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'नोटबंदी ने प्रधानमंत्री की नासमझी की पोल खोल दी, उनकी हर चाल मात खा रही है'
बृजेंद्र एस. पटेल एडिटर, ‘कैम्पसपोस्ट डॉट इन’ (Campuspost.in) ।। बैंक वालों को न तो सरकार का खौफ है और न ही कानून का…। नोटबंदी की आड़ में जमकर
समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago
बृजेंद्र एस. पटेल
एडिटर, ‘कैम्पसपोस्ट डॉट इन’ (Campuspost.in) ।।
बैंक वालों को न तो सरकार का खौफ है और न ही कानून का…। नोटबंदी की आड़ में जमकर लूटा, मिलकर लूटा और दोनों हाथों से भरपूर लूटा…। आर्थिक बदहाली के दलदल में डूबते अवाम को भले लाइन में धक्के खाने पड़ रहे हों पर इनकी पौबारह हो गई। गोया कायनात ने इन पर छप्पर फाड़कर नोटों की बेमौमस बरसात कर दी हो। सरेआम। धडल्ले से..। सरकार की नाक के नीचे बैंकों के कोषागार में लाखों करोड़ के नकली नोट जमा हो गए और ये सब बैंक रिकॉर्ड में खाताधारकों खातों में भी चढ़ गए हैं। इन नोटों से भरे लाखों संदूक भरकर बैंकों से जिला स्तर पर और वहां से राज्य स्तर पर और उससे भी आगे रिजर्व बैंक के टकसालों यानी छापाखानों पर सुरक्षित पहुंचाए जा चुके हैं।
सरकार के कान तब खड़े हुए जब रिजर्व बैंक से वित्त मंत्रालय और पीएमओ को बताया गया कि 30 दिसंबर तक 18 लाख करोड़ रुपये जाम हो सकते हैं। अब तक करीब 13 लाख करोड़ के नोट जमा हो चुके हैं, जबकि असली नोट महज 15 लाख करोड़ से भी कम हैं। चलन से हटाये जाने वाले नोटों के जमा किए जाने में अभी 22 दिन बाकी हैं। अब सरकार क्या करे? बैंकों में हर दिन करीब 30 हजार करोड़ जमा हो रहे हैं। सरकार के सामने नई मुसीबत है कि इसकी कैसे निगरानी हो कि नोट असली जमा हो रहा है या नकली?
सरकार हैरान है। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने अब तक 15 लाख करोड़ से भी कम 500 और 1000 के नोट छपवाए हैं। बीते शनिवार तक बैंकों में 12 लाख करोड़ जमा हो गए, तब सरकार के कान खुले। ये क्या हो गया? सरकार को इत्तला मिली है कि मौजूदा सप्ताह में 1 लाख करोड़ से ज्यादा नोट और जमा हो जाएंगे। यानी 13 लाख करोड़। आरबीआई के हाथ पांव फूल रहे हैं दिसंबर महीने के आखरी सप्ताह में नोट जमा करने की यही रफ्तार रही तो क्या होगा? फिर क्या करेगी सरकार?
दिसंबर महीना शुरू होने के बावजूद बैंकों में पुराने नोट जमा होने का सिलसिला नहीं थमा तो सरकार को लगा कि लोग काला धन सेविंग अकाडंट्स में जमा करा रहे हैं, ऐसा न करें इसलिए जनधन खातों में जमा रकम निकलाने पर रोक लगा दी और बाकी खातों से निकासी की अधिकतम सीमा तय कर दी। सरकार को उम्मीद थी जिनके पास काला धन है वे सरकार के पास 50.50 में प्रस्ताव पर जमा कराने आएंगे। पर बैंकों में जिनके पास असली नोट का कैश में काला धन है वे बैंकों में सीधे 20 फीसदी के कमीशन पर सीधे बदल रहे हैं और नकली नोट 80 फीसदी के कमीशन पर।
हैरान कर देने वाले तथ्य सामने आया है कि सरकार और बैंकों के बीच इस काम के लिए समन्वय पर ध्यान नहीं दिया गया। बैंकों पर निगरानी और सुरक्षा में भारी चूक हो गई। सरकार ने बैंकों पर ईमानदारी से काम को अंजाम देने का भरोसा कर लिया। कोई आंकलन या पूर्वानुमान पर गौर नहीं किया गया कि ये भी हो सकता है? सब कुछ इतनी त्वरित किया गया कि बैंककर्मी लुटेरे बन गए। लूट खाताधारक की नहीं, सरकार की करने का मौका मिल गया, ऐसा मौका जिसकी न तो जांच मुमकिन है और न कोई सबूत। बिल्कुल ऐसे जैसे किसी महफिल में कोई हादसा हो जाए और सबूत मिटा मिटाने की जल्दबाजी हो।
नोटबंदी का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जिस सनक पर आधारित है। चारो खाने चित्त सड़क पर पड़ी है और प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री के साथ रिजर्व बैंक के गवर्नर बेबस और लाचारी की मुद्रा में फटी आंखों से देख रहे हैं। दरअसल सरकार की ओर से इसके अच्छे और बुरे परिणाम पर विचार नहीं किया गया। इसी का ये नतीजा है। इसके लिए न तो वित्त मंत्रालय, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और न ही बैंकों का प्रबंध तंत्र तत्पर था। प्रधानमंत्री ने देश की अर्थव्यवस्था को मुंगेरी लाल के हसीन सपने के माफिक अंजाम देने की जिद की। उनकी इस जिद पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के तत्कालीन गर्वनर रघुराजन कतई तैयार नहीं हुए तो उन्हें हटने के लिए मजबूर कर दिया गया। उनकी जगह आए उर्जित पटेल तमाशबीन बनकर प्रधानमंत्री के हाथों फैलते रायते को फैलता देख रहे हैं।
