होम / विचार मंच / कैसे नोटबंदी का बड़ा असर पड़ेगा आम आदमी पर, बताया रोहित सरदाना ने...
कैसे नोटबंदी का बड़ा असर पड़ेगा आम आदमी पर, बताया रोहित सरदाना ने...
रोहित सरदाना आउटपुट एडिटर व एंकर, जी न्यूज ।। 8 नवंबर को नोटबंदी के फैसले के बाद से दिल्ली की आम आदमी पार्टी ने मुंबई और चंडीगढ़ के निकाय चुना
समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago
रोहित सरदाना
आउटपुट एडिटर व एंकर, जी न्यूज ।।
8 नवंबर को नोटबंदी के फैसले के बाद से दिल्ली की आम आदमी पार्टी ने मुंबई और चंडीगढ़ के निकाय चुनावों से हाथ पीछे खींच लिए। ये इत्तेफाक भी हो सकता है और झटका भी।
कांग्रेस के नेता कह रह हैं कि नोटबंदी का फैसला आर्थिक नहीं, राजनीतिक है। उत्तर प्रदेश के चुनाव को देखते हुए ये फैसला किया गया है।
नोटबंदी पर राजनीतिक पार्टियों के हंगामे के बीच ये बात दब गई है कि देश में चुनाव सुधार को लेकर दो बड़े विषयों पर चर्चा शुरू हो चुकी थी। एक, राज्यों के विधानसभा चुनाव और देश के लोकसभा चुनाव एक साथ हों। दूसरा, चुनाव स्टेट स्पॉन्सर्ड हों यानि सरकारी खर्च पर हों।
नोटबंदी से काले धन पर लगाम लगी तो सबसे ज़्यादा नुकसान राजनीतिक पार्टियों को ही होगा। जिस देश में विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव में चुनाव खर्च की सीमा तय होने के बावजूद, पार्टियां कई सौ गुना ज़्यादा खर्च करती हों, वहां अगर सरकारी खर्च पर चुनाव होने लगें तो सोचिए कितना बड़ा बदलाव आएगा।
बिल्डरों, भू माफियाओं, उद्योगपतियों से चंदे के नाम पर उगाही कर के जीतने वाले उम्मीदवार, जब जीतने के बाद कुर्सी पर आते हैं तो वो ‘फेवर्स’ लौटाने के लिए उनके पक्ष में फैसले लेते हैं न कि जनता के। जब उनका पैसा चुनाव प्रक्रिया से हट जाएगा, तो जन प्रतिनिधियों से बेहतर फैसलों की उम्मीद की जा सकेगी।
राजनीतिक राजशाही से मुक्ति दिलाने की दिशा में ये कदम बड़ा क्रांतिकारी हो सकता है। इस देश में आम आदमी को चुनाव लड़ने का अधिकार तो दिया जाता है, लेकिन उसकी औकात नहीं होती कि वो चुनाव लड़ने के बारे में सोच सके। अगर चुनाव का खर्च सरकारी स्तर पर होगा, तो राजनीतिक पार्टियां उन काबिल लोगों को भी मौका देने के बारे में सोच सकेंगी जो दावेदारी के लिए इनवेस्ट्मेंट करने का जोखिम नहीं उठा सकते।
जिस देश में लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार की खर्च सीमा 70 लाख रुपए अधिकतम और विधानसभा चुनाव के लिए 28 लाख रुपए अधिकतम तय की गई हो, वहां उम्मीदवार अनुमानत: 25 करोड़ रुपए तक खर्च कर देते हों, तो ज़रूरी है कि इस पर लगाम लगे।
सेंटर फ़ॉर मीडिया स्टडीज़ के अनुमान के मुताबिक, 2014 के लोकसभा चुनाव पर करीब 35000 करोड़ रुपए खर्च हुए। हालांकि चुनाव आयोग का अपना हिसाब कुछ और कहता है।
सरकारी खर्च पर चुनाव हों तो लोकसभा और विधानसभा चुनाव का कुल खर्च इससे कहीं कम होगा। समय आ गया है जब नोटबंदी के बाद, सरकारें चुने जाने की प्रक्रिया में काले धन की नसबंदी के लिए भी कोई सख्त कदम उठाया जाए।
(साभार : फेसुबक वॉल से)
समाचार4मीडिया देश के प्रतिष्ठित और नं.1 मीडियापोर्टल exchange4media.com की हिंदी वेबसाइट है। समाचार4मीडिया.कॉम में हम आपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय, सुझाव और ख़बरें हमें mail2s4m@gmail.com पर भेज सकते हैं या 01204007700 पर संपर्क कर सकते हैं। आप हमें हमारे फेसबुक पेज पर भी फॉलो कर सकते हैं।
टैग्स