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देव प्रकाश चौधरी ने बताया- कैसे मार्गेट थैचर पर चला था चंद्रास्वामी का मंत्र
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समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago
1990 के दौर में प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हाराव के दौर में अचानक सुर्खियों में आए तांत्रिक चंद्रास्वामी का मंगलवार को निधन हो गया। वह पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे। तांत्रिक चंद्रास्वामी के बारे में कहा जाता है कि वह नरसिम्हाराव के आध्यात्मिक गुरु थे। अमर उजाला के फीचर हेड देव प्रकाश चौधरी ने उन्हें याद करते हुए एक लेख लिखा है, जो अमर उजाला में प्रकाशित हुआ है। इस लेख को आप यहां पढ़ सकते हैं:
सियासत में खूब चला चंद्रास्वामी का 'मंत्र'
वह विवाद को गले की माला बनाते रहे। आशीर्वाद को अपना कवच समझते रहे। शान की जिंदगी जीते रहे। जिंदगी भर अपनी कुंडली में बैठे 'सियासी तंत्र' और 'मायावी मंत्र' की चाल पर नजर जमाए रहे। कभी प्रकाश पुंज की तरह चमके और कभी वनवास में भी पहुंचे। सियासी गलियारे के हर पिछले दरवाजे की चाबी उनके पास थी... क्योंकि स्वामी के सफर पर वह बाद में निकले थे, राजनीति में पहले पांव जमाया था। इसलिए भी कि वे चंद्रास्वामी थे।
राजस्थान के अलवर जिले के बहरोड़ में 1948 पैदा हुए चंद्रास्वामी बचपन में अपने पिता के साथ हैदराबाद चले गए थे। तब उनका नाम नेमिचंद जैन हुआ करता था।
सामान्य सी बात को रहस्य बना देने वाले नेमिचंद सबसे पहले नरसिंह राव के संपर्क में आए। राव आंध्र प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष थे तो उन्होंने युवा नेमि को हैदराबाद युवा कांग्रेस का महासचिव बनाया था। तब शायद किसी को नहीं पता होगा कि इस शख्स के लिए सियासत का सबसे बड़ा घराना जो दिल्ली में है, वह भी दूर नहीं। धीरे से एक दिन नेमि दिल्ली आ गए और उस समय युवा कांग्रेस के महासचिव और मध्य प्रदेश कांग्रेस के बड़े नेता रहे महेश जोशी के बंगले के बाहर वाले क्वार्टर में टिक गए। फिर अचानक एक दिन गायब हुए और खबर फैली कि नेमिचंद अमर मुनि नामक एक साधु के शिष्य हो गए हैं और बिहार-नेपाल सीमा पर तांत्रिक साधना कर रहे हैं। देखते-देखते जैन समुदाय का नेमिचंद पीछे रह गया। अब सबके सामने तांत्रिक चंद्रास्वामी थे। खुद को बताया था मां काली का महान भक्त।
महान तांत्रिक के इस उदय में तब के बड़े-बड़े नेता साथ थे और अधिकांश कृपा पाने के भी आतुर। पक्ष और विपक्ष के राजनेताओं, अफसरों और राजा-महाराजाओं की एक लाइन उनकी भक्ति और चमत्कारों में तल्लीन हो गई। सिनेमा के भी धुरंधर कतार में दिखे। दुनिया के बड़े-बड़े 'राजयोगियों' पर चंद्रास्वामी ने इतना प्रभावशाली सम्मोहन यंत्र चलाया कि इससे पहले के सारे आचार्य, सारे स्वामी और सारे ब्रह्मचारी वनवास में चले गए।