प्रधानमंत्री ने नोटबंदी का ऐलान काला धन जब्त करने और भ्रष्टाचार खत्म करने के नाम पर किया। हुआ इसका ठीक उल्टा। काला धन के कारोबारी और भ्रष्ट अफसरों के पास अब कैश में काला धन नहीं है। साफ हो गया कि काला धन विदेशी बैंकों में जमा है। या फिर रियल स्टेट और गोल्ड में है। बताते हैं कि 2013 में मनमोहन सिंह सरकार ने काला धन के खिलाफ अभियान के तहत नोटबंदी का प्लान तैयार किया था। तभी लोगों ने कैश में रखा काला धन ठिकाने लगा दिया था।
हां, नकली नोट जरूर बड़ी संख्या में बाजार में था। जो नकली नोट के माफिया हैं, वे जरूर मालामाल हो गए हैं। इन दिनों उनके तार सीधे बैंकों से जुड़े हैं। खासकर प्राइवेट बैंकों से। प्रधानमंत्री को उम्मीद थी कि पब्लिक और बाजार से महज 6 लाख करोड़ ही नोटबंदी में बैंकों में जमा होगा। बाकी काला धन जमा सामने नहीं आएगा। इस तरह करीब 9 लाख करोड़ के बैंकों में जमा न होने पर इतनी कीमत की नई अतिरिक्त मुद्रा केंद्र सरकार के पास आ जाएगी।
केंद्र सरकार का ये कयास भी हर कयास की तरह गलत साबित हुआ। बैंकों में नोट जमा करने वालों ने बड़ी संख्या में असली के साथ नकली नोट भी जमा करा दिए। इससे सरकार का खेल बिगड़ गया। ये काम बैंक कर्मचारियों की मिली भगत से हो रहा है। अनुमान के मुताबिक अब तक करीब 5 लाख करोड़ रुपये के नकली नोट जमा हो गए हैं। चूंकि जो अब तक कुल 13 लाख करोड़ रुपये जमा हो गए हैं, इतनी बड़ी संख्या है कि इनको संदूकों से निकालकर छंटाई कर पाना बेहद दूभर काम है। फिर जो नकली नोट जमा हो गए हैं, उसके लिए कौन दोषी है? इसकी भी पहचान कर पाना मुश्किल है।
वैसे भी बैंक प्रबंधकों की ओर से कहा जा रहा है कि उन पर काम का इतना दबाव है कि नोट के असली या नकली होने की बारीकी से परख कर पाना सहज नहीं है। अब ये बात जगजाहिर हो गई है कि कई बैंकों में मिली भगत से नकली नोट जमा हो गए हैं और खातों में उनको दर्ज करने के लिए बैंकों के मैनेजर और स्टाफ को कमीशन दिया गया है। नोट बंदी के इस दौर में भारत का बैंकिंग सेक्टर मालामाल हो गया। फिलहाल बैंकें एक नंबर में और बैंककर्मी दो नंबर में…। पर सरकार के लिए अब नई मुसीबत ये है कि यदि 15 लाख करोड़ से ज्यादा नोट जमा हो गए तो क्या होगा? इन 15 लाख करोड़ रुपये में नकली और असली नोट छांटने के लिए हजारों कर्मचारी चाहिए और महीनों का वक्त लगेगा। इस पर हजारों करोड़ रुपये का खर्चा होगा अलग से। सरकार के लिए फिलहाल ये नामुमकिन काम है। इसी बात का फायदा बैंक माफियाओं ने उठाया।
नोटबंदी अब सरकार के गले में ऐसी हड्डी बन गई है जो न उगलते बन रही है और न निगलते।
प्रधानमंत्री भले अपनी सरकार में सर्वेसर्वा हों, पर उनके इस फैसले को ताकत देने वाला कोई दूसरा दिखाई नहीं दे रहा है। न रिजर्व बैंक और न ही पब्लिक बैंकों के प्रबंध तंत्र। प्रधानमंत्री की हर चाल मात खा रही है। देश आर्थिक त्रासदी का शिकार हो गया। नोटबंदी ने प्रधानमंत्री की नासमझी की पोल खोल दी है। रिजर्व बैंक के हिसाब से चलन में महज 15 लाख करोड़ के 500 और 1000 के नोट हैं। जिस रफ्तार से नोट बैंकों में जमा हो रहे हैं, रफ्तार 30 दिसंबर तक ऐसी ही रही तो 18 लाख करोड़ से ज्यादा जाम हो जाएंगे। तब सरकार क्या जवाब देगी?
वैसे भी प्रधानमंत्री के इस फैसले से देश का आर्थिक तंत्र बर्बाद हो गया है। पिछले 25 साल में देश जितना आगे बढ़ा था। आज उसी स्थान पर पहुंच गया। करोड़ों मजदूर और कारीगर बेरोजगार हो गए। लाखों कारखाने बंद हो गए। करीब 100 लोग नोटबंदी की वजह से जान गंवा चुके हैं। देश में चहुं ओर तबाही और बर्बादी का खौफनाक मंजर है। सिर्फ सन्नाटा और मातम पसरा है। देश में ऐसी तबाही का मंजर है गोया भारत पर विदेशी हमलावर लूटपाट कर गए हो। प्रधानमंत्री ने एक महीने पहले जिस नोट को कागज का टुकड़ा कहा था, उसे जमा कराने वालों की आज भी बैंक में लंबी लाइन है, बैंकों के पास मांग के अनुसार नए नोट नहीं हैं। रिजर्व बैंक को 15 लाख करोड़ छापने में 8 से 12 महीने लगेंगे। तब तक देश का कितना बुरा हाल होगा, कल्पना से परे है।
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