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एन वक्त पर बीजेपी का चलेगा ये कार्ड...

भाजपा ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में साफ कर दिया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी...

समाचार4मीडिया ब्यूरो 6 years ago

अंजना पाराशर ।। 

मेरे पास मोदी है

भाजपा ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में साफ कर दिया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रैंड वैल्यू ही उनके लिए राज्यों और लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ी पूंजी होगी। बाकी मुद्दों पर समय, स्थान और परिस्थितियों के मुताबिक भाजपा हवा देगी। मेरे पास मां है कि तर्ज पर  भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एलान कर दिया है कि मेरे पास मोदी हैं। 

दरअसल भाजपा को लग रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा अभी भी सब पर भारी है। उनकी छवि पर कोई दाग नही है। कांग्रेस का राफेल बाण बहुत कारगर नही रहा है। भाजपा को दलित व पिछड़ों के लिए किये गए कानूनी उपाय से इन वर्गों का साथ मिलने का भरोसा  और सवर्णों के पास विकल्पहीनता का विश्वास है। इन सबसे ऊपर हिन्दुत्व का कार्ड एन वक्त पर चलेगा ही। लेकिन भाजपा को पता है कि चुनाव हवा का होता है इसलिए हवा खराब न हो। मोदी नाम का सहारा लेकर पहले राज्यों का चुनाव जीतने के लिए पार्टी पूरा जोर लगाएगी। 

राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ के साथ तेलंगाना चुनाव को भी पार्टी ने पूरी गंभीरता से लड़ने की रणनीति बनाई है। भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और उनकी भरोसेमंद टीम इन चुनावों की व्यूह रचना और निगरानी कर रही है।। भाजपा को लगता है कि अगर विधानसभा चुनावों में दांव निशाने पर नही लगा तो लोकसभा के लिए माहौल बिगड़ सकता है। फिर ब्रैंड वैल्यू की चुनौती भी कई गुना बढ़ जाएगी। 

भाजपा के लिए लोकसभा चुनाव के लिहाज से स्थिति तो बेहतर कही जा सकती है। उनके कार्यक्रम और सक्रियता के मुकाबले विपक्ष की रणनीति काफी पीछे है। मोदी के लोकप्रिय चेहरे का मुकाबला कौन करेगा ये तय नहीं है और शायद चुनाव तक तय भी नही होगा।  

लेकिन विधानसभा की स्थिति अलग है। राजस्थान में कांग्रेस को जबरदस्त एन्टी इनकंबेंसी का भरोसा है। मध्यप्रदेश में सवर्ण वर्ग जिस तरह से अपनी नाराजगी सड़क पर निकलकर दिखा रहा है उसका सबसे ज्यादा सामना शिवराज सरकार को ही करना है। छतीसगढ़ में भी रमन नाम केवलम की स्थिति नही है, बल्कि रिपोर्ट्स है कि लड़ाई वहां भी काफी दिलचस्प है। 

ऐसे में भाजपा को मोदी ब्रैंड कितना आगे ले जा पाएगा ये कह पाना मुश्किल है। हां ये जरूर है कि भाजपा की चुनौती का मतलब ये नही है कि कांग्रेस के पक्ष में कोई लहर चल रही है। दरअसल सरकार के कई फैसलों से नाराज लोग किसी विकल्प को वोट देना पसंद करेंगे और जहां भाजपा और कांग्रेस ही प्रमुख दल हैं, कांग्रेस स्वाभाविक विकल्प बनने का दावा कर सकती है। दरअसल, कांग्रेस की संगठनात्मक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। राहुल गांधी की अगुवाई में कांग्रेस बदलाव के दौर से गुजर रही है। नए लोग अभी जमे नही है, पुराने नेताओ की गुटबाजी बड़ा मुद्दा है। कांग्रेस के पास कोई चमत्कार करने वाला चेहरा नही है। उनका सारा दारोमदार भाजपा सरकार की नाकामयाबी पर टिकी है। ऐसे में ये देखना दिलचस्प होगा कि लड़ाई क्या रूप लेती है। 

तेलंगाना के चुनाव भी शायद ही एकतरफा हो। अतिआत्मविश्वास से लबरेज मुख्यमंत्री के.सी.आर ने विधानसभा आठ महीने पहले जरूर भंग कर दी लेकिन कई बार सत्ता की चकाचौंध में आसपास की तस्वीर ही सच नही होती। श्रद्धेय पूर्व प्रधानमंत्री अटल जी ने ऐसा ही जोखिम 2004 में लिया था। 'इंडिया शाइनिंग' का ग्लैमर इस कदर था कि किसी को नही लगता था कि अटल जी चुनाव हार सकते हैं। लेकिन दांव उल्टा पड़ा। इस मामले में मोदी जी ने थोड़ा संयम दिखाया है। उन्हें भी 'देश बदल रहा है' के नारे के साथ जल्द चुनाव में जाने का सुझाव बहुत लोगों से मिला लेकिन अभी वे शायद ये जोखिम लेने के मूड में नही हैं।  

फिलहाल ब्रैंड मोदी बनाम सब के भंवर से 'कौन राजा होगा... कौन रंक' ये समय बताएगा। लेकिन अब लगातार 2019 तक चुनावी पारा गरम ही नजर आएगा। जनता अपने पत्ते सही वक्त पर ही खोलेगी।

 


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