मायावी तंत्र के इस 'महान कलाकार' की मार्गेट थैचर से भी मुलाकात हुई थी। तब वह प्रधानमंत्री नहीं थीं। खबर फैली कि चंद्रास्वामी के आशीर्वाद ने उनकी भाग्यदशा बदल दी- ''वह प्रधानमंत्री बन गईं और जैसा कि स्वामी ने कहा था 11 साल तक प्रधान मंत्री रहीं।''
इसके बाद तो दर्जनों फिल्मी सितारों, राजनेताओं और अफसरों को लोगों ने चंद्रास्वामी के जन्मदिन पर उपहार और गुलदस्ते लेकर लाइन में खड़े देखा। इस कतार में आशा पारिख , राजेश खन्ना, चंकी पांडे जैसे भी सितारे थे। तब स्वामी का आश्रम दिल्ली के नानकपुरा इलाके में था।
देश में 'भाग्योदय की पुड़िया' बांटते-बांटते स्वामी थक जाते तो विदेश चले जाते। ऐसे ही एक 'पुड़िया' से एलिजाबेथ टेलर को जरूरत से ज्यादा ही 'फायदा' हो गया। स्वामी हॉलीहुड में भी छा गए। फिर दुनिया के सबसे रईस आदमी ब्रुनई के सुल्तान उनके परम शिष्यों में शामिल हुए। इसके बाद शाह फहद आए, जिनके बेटे के साथ ब्रिटेन की राजकुमारी डायना दुर्घटना में मारी गई थीं।
लेकिन चंद्रास्वामी के राजनीतिक और ख्याति के सफर की कुंडली में विवाद हमेशा 'लगन' में ही बैठा दिखा। अपने पुश्तैनी इलाके से इंदिरा गांधी तक और 10 जनपथ तक की सीधी पहुंच में उनके भाग्य की रेखा कई बार वक्र हुई। महागुरु चंद्रास्वामी पर बहुत सारे इल्जाम लगे। जिनमें राजीव गांधी हत्याकांड के अभियुक्तों की मदद करने का आरोप भी शामिल था। लंदन के भारतीय व्यापारी लखू भाई पाठक को ठगने के इल्जाम में और उनसे पी.वी नरसिंह राव के नाम पर पैसे वसूलने के मामले में चंद्रास्वामी को नरसिंह राव ने ही जेल भिजवाया था। लंदन के प्रसिद्ध हैराड्स मेगा स्टोर की खरीद में भी चंद्रास्वामी पर दलाली खाने के इल्जाम लगे। दुनिया के सबसे बड़े हथियार दलाल अदनान खाशोगी भी चंद्रास्वामी के संपर्क में आया था। खाशोगी को सात करोड़ रुपए विदेशी मुद्रा में देने का मामला चंद्रास्वामी पर वर्षों तक चला।
1991 में जब पीवी नरसिम्हादराव देश के प्रधानमंत्री बने, तो उसके तत्काल बाद चंद्रास्वामी ने दिल्लीन में एक बड़ा आश्रम बनाया था। कहा जाता है कि उस आश्रम की जमीन इंदिरा गांधी ने दी थी। इस आश्रम में एक रिपोर्ट के सिलसिले में स्वामी से मेरी दो मुलाकातें वर्ष 2005 में हुई थी। एक बड़े से तांबे के पॉट में सफेद कमल के फूल रखे हुए थे। बहुत कम रोशनी वाले उस कमरे में बैठे स्वामी ने कहा था-''अंधेरे में बैठा हूं लेकिन इसे ग्रहण नहीं समझना।''
अंधेरे से निकल नहीं पाए स्वामी। तब से स्वामी के भाग्य का सूरज अस्त ही था। फिर भी इस वनवास में भी कुछ साल पहले आईपीएल के शुरुआत के बाद एक कुंभ मेले में प्रीति जिंटा के लिए स्वामी ने एक यज्ञ किया था और तरक्की का आशीर्वाद दिया था।
लेकिन खुद की तरक्की में उनके मंत्र ने साथ नहीं दिया। इस बार का उनका अज्ञातवास कुछ ज्यादा ही लंबा था...और अब तो वह अनन्त लोक के वास पर चले गए हैं।
(साभार: अमर उजाला)
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