिए सबसे ज्यादा पीड़ा दायक था। पापा मेरे सामने थे। मौन। चिरनिद्रा में। वो जाग जाते तो सब ठीक हो जाता। लेकिन....। मैंने रोते हुए पता नहीं किससे कहा था कि पापा के ऊपर इतनी भारी लकड़ियां मत रखिए प्लीज! पापा को बहुत चोट लग रही होगी, दर्द हो रहा होगा। मुझे वहां से कुछ देर के लिए हटा दिया गया। फिर कुछ देर बाद पापा को मुखाग्नि देते हुए समझ नहीं पा रहा था कि पापा हमें छोड़कर क्यूं चले गए, जबकि टॉयलेट और ऑफिस जाने के सिवा पापा कभी हमें अकेले नहीं छोड़ते थे।
आजतक नहीं समझ पाया हूं कि पापा क्यूं चले गए। आज भी पग-पग पर पापा की जरूरत महसूस होती है। उनकी कमी खलती है। उम्र और समझ के साथ मेरी और बहन की वो उम्मीद भी कब की टूट चुकी है कि पापा से मिलने हवाईजहाज से जाना मुमकिन है।
कुछ साल पहले जब पहली बार हवाईजहाज में बैठा तो सोचा कि इस हवाईजहाज ने भी कितना इमोश्नल अत्याचार किया है हम भाई-बहन पर। और मुस्कुरा दिया। मैं जमीन से कई हजार फीट की ऊंचाई पर था, लेकिन पापा से फिर भी बहुत दूर.....। आज भी जब कोई हवाईजहाज उड़ता देखता हूं तो बचपन की उन यादों का मेला लग जाता है कुछ देर के लिए।
(साभार: अनुराग मुस्कान की फेसबुक वॉल से)
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