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किसानी की नई इबारत लिख रही, कभी खोजी पत्रकारिता करने वाली ये महिला पत्रकार
आलोक नंदन शर्मा वरिष्ठ पत्रकार ।। भूमिका कलम : उदय भारत की महिला किसान कुछ लोग जिंदगी में एक राह तय कर लेने के बाद उस पर मीलों चलते हैं, फिर उनके साथ कुछ ऐ
समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago
आलोक नंदन शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार ।।
भूमिका कलम : उदय भारत की महिला किसान
कुछ लोग जिंदगी में एक राह तय कर लेने के बाद उस पर मीलों चलते हैं, फिर उनके साथ कुछ ऐसा होता है कि उनकी राह अचानक बदल जाती है। गांव और खेत उन्हें अपनी ओर बुलाते हैं और वह भी अपने आपको नए रूप में देखने लगते हैं, अपनों के बीच। सही मायने में उन्हें अपने आप से साक्षात्कार हो जाता है। कलम छोड़कर खेती की राह पकड़ने वाली भूमिका कलम को ऐसे ही लोगों में शुमार किया किया जा सकता है। खोजी पत्रकारिता को अलविदा कर भूमिका कलम मध्य प्रदेश की युवा महिला किसान के रूप में अपनी पुश्तैनी जमीन से न सिर्फ एक बार कई-कई फसलें बो और काट रही हैं, बल्कि वहां के किसानों को भी लाभकारी खेती का नया अंदाज सिखा रही हैं।
भूमिका कलम मध्य प्रदेश में सामुदायिक खेती को बहुत ही तरीके से तराश रही हैं। अपनी जमीन पर फसलों के बीच में बांस बो रहीं हैं। इन बासों को पहले ही बेच चुकी हैं। इसके अलावा एक साथ कई फसलें भी काट रहीं हैं। मंडी के व्याकरण को तोड़ने के लिए किसानों की हित वाली बात साफ अंदाज में समझाते हुए कहती हैं, ‘पिछली बार किसानों ने गलती की थी। सभी किसानों ने अपनी खेतों में अरहर लगा दिया था। अरहर की पैदावार अचानक बढ़ जाने की वजह से मंडी में इसकी कद्र कम हो गई थी, इसका फायदा बिचौलियों और व्यापारियों ने उठाया। अरहर की कीमत उन्होंने कम लगाई। इसलिए इस मर्तबा यहां के सारे किसान अलग-अलग फसल लगा रहे हैं। हमलोगों ने आपस में बैठ कर निर्णय ले लिया है। थोड़ी सी सूझबूझ से काम ले तो मंडी किसानों के हिसाब से चलेगी। बस किसानों को भेड़चाल चलने से रुकना होगा।’
भूमिका कलम का अचानक पत्रकारिता से किसानी की ओर रुख करना कम रोचक नहीं है। इन्वेस्टिगेटिंग जर्नलिज्म करने के इरादे से उन्होंने पत्रकारिता की दुनिया में पेशकदमी की थी, कुछ कर गुजरने के मजबूत इरादों से लबरेज होकर। अपने इंजीनियर पिता को कम उम्र में ही वह खो चुकी की थी। जब वह नौंवी कक्षा में थी तभी पिता जी एक दिन घर से ड्यूटी के लिए निकले फिर लौट कर नहीं आये। हर्टअटैक से उनकी मौत ड्यूटी पर ही हो गई थी। उसी समय भूमिका ने तय कर लिया था कि वह सरकारी नौकरी नहीं करेगी। उन्हें एक खोजी पत्रकार बनना है।
उनकी खोजी पत्रकारिता को मध्य प्रदेश में महूसस किया गया। उन्हें भी यकीन हो गया था कि वह एक बेहतर खोजी पत्रकार बन चुकी है। खबरों की तलाश में वह जमकर पसीना बहाती थी और खबर मिल जाने के बाद उन्हें तरीके से परोसने का उनका सलीका भी उम्दा था।
किसानों के साथ बदस्तूर राब्ता ने उनकी सोच को एक अलग दिशा में ढालना शुरू कर दिया, या यूं कहा जा सकता है उनकी जिंदगी की पुनरावृति होने लगी, कृषि के साथ जुड़े रहने की उनके मन में उनके दिवगंत पिता की इच्छाओं के जागृत हो उठने के रूप में। उनके पिता को खेत और खेती सी लगाव था। किसानों के नाम पता और फोन नंबर की फेहरिश्त बनाते हुए वह एक गांव से दूसरे गांव में भटकने लगी। उनसे मिलती, बातें करती और उनकी बातों पर स्टोरी बनाती। अखबार के पन्नों पर अपनी खबरें पढ़ते हुए किसान भूमिका की रपटों के माध्यम से एक दूसरे को जानने लगे। अब तक भूमिका किसानों को उनके नजरिये से देख रही थी और थोड़ा बहुत गुंजाइश होता तो खोजी पत्रकार वाली दृष्टि से भी टटोल लेती।
