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वरिष्ठ पत्रकार निर्मलेंदु का बड़ा सवाल- क्या एक महीने तक बैंकें लगातार खुली नहीं रह सकतीं?
निर्मलेंदु कार्यकारी संपादक, राष्ट्रीय उजाला ।। पीएम नरेंद्र मोदी ने मन की बात में कहा कि वे जनता के सेवक हैं। सवाल यह उठता है कि यदि वे सचमुच सेवक हैं, तो
समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago
निर्मलेंदु
कार्यकारी संपादक,
राष्ट्रीय उजाला ।।
पीएम नरेंद्र मोदी ने मन की बात में कहा कि वे जनता के सेवक हैं। सवाल यह उठता है कि यदि वे सचमुच सेवक हैं, तो जनता को हो रही परेशानी देखकर वह इंतजामात सही क्यों नहीं करते? बीच-बीच में दो दिनों तक बैंक क्यों बंद रहता है। क्या एक महीने तक बैंकें लगातार खुली नहीं रह सकतीं। प्राइवेट उद्योग को कैश देने की अनुमति न देकर बैंकों को और ज्यादा सक्रिय क्यों नहीं किया जा रहा है। विरोधियों ने बंद का आह्वान किया है। कुछ साथ दे रहे हैं, तो कुछ पार्टियों ने साथ न देना ही समझदारी समझी, लेकिन मुझे यह समझ नहीं आता कि क्या बंद किसी भी समस्या का समाधान है? केंद्र सरकार भी लोगों को परेशान कर रही है और अब दूसरी पार्टियां भी जनता को ही परेशान कर रही हैं। तो सवाल यह उठता है कि केंद्र और दूसरी पार्टियों में अंतर क्या है?
नोटबंदी से रोजी-रोटी का संकट शुरू हो गया है। कहीं भूख, कहीं लाचारी, तो कहीं घर में चूल्हे नहीं जल रहे हैं। कैश नहीं। बाजार ठप। ट्रांस्पोर्ट सिस्टम ठप। किसान रो रहे हैं, तो गरीब परेशान हो रहे हैं।
नोटबदी में सूरत के कपड़ा कारोबार में हर दिन 75 से 100 करोड़ का नुकसान हुआ है, तो वहीं दूसरी ओर दिवाली से मिले शादियों के ऑर्डर रद्द हो गए। रिजर्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा कि जल्द दूर हो जाएंगी दिक्कतें, तो वहीं पीएम नरेंद्र मोदी कह रहे हैं कि हम भ्रष्टाचार, कालाधन बंद कर रहे हैं, तो विरोधी भारत बंद। एक सच यह भी है कि बैंकिंग व्यवस्था में झोल बढ़ा रहा है नकदी का संकट। बैंक की शाखाओं में समय से पहले समाप्त हो रही है नकदी। एक सच यह भी है कि सीमित शाखाओं को ही मिल रहे हैं 500 के नए नोट।
कहीं नोटबंदी से टूट गया दहेज का सपना, तो कहीं नए नोटों में नकल का डर सताने लगा है। कहीं नोटबंदी से बाजारों में पसरा सन्नाटा, तो कहीं कैश बरामदगी में गड़बड़ी का आरोप। बिग बाजार बना मिनी एटीम सेंटर। किसी ने कहा तुगलकी फरमान, तो किसी ने कहा कि काले धन को सफेद करने की कोशिशें जारी हैं। जनता पिस रही है, मजदूरों की मजदूरी बंद हो गई है। देश लाइन में लगा है। पैसे न मिलने के कारण कहीं बैंक के बाहर हंगामा, तो कहीं मारपीट। संजय राउत कहते हैं कि एटीएम बंद और बैंक में पैसे नहीं हैं।
कहीं मारपीट, तो कहीं लाठीचार्ज। ज्यादातर बैंकों के पास पैसे नहीं हैं। हालात सामान्य नहीं। कुछ बैंकों को छोड़कर पांच सौ के नोट ज्यादातर बैंकों में नहीं पहुंचे। नोटबंदी के साइड इफेक्ट। रोटी कपड़ा, मकान की जुगाड़ में लगी जनता परेशान। एक शख्स ने बताया, अपरिपक्व, अव्यवस्था, असफल और गलत डिजिशन। इस लाइन से कब छुटकारा मिलेगा? एक राजा का यह कर्तव्य है कि वह प्रजा की रक्षा करे, लेकिन नोटबंदी प्रकरण में बिना कारण प्रजा को दंड दिया जा रहा है।
जिसने अन्यायपूर्वक धन इक्ट्ठा किया है और अकड़ कर सदा सिर को उठाए रखा है, ऐसे लोगों से सदा दूर रहना ही बेहतर है। लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है कि यहां काला धन रखनेवालों के साथ ही साथ गरीब जनता को भी परेशान किया जा रहा है। एक कहावत है कि अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है, अन्यथा, ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है, और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाये उतना बेहतर है। मोदी जी ने इस बुराई के ढेर से निजात दिलाने के लिए नोटबंदी के रूप में जो ब्रह्मास्त्र छोड़ा है, उसका असर हमें बाद में देखने को मिलेगा।
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