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कमल मोरारका बोले- कांग्रेस की जो मूलभूत सोच है, वो हिन्दू सोच है...
आरएसएस कहती है कि देश में हिन्दुत्व आना चाहिए...
समाचार4मीडिया ब्यूरो 6 years ago
कमल मोरारका
समाजशास्त्री ।।
हिन्दू दर्शन को ज़िंदा रखना है, तो हिन्दुत्व से बचना होगा
आरएसएस कहती है कि देश में हिन्दुत्व आना चाहिए। भाजपा के एमएलए कहते हैं कि हम लोगों को हिन्दुत्व की तरफ लाएंगे। वे बहुत बड़ी भूल कर रहे हैं। आज आरएसएस को सेकुलर शब्द पसंद नहीं है, लेकिन भारत अगर सेकुलर है तो सिर्फ इसलिए क्योंकि यहां हिन्दू ज्यादा हैं। हिन्दू दर्शन और हिन्दू खुद सेकुलर हैं। हिन्दुओं में इतने देवी-देवता हैं, इतनी मान्यताएं हैं, इतनी तरह की पूजा की विधियां हैं। हिन्दुओं में ऐसा है नहीं कि शुक्रवार को एक बजे नमाज करना है या रविवार को 10 बजे चर्च में प्रार्थना करनी है। हमारे यहां ऐसा कुछ नहीं है। कोई शिव की पूजा करता है, कोई गणेश की, तो कोई पूजा नहीं भी करता है। हिन्दू धर्म ऐसा है, लेकिन ये बात भाजपा और आरएसएस के लोगों को पसंद नहीं आएगी। मुझे कहना पड़ेगा कि अगर हिन्दू दर्शन को जिंदा रखना है, तो हिन्दुत्व से देश को बचाना होगा। ये हिन्दुत्व सबसे ज्यादा हिन्दू दर्शन का ही नुकसान करेगा। मुसलमान तो इस देश में सिर्फ 15 प्रतिशत हैं, उनका क्या होना है? उनको आप बर्बाद भी करोगे, तो उससे देश का क्या होना है? मुसलमानों और ईसाइयों का आप व्यक्तिगत नुकसान कर दोगे या खून-खराबा कर दोगे, तो उससे कुछ भी नहीं होना है। हमारी समस्या और हमारी समस्या का समाधान सिर्फ हिन्दू समाज है और हिन्दू समाज को बांटिए मत। हिन्दू समाज को आक्रोश मत दिलाइए।
हिन्दू समाज को बांटने की कोशिश मत करिए कि ये कोरेगांव भीमा की घटना हो रही है, तो गलत हो रही है और ये मुसलमान की नमाज हो रही है, तो ये गलत हो रही है। ये कुछ नहीं है। हर गांव में हिन्दू-मुसलमान सद्भाव के साथ रहते हैं। देश में छह लाख गांव हैं। मैं आरएसएस से ये पूछना चाहता हूं कि अब तो 2018 आ गया। सौ साल पूरे होने में आरएसएस को सात साल बचे हैं। अगर आपकी सोच इतनी बड़ी थी, तो पूरा हिन्दू समाज आपके साथ क्यों नहीं है? कांग्रेस को क्यों वोट देते हैं? वे लोग इसलिए वोट देते हैं क्योंकि कांग्रेस की जो मूलभूत सोच है, वो हिन्दू सोच है। जो संविधान है, वो हिन्दू सोच का संविधान है। हिन्दू शब्द यूज नहीं करते हैं, ताकि दूसरे मजहब के लोग खराब न मानें। लेकिन मूलभूत आधार वही है। हिन्दू आदर्श जो थे, जिससे हमारा हजारों साल पुराना समाज बना है, वही है। ऐसा इसीलिए है, क्योंकि यहां लोकतंत्र है। यहां एक व्यक्ति, एक वोट को लोग मंजूर करते हैं। यहां पंचायत राज है। आज भी गांवों में बड़े-बूढ़ों की कद्र होती है। स्कूल शिक्षकों की कद्र होती है। ये कोई राजनेताओं की देन नहीं है। ये कोई आरएसएस की देन नहीं है। आरएसएस तो केवल शाखा में जाकर लोगों में दुराव फैला सकते हैं। कुछ लोगों को बुलाकर कहते हैं कि आप लोग ठीक हो, बाकी लोग गलत हैं। इससे कोई समाज का भला नहीं होगा। सर्वधर्म समभाव यानी सबको साथ लेकर चलो, लेकिन ये नहीं हो रहा है। महाराष्ट्र में दलितों को दबाया जा रहा है, असम में मुसलमानों को दबाया जा रहा है।