इसी दौरान आर्टिसन एग्रो-टेक के देव मुखर्जी से मुलाकात ने उन्हें उनकी जिदंगी के वास्तविक स्टफ पर लाकर खड़ा कर दिया। देव मुखर्जी किसानों पर लंबे समय से काम कर रहे थे। एग्रो-टेक के साथ कदमताल उनके सफर का एक हिस्सा था। उनके संपर्क में आने के बाद कृषि की पैतृक समझ रखने वाली भूमिका की आंखों के सामने एक नई दुनिया उभरने लगी। कृषि के मूलमंत्र को उन्होंने आत्मसात कर लिया। इस बारे में वह कहती हैं, ‘बड़ी सहजता से सबकुछ होता चला गया। बचपन में अपने पिता के मुंह से फसलों के बारे में सुना करती थी। एक बार उन्होंने खेतों में सोया लगाया था, जिसमें नुकसान हो गया था। इसके बाद वह लगातार इस बात पर चर्चा करते थे कि कैसे फसलों को लाभकारी बनाया जाये। पिता जी की बातों से मैं इतना तो समझ गई थी कि बाजारवाद के बदलते परिवेश में फसलों को लाभकारी बनाये बिना खेती की औचित्यता को सिद्ध नहीं किया जा सकता है। कुछ अलग शब्दों में देव मुखर्जी भी कमोबेश यही कह रही थे कि किसानी करनी है तो फसलों से अधिक से अधिक कमाई के बारे में सोचो। मेरे सामन फार्मूला खुल चुका था- किसानी से कमाई करने का।’
इस मामले में राजस्थान पत्रिका में भूमिका कलम के इमीडिएट बॉस ने भी उन्हें पत्रकारिता से निकल कर कृषि कार्य के लिए प्रेरित किया। इससे उनके कॉन्फिडेंस में इजाफा हुआ और कृषि को लेकर उनकी हिचक टूटती चली गई। नौकरी को अलविदा कर किसानी करने के इरादे से उन्होंने अपने पैतृक गांव पढ़रकला की तरफ रुख किया, जो मध्य प्रदेश के हरबा जिले के सीराली तहसील में पड़ता है।
देव मुखर्जी की दिशा निर्देश में भूमिका कलम ने आर्टिसन एग्रो-टेक के साथ बांस उत्पादन को लेकर एक करार कर लिया। आर्टिसन एग्रो-टेक गन्ना के निर्धारित मूल्य पर बांस खरीदने के लिए तैयार हो गया। अपने खेतों बांस लगाकर भूमिका एक ही जमीन पर कृषि में मल्टीपल फसल प्रणाली (बहुफसलीय पद्धति) को व्यवस्थित तरीके से लागू करते हुए एक साथ कई फसलें लगा रही हैं। इस बाबत वह कहती हैं, ‘अहम सवाल है कि किसानों को नुकसान क्यों होता है? खेत में सिर्फ एक फसल लगाने से यदि किसी कारणवश वह फसल मर जाती है तो किसान परेशान हो जाते हैं। इस स्थिति से बचने का सबसे अच्छा तरीका है एक ही जमीन पर एक साथ कई फसल लगाना। कुछ शॉर्ट टर्म की फसलें हो और कुछ लॉन्ग टर्म की। अरहर, मसूर, सोयाबीन आदि शॉर्ट टर्म की फसलें हो सकती हैं और बांस लॉन्ग टर्म की। खेती में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आप अपनी फसलों को कैसे प्लान करते हैं। यदि किसान एक ही जमीन पर एक साथ कई उत्पादन हासिल करे और इनको बेचने का करार पहले ही कर ले तो उन्हें कभी भी अनचाहे नुकसान का सामना करना नहीं पड़ेगा। किसान तो देने वाला होता है उसे किसी से कुछ मांगने की जरूरत नहीं है, बस जमीन के मुताबिक अपनी फसलों को सही तरीके से प्लान करने की जरूरत है।’
इतना ही नहीं भूमिका कलम खेती के व्यापारिक गणित को भी हौले-से बदलने की जुगत बना रही हैं। इस बाबत वह कहती हैं, ‘अपना माल सीधे जरूरतमंद कृषि फर्मों को बेचकर हम मंडी की सौदेबादी से बाहर निकलने की योजना पर काम कर रहे हैं। आगे हम अपनी खेतों में तुलसी और अश्वगंधा लगाने जा रहे हैं। इनका इस्तेमाल चाय के साथ किया जाता है। इन फसलों को सीधे हम उन कंपनियों को बेचेंगे जो चाय बनाने के काम में लगे हुए हैं। इन्हें खेत में अन्य फसलों के साथ भी उपजाया जा सकता है। मंडी में बिचौलियों की वजह से किसानों को भी अपनी फसलों का उचित मूल्य नहीं मिलता है और कंपनियों को भी नुकसान होता है। और अंत में लोगों इस तरह के उत्पादनों की अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। बिचौलियों को हटाकर किसानों की खुशी भी बढ़ेगी और लोगों को भी कम कीमत पर उत्पाद मिल सकेगा। यदि कंपनी किसी फसल का न्यूनतम मूल्य फिक्स कर देते हैं तो किसान भी निश्चिंत होकर अपना काम कर सकेंगे।’
साभार: यथावत
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