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चुनावी बॉन्ड पर बोले वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वैदिक- इससे बड़ा ढोंग और पाखंड क्या हो सकता है?

अब सरकार और चुनाव आयोग में मुठभेड़ की तैयारी है। 2017 के बजट में वित्तमंत्री ने चुनावी बॉन्ड जारी करने की बात कही थी...

समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago

डॉ. वेद प्रताप वैदिक

वरिष्ठ पत्रकार ।।

चुनावी बॉन्ड: जेब तुम्हारी, हाथ हमारा!

अब सरकार और चुनाव आयोग में मुठभेड़ की तैयारी है। 2017 के बजट में वित्तमंत्री ने चुनावी बॉन्ड जारी करने की बात कही थी। उसे अब वे अमली जामा पहनाने वाले हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त नसीम जैदी ने सरकार को लिखा है कि इन बॉन्डों से चुनावी चंदे की पारदर्शिता खत्म हो जाएगी। इन बॉन्डों के जारी होने पर यह पता ही नहीं लग सकेगा कि किस पार्टी को किसने कितना चंदा दिया है।

अभी तो कोई व्यक्ति दो हजार रु. तक और कोई संस्था 20 हजार तक चंदा दे तो उसे अपना नाम बताने की जरूरत नहीं है, लेकिन अब लोग करोड़ों रु. के बॉन्ड लेंगे और वे चाहे जिस पार्टी को दे सकेंगे। देने वाले और लेने वाले के नाम बिल्कुल गोपनीय रखे जाएंगे। चंदादाता को अपनी ऑडिट रिपोर्ट में भी उसे दिखाने की जरूरत नहीं होगी। चंदा बैंको के जरिए ही दिया जा सकेगा। याने बॉन्ड बनाते वक्त बैंक भी डटकर कमीशन कमाएंगे। जो बॉन्ड बनवाएगा, उसका नाम बैंक को तो पता होगा लेकिन वह नाम कोई भी हो सकता है, असली भी और नकली भी!

सरकार के दिमाग में यह नया फितूर क्यों आया? उसे पता है कि नोटबंदी और एकात्म-कर (जीएसटी) के बावजूद काला धन धड़ल्ले से चलेगा। उस काले धन को सफेद करने का यह नया तरीका सरकार ने खोज निकाला है। इसका एक फायदा जरूर है। जो नकदी पैसा नेता या दलाल लोग बीच में खा जाते हैं, वह वे नहीं खा पाएंगे। दूसरा फायदा यह गिनाया जाता है कि चंदा देने वाला भी नहीं फंसेगा। वह राम को कितना दे रहा है और रावण को कितना, यह किसी को पता नहीं चलेगा। तीसरा फायदा राजनीतिक दलों को होगा। वे जनता के सामने सीना तानकर कहेंगे कि देखो, हमने काले धन का एक पैसा भी नहीं छुआ।

इससे बड़ा ढोंग और पाखंड क्या हो सकता है? चुनावी बॉन्ड जारी करना भ्रष्टाचार की जड़ों को सींचना है। सरकार के लिए यह मालूम करना बहुत आसान है कि जो पैसा उसकी पार्टी को मिला है, उसके अलावा शेष बॉन्डों का क्या हुआ है? सत्तारूढ़ दल अपनी जेब आसानी से भर लेगा लेकिन विपक्ष की जेब में बड़ा-सा छेद कर देगा। डर के मारे विपक्ष को कोई बॉन्ड ही नहीं देगा। भाजपा जरा सोचें, जब वह विपक्ष में होगी तो उसका क्या होगा?

 

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