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देश के कितने लोगों के पल्ले पड़ेगा अंग्रेजी में चलने वाला बैंकों का धंधा, बोले वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वैदिक
डॉ. वेद प्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार ।। मारे गए सफेद धनवाले! दिसंबर की पहली तारीख को देश का दृश्य क्या है? लाखों लोग कतारों में लगे हुए हैं। नोटबंदी को 22 दिन हो गए लेकिन जनता को कोई राहत नहीं है। इसमें शक नहीं कि सरकार हर दिन
समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago
डॉ. वेद प्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार ।।
मारे गए सफेद धनवाले!
दिसंबर की पहली तारीख को देश का दृश्य क्या है? लाखों लोग कतारों में लगे हुए हैं। नोटबंदी को 22 दिन हो गए लेकिन जनता को कोई राहत नहीं है। इसमें शक नहीं कि सरकार हर दिन ताबड़तोड़ इंतजाम कर रही है। जैसे डूबता हुआ बदहवास आदमी हर तरफ हाथ-पांव मारता रहता है, हमारी सरकार भी इस संकट में से बच निकलने की कोशिश कर रही है लेकिन न तो संकट का कोई अंत दिखाई पड़ रहा है और न सरकारी कोशिशों का !
अभी काला धन उजागर करने, पकड़ने और छापा मारने की बात तो सब भूल गए हैं। अभी तो सब इसी में खो गए हैं कि नए नोट कैसे आम जनता तक पहुंचें? यदि यह संकट 1 जनवरी तक भी बना रहा तो लोगों का इस सरकार पर से विश्वास उठ जाएगा। सरकार पर से ही नहीं, रुपए नामक मुद्रा पर से भी! पुरानी मुद्रा से उठ ही गया है, अब नई से भी उठ जाएगा।
भ्रष्टाचारी और आतंकी भी नई सरकारी मुद्रा में सिर्फ 2000 के नोट का इस्तेमाल करेंगे और माननीय मोदीजी को दिल से दुआ देंगे। अब आम लोग नोट और करेंसी की बजाय सोना, चांदी, जमीन, डॉलर, पाउंड वगैरह को ही अपनी धरोहर के रुप में संभालने लगेंगे। बैंकिंग, डिजिटाइटेशन, कागजी ट्रांसफर वगैरह का बुखार अपने आप उतार जाएगा।
सोचिए कि देश की 80-90 प्रतिशत जनता, जो नकद पर निर्भर है, उसका क्या होगा? अंग्रेजी में चलने वाला बैंकों का धंधा देश के कितने लोगों के पल्ले पड़ेगा? ऐसा नहीं है कि सरकार में बैठे लोग वज्र मूर्ख हैं। वे अपनी करतूत को समझ रहे हैं। फिर भी वे मजबूर हैं। अब उन्होंने सोने का शोशा छोड़ दिया है। इस गड़े मुर्दे को उखाड़कर वे उसके हाथ-पांव हिलवा रहे हैं। लोगों के दिल में फिजूल की दहशत पैदा कर रहे हैं।
अब सरकार शासन करना छोड़कर घर-घर में जाकर लोगों का सोना तलाशेगी। 22-23 दिन में उसने एक भी बड़े नेता या बड़े अमीर या बड़े तस्कर या बड़े अफसर को नहीं पकड़ा। वह क्या खाक काला धन खत्म करेगी? अब काले धन के बनने की रफ्तार दुगुनी हो गई है। बेचारे सफेद धन वाले मारे जा रहे हैं। उन्हें अपने पैसे पाने के लिए भी भिखारियों की तरह लाइन में लगना पड़ रहा है।
(साभार: नया इंडिया)
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