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'नोबेल' चोरी होने पर कैलाश सत्यार्थी को आया ये मेसेज, सोशल मीडिया पर बटोर रहा है तारीफें...

समाचार4मीडिया ब्यूरो ।। भारत की आन-बान-शान के प्रतीक नोबेल पुरुस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के सहयोगी और पत्रकार अनिल पांडे ने हाल ही में कैलाश सत्यार्थी के घर हुई चोरी को लेकर एक प्राप्त मेसेज फेसबुक पर शेयर किया है। उस मेसेज को सोशल मीडिया पर खूब शेयर कि

समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago

समाचार4मीडिया ब्यूरो ।।

भारत की आन-बान-शान के प्रतीक नोबेल पुरुस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के सहयोगी और पत्रकार अनिल पांडे ने हाल ही में कैलाश सत्यार्थी के घर हुई चोरी को लेकर एक प्राप्त मेसेज फेसबुक पर शेयर किया है। उस मेसेज को सोशल मीडिया पर खूब शेयर किया जा रहा है। पेश है अनिल पांडे की वो पोस्ट...
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी जी के घर में चोरी की खबर के बाद मेरे पास एसएमएस और वॉट्सअप के जरिए ढेर सारे मैसेज आए। ऐसा ही एक मैसेज मध्य प्रदेश के विदिशा के रहने वाले भूपेंद्र शर्मा ने भेजा है। उनका मैसेज दिल को छू गया। इसलिए इसे फेसबुक पर साझा कर रहा हूं। भूपेंद्र जी ने सही कहा कि हम लोगों को “मेड इन इंडिया” की कद्र नहीं....

खबरें भी बड़ी बे-खबर होती हैं। आज सुना कैलाश सत्यार्थी जी का प्रतीकात्मक नोबल पुरस्कार कोई हरण कर ले गया!! बहुत बुरा हुआ, ऐसा मैं नहीं कहूंगा और ऐसा इसलिए नहीं कहूंगा क्योंकि सत्यार्थी जी की पहचान नोबल से नहीं है। वैसे ही जैसे अर्जुन की पहचान सिर्फ गांडीव से नहीं बल्की उनके पराक्रम से थी। गांधी की पहचान चरखे से नहीं थी, बल्कि वह विश्वास था जो स्वतंत्र भारत भूमि में तिरंगा फहराने का था। अम्बेडकर की पहचान बार-ऐट-ला की डिग्री नहीं, बल्की वो ज़ज्बा था जो वास्तविक दलित को बराबरी पर लाना चाहता था। अब्दुल कलाम की पहचान वो प्रमाण पत्र नहीं थे जो उनके वैज्ञानिक होने की पुष्टि करते थे, बल्की वो भावना थी जो भारत को परमाणु शक्ति से युक्त बनाना चाहती थी।

सत्तर के दशक के अभियन्ता कैलाश सत्यार्थी अपना घर-बार, नौकरी छोड़कर किसी पुरस्कार के लिए दर-दर भटकने नहीं गये थे, बल्कि अपने दिल में भारत के भावी भविष्य को शोषण से मुक्त करा कर उन्हें तराशने का मजबूत इरादा लेकर गये थे!! और कई मुश्किल इम्तिहान देकर इस जगह पहुंच गए, जहां की कल्पना किसी ने नहीं की थी। निश्चित ही इस सफर के दौरान सत्यार्थी जी अजात-शत्रु नहीं रह सकते थे। ज़िन्होंने इन प्रतीकात्मक पुरस्कारों का हरण किया वे दया के ही पात्र नहीं बल्कि, हास्य के भी पात्र हैं। क्योंकि सत्यार्थी जी आज भी समाज विरोधी आंदोलनों का संचालन कर रहे हैं और अंत तक उनको अराजक ही रहना है। राजकाज करने वाले भी सोचें कि पुरस्कारों के मामले में तो पहले वाले और अभी वाले भी नजर अंदाज करते रहे, लेकिन कम से कम नागरिक अधिकारों की सुरक्षा का तो आश्वासन दे दो। एक ऐसे शख्स को जो तुमसे कुछ अपेक्षा नहीं करते, उनकी उपेक्षा करना कैसे प्रासंगिक हो सकता है!! देश के वास्तविक और तथा- कथित बुद्धिजीवी भी सोचें कि हमने मदर टेरेसा और कैलाश सत्यार्थी के बीच इतना भेद क्यों किया? क्योंकि हमें “मेड इन इंडिया” अभी भी अच्छा नहीं लगता। खैर, सत्यार्थी जी का प्रभाव उनके आदर्श में है। वे भी चुरा ले जाते तो अराजक होने से बाहर आते। जय-हो....

भूपेंद्र शर्मा, विदिशा

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