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'क, ख. ग, घ के जरिए समझिए मीडिया की आजादी के असल मायने'
क्या भारत में मीडिया आज़ाद है? इसका जवाब है- हां और नहीं...
समाचार4मीडिया ब्यूरो 6 years ago
नीरेंद्र नागर
वरिष्ठ पत्रकार ।।
क्या भारत में मीडिया आज़ाद है? इसका जवाब है- हां और नहीं। यदि आपकी
प्रसार संख्या कम है तो आप बिल्कुल आज़ाद हैं, आप जो चाहें
लिखें। लेकिन यदि आपकी प्रसार संख्या ज़्यादा है तो आपके लिखने से किसी को हानि
पहुंच सकती है और वह इतना ताकतवर भी है कि आपको नुक़सान पहुंचा सकता है तो आप
आज़ाद नहीं हैं।
चूंकि अख़बार, टीवी या वेबसाइट चलाने में काफ़ी ख़र्च है और हर मीडिया मालिक अपना ख़र्च निकालने के साथ-साथ मुनाफ़ा भी कमाना चाहता है, जो कि विज्ञापन से ही आता है इसलिए वह ऐसे किसी भी व्यक्ति, कंपनी या संस्था को नाराज़ करने का जोखिम मोल नहीं ले सकता, जो उसके मुनाफ़े में कमी कर सकता है या उसके वाणिज्यिक हितों पर वार कर सकता है।
इसलिए कोई बड़ा कॉर्पोरेट समूह हो या राज्य और केंद्र की सरकार, इनके विज्ञापन देने की ताकत के चलते मैनेजमेंट द्वारा संपादकों को बाक़ायदा निर्देश होते हैं कि आप फलां-फलां कंपनी या नेता के ख़िलाफ़ कुछ भी नकारात्मक नहीं लिखेंगे। इसका मतलब यह कि यदि किसी अख़बार को 'क' और 'ख' से विज्ञापन और/या संरक्षण मिल रहा है तो उसका संपादकीय विभाग 'क' और 'ख' के अलावा किसी के भी बारे में अच्छा-बुरा लिखने को ‘आज़ाद’ है। इसी तरह दूसरे अख़बार को यदि 'ग' और 'घ' से विज्ञापन और संरक्षण मिल रहा है तो वह 'ग' और 'घ' के अलावा किसी के भी बारे में कुछ भी लिखने को पूरी तरह ‘स्वतंत्र’ है।
चूंकि मीडिया अब शुद्ध बिज़नेस बन गया है और नेता, अभिनेता, व्यापारी और संस्थाएं जानते हैं कि इनकी कमज़ोर नस क्या है तो वे उसका ख़ूब फ़ायदा उठाते हैं। आप जानते होंगे कि कैसे एक सुपरस्टार ने एक संस्थान के किसी भी अख़बार, वेबसाइट या चैनल को इंटरव्यू देना बंद कर दिया था क्योंकि उसके किसी अख़बार में उसके ख़िलाफ़ छपा था। इसी तरह एक बड़े घराने ने एक बड़े मीडिया हाउस को विज्ञापन देना बंद कर दिया और मीडिया हाउस ने उसके बारे में ख़बरें छापना बंद कर दिया था।
यह सच है कि इस तरह का दबाव पहले भी था लेकिन इस हद तक नहीं था कि PMO से रोज़ की लिस्ट आए कि आपके यहां हमारे ख़िलाफ़ आज ये दस ख़बरें छपी हैं और उसकी कैफ़ियत पूछी जाए। इतना दबाव नहीं था कि मालिक अपने संपादक को और संपादक अपनी टीम से साफ़ शब्दों में कहे कि फलां-फलां लोगों के ख़िलाफ़ कोई भी ख़बर हो तो पहले हमें दिखा दी जाए। इतना दबाव नहीं था कि किसी व्यक्ति के कहने पर किसी पत्रकार की छुट्टी कर दी जाए।
एक लाइन में कहें तो ताकतवर लोगों और संस्थाओं के अलावा किसी के बारे में कुछ भी लिखने को पत्रकार आज़ाद है।
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