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सरकार ने पगड़ियों-गुलदस्ते पर खर्चे 15 करोड़, आलोक मेहता ने की सटीक टिप्पणी
सरकार ने पगड़ियों-गुलदस्ते पर खर्चे 15 करोड़, आलोक मेहता ने की सटीक टिप्पणी
‘राजस्थान की नगरपालिकाओं, नगर परिषदों और नगर निगमों में फिजूलखर्ची की एक बुरी तस्वीर सामने आई है। प्रदेश के स्थानीय निकायों में जनप्रतिनिधियों, विशेष मेहमानों और अन्य लोगों को पगड़ियां पहनाने,शॉल ओढ़ाने, गुलदस्ते भेंट करने और मोमेंटो देने में ही 30 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो जाते हैं। अगर इसमें फोटोग्राफी और विडियोग्राफी का खर्च भी जोड़ लें तो यह
समाचार4मीडिया ब्यूरो
8 years ago
‘राजस्थान की नगरपालिकाओं, नगर परिषदों और नगर निगमों में फिजूलखर्ची की एक बुरी तस्वीर सामने आई है। प्रदेश के स्थानीय निकायों में जनप्रतिनिधियों, विशेष मेहमानों और अन्य लोगों को पगड़ियां पहनाने,शॉल ओढ़ाने, गुलदस्ते भेंट करने और मोमेंटो देने में ही 30 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हो जाते हैं। अगर इसमें फोटोग्राफी और विडियोग्राफी का खर्च भी जोड़ लें तो यह राशि 50 करोड़ रुपए से ऊपर पहुंच जाती है।’ इसी संदर्भ में हिंदी मैगजीन आउटलुक के डिजिटल प्लेटफॉर्म पर वरिष्ठ पत्रकार आलोक मेहता का एक आलेख पब्लिश हुआ है, जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं:
‘हुजूर’ के लिए करोड़ों के गुलदस्ते
देश के 33 करोड़ लोग सूखे और जल संकट से परेशान हैं, लेकिन शहरों और गांवों तक पहुंचने वाले नेताओं, मंत्रियों के स्वागत-सम्मान में गुलदस्ते, फूलमाला,प्रतीक चिह्न भेंट करने पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं।
ब्रिटिश राज में अंग्रेज साहब बहादुर, राजा, जमींदार के दरबार में फल-फूल और उपहार की डलिया लेकर पहुंचना होता था। अंग्रेजों की विदाई हुए 70वर्ष होने जा रहे हैं, लेकिन नए ‘हुजूर’ कभी सीना तानकर, कभी गर्दन झुकाकर, कभी पैर छूने पर आशीर्वाद देकर प्रसन्नता के साथ गुलदस्ते,उपहार इत्यादि स्वीकारते हैं। बड़े मंत्री और नेता ही नहीं नगरपालिकाओं,नगर-निगमों और जिला परिषद के चुने गए सदस्य सरकारी खजाने से भी इस स्वागत-सत्कार का इंतजाम करवा लेते हैं।
ताजी खबर राजा-रानियों की परंपरा वाले राजस्थान से है, जहां स्थानीय नगरपालिकाओं और नगर-निगमों के निर्वाचित सदस्यों के स्वागत में केवल पगड़ियों की खरीदी पर 5 करोड़ रुपए खर्च हुए। इसी तरह 10 करोड़ रुपए के गुलदस्ते और 15 करोड़ रुपए के प्रतीक चिह्न भेंट किए गए। कई नेताओं के पास तो आतिथ्य के नाम पर मिली पगड़ियों के ढेर हो जाते हैं।
यह बात अलग है कि सामान्य दिनों में अधिकांश बिना पगड़ी के ही काम पर आते-जाते दिखते हैं। प्रतीक चिह्नों से दुकानदारों की कमाई भले ही हो जाए, नेताओं के कमरों में पर्याप्त जगह नहीं मिल पाती। आप इसे घोटाला भी नहीं कह सकते, क्योंकि पगड़ी, प्रतीक चिह्न आदि की खरीदी के लिए बाकायदा प्रशासकीय टेंडर निकाले जाते हैं। नगरपालिकाओं के कर्मचारियों और मजदूरों के वेतन का इंतजाम मुश्किल से होता है, लेकिन नेताओं की बैठकों, कार्यक्रमों, सुविधाओं में ‘जन सेवा’ के नाम पर खर्च बढ़ता रहता है। भाजपा शासित एक प्रदेश में जल प्रदाय से जुड़े हजारों कर्मचारियों को 32महीने से पूरा वेतन ही नहीं मिल पाया है।
राजधानी दिल्ली के नगर-निगमों के स्कूलों में इस वर्ष 6 लाख बच्चों को पाठ्य पुस्तकें, नोट बुक तक नहीं मिल सकी है। लेकिन पार्षदों और विधायकों के वेतन भत्तों में कोई कमी होने के बजाय बढ़ोतरी हुई है। महाराष्ट्र, गुजरात, आंध्र, तेलंगाना, कर्नाटक, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और बंगाल-केरल में भी नेताओं को फूलमाला, गुलदस्तों की बहार रहती है। महात्मा गांधी और डॉ. बी.आर. अंबेडकर का नाम लेने मात्र से नेताओं को लगता है कि गरीबों का उद्धार हो जाएगा।
(साभार: outlookhindi.com)
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