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नोटबंदी के बाद अब मुंहबंदी की कोशिश तो नहीं कर रही मोदी सरकार: डॉ. वैदिक
डॉ. वेदप्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार ।। बजटः पहले नोटबंदी, अब मुंहबंदी! वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जो बजट पेश किया, उसमें असाधारण तत्व क्या है, यह मैं ढूंढता ही रह गया। इस बजट में असाधारण तत्व की खोज मैं इसलिए कर रहा था कि इस सरकार ने आजादी के बाद का सबसे अधिक दु
समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago
डॉ. वेदप्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार ।। बजटः पहले नोटबंदी, अब मुंहबंदी!
वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जो बजट पेश किया, उसमें असाधारण तत्व क्या है, यह मैं ढूंढता ही रह गया। इस बजट में असाधारण तत्व की खोज मैं इसलिए कर रहा था कि इस सरकार ने आजादी के बाद का सबसे अधिक दुस्साहस का आर्थिक फैसला किया था, नोटबंदी का! नोटबंदी ने करोड़ों गरीबों को लाइनों में खड़ा कर दिया, लाखों लोगों को बेरोजगार कर दिया और कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया।
आम आदमियों ने सारी तकलीफें चुपचाप बर्दाश्त कीं और सरकार ने अपनी पीठ ठोक ली। लेकिन इस चुप्पी के पीछे छिपी जनता की दहाड़ ने सरकार के छक्के छुड़ा दिए। मोदी सरकार को उसने चारों खाने चित कर दिया। सारा काला धन उसने सफेद कर दिया। कई बैंकरों और आयकर अधिकारियों को मालामाल कर दिया। उसने भ्रष्टाचार को नेताओं की ड्यौढ़ी से बाहर निकाल कर जन-धन खाताधारियों तक पहुंचा दिया।
मैं सोचता था कि इस बजट में वित्तमंत्री नोटबंदी के लाभ और हानि पर विस्तार से प्रकाश डालेंगे और जो थोड़ा-बहुत नुकसान अभी हुआ है और जो भयंकर नुकसान अभी होने वाला है, उसके निराकरण के कुछ उपाय करेंगे लेकिन उन्होंने कांग्रेसी सरकारों के बजटों की तरह समाज के हर वर्ग को मीठी चूसनियां (लॉलीपॉप) बांट दी हैं। कोई भी वर्ग छूटा नहीं है। क्या किसान, क्या महिलाएं, क्या छात्र, क्या नौजवान, क्या वृद्ध, क्या व्यापारी, क्या गरीब, क्या अमीर सभी को चाशनी में भिगो-भिगोकर जेटली ने जलेबियां परोस दी हैं।
जेटली की जलेबियां मीठी हैं, अच्छी हैं, मनभावन हैं लेकिन उनसे पेट भरा जा सकता है, क्या? नोटबंदी के बाद यह कहीं मुंहबंदी की कोशिश तो नहीं है? कुछ माह बाद जब मंदी आएगी और लाखों बेरोजगार, जो अभी शहरों से अपने गांवों में जाकर दिन काट रहे हैं, जब वे सड़कों पर उतरेंगे, तब क्या होगा? तब नौकरशाहों के गुरों पर चल रही मोदी सरकार क्या करेगी? नौकरशाहों के गुर अंग्रेजी में होते हैं, जिन्हें हमारे अर्धशिक्षित नेता जैसे-तैसे रटकर दोहराते रहते हैं। जैसे TEC-INDIA या DIGITAL INDIA ! हमारे इन बेचारे नेताओं के पास इन अंग्रेजी मुहावरों के लिए हिंदी शब्द नहीं हैं, जिन्हें आम आदमी समझ सके। यदि बजट ऐसा होता कि जिससे देश के कम से कम 100 करोड़ लोगों के लिए रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा और इलाज की न्यूनतम सुविधा का रास्ता खुलता तो माना जाता कि यह राष्ट्रवादी सरकार का बजट है। अभी भी सुधार का मौका है।
(साभार: नया इंडिया) समाचार4मीडिया देश के प्रतिष्ठित और नं.1 मीडियापोर्टल exchange4media.com की हिंदी वेबसाइट है। समाचार4मीडिया.कॉम में हम आपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय, सुझाव और ख़बरें हमें mail2s4m@gmail.com पर भेज सकते हैं या 01204007700 पर संपर्क कर सकते हैं। आप हमें हमारे फेसबुक पेज पर भी फॉलो कर सकते हैं।टैग्स