लालू यादव को अदालत ने फिर से दोषी करार दिया है। निर्णय आते ही कुछ लोग ये बोलने लगे कि लालू यादव तो गए। लेकिन वे भूल गए कि लालू यादव को पहले भी सजा हो चुकी है और लालू यादव इलेक्शन नहीं लड़ सकते हैं। पिछले इलेक्शन में लालू और नीतीश ने मिलकर भाजपा का सूपड़ा साफ कर दिया। यहां की पब्लिक अलग है। यहां की सोच अलग है। यहां की सोच, अगर मैं एक शब्द में कहूं तो सागर है। हिन्दू धर्म एक सागर है। इस सागर को एक कुएं में बंद नहीं कर सकते हैं। चाहे लोग जितनी भी कोशिश कर लें। आरएसएस के लोग ऐसा कर रहे हैं। हर संस्था को काम करने का अपना अधिकार है। सभी अपना काम करें। लेकिन वे समझते हैं कि भारत का व्यक्ति बदल देंगे। पांच साल के लिए कोई राजनीतिक पार्टी चुनाव में आती है और जीत कर ये सोचने लगते हैं कि पांच साल में सब कुछ बदल देंगे। यह भूल जाते हैं कि यह पांच हजार साल का मामला है। पांच साल तो क्या, पचास साल सौ साल पांच सौ साल में भी कुछ नहीं बदलेगा। यह बात जितनी जल्दी समझ में आ जाए, उतना ही देश का भला होगा। अब राजनीति पर आते हैं। अब एक-डेढ़ साल बचा है। गरीबों की हालत खराब है, थोड़ी मरहम पट्टी करिए। किसानों की हालत खराब है। युवाओं को नौकरी नहीं मिलती है। उनके लिए कुछ करिए। हालांकि अब डेढ़ साल में कुछ हो नहीं सकता, लेकिन सकारात्मक कोशिश कीजिए। इन लोगों को तूल मत दीजिए। जो गाय को बचाने वाले हैं, वो गाय को बचाने की बजाय इंसानों को मार देते हैं। इस बात में तो कोई तर्क ही नहीं है।
आज भी हम चाहते हैं कि लोगों को साथ में लीजिए। विपक्ष को भी साथ में लीजिए। गुजरात के बाद तो भाजपा को भी समझ लेना चाहिए कि कांग्रेस मुक्त भारत होना ही नहीं है। गुजरात कांग्रेस मुक्त नहीं हुआ है, तब भारत तो बहुत दूर की बात है। पार्लियामेंट कांग्रेस मुक्त नहीं हुआ है। राहुल गांधी जिनको आप साइड कर चुके थे, वे मोदी जी से 20 साल छोटे हैं। राहुल की बीस साल उम्र ज्यादा है, मोदी जी से राजनीति करने के लिए। 2019 छोड़िए, 2024 में वो 54 साल के होंगे। प्रधानमंत्री पद के लिए वो ज्यादा उम्र नहीं है। किसी के खिलाफ बोलना, मखौल उड़ाना जिम्मेदारी की बात नहीं है। कोई जर्नलिस्ट या अखबार के संपादक भी ऐसा नहीं करते, तब किसी राजनीतिज्ञ को तो ऐसा बोलना ही नहीं चाहिए। यदि देश को आगे चलाना है, तब खास कर प्रधानमंत्री को तो जुबान संभाल कर बोलना चाहिए। जवाहरलाल नेहरू का एक भी बयान आपको लेवल से नीचे नहीं मिलेगा। इंदिरा गांधी भी चुनाव के समय ऐसा करती थीं, पर पार्लियामेंट में कोई भी गलत बयान नहीं देती थीं। अब क्या मापदंड हो गए हैं? चार लोग ताली बजाने वाले हैं, तो आप कुछ भी बोलकर निकल लेते हैं। बिल्ली आंख बंद करके दूध पीती है और वो सोचती है कि कोई देख नहीं रहा है। पूरी दुनिया में आपका मखौल उड़ रहा है।
मई 2014 से लेकर जनवरी 2018 तक काफी समय बीत चुका है। कहते हैं टाइम इज टिकिंग। कुछ करिए, लेकिन समभाव में करिए। दो नंबर कम आ जाएंगे, तो लड़का फेल नहीं होता है, जैसा कि गुजरात में हुआ। गुजरात में भाजपा की सरकार है, ठीक है। अगली बार मोदी जी फिर प्रधानमंत्री बनें, पर डींगे हांकना बंद कीजिए। भाजपा के पास एक अमित शाह हैं। अमित शाह की क्या पोजिशन है? अहमदाबाद में सब जानते हैं कि उनके खिलाफ भी केस है। वे सजायाफ्ता हैं। इतना पुराना देश है। देश की इज्जत कीजिए। देश की संस्कृति की इज्जत करिए। जो बात आरएसएस कहती है, वो बात लागू करिए। हिन्दुओं की इज्जत करिए। हिन्दुत्व सिखाकर मुसलमानों या दलितों को दबाना हिन्दुओं की बेइज्जती है। बाबरी मस्जिद जबरदस्ती गिरा देना हिन्दुओं की बेइज्जती है। कुछ हासिल हुआ नहीं। मुसलमानों की क्या बेइज्जती है? मुसलमानों में तो जगह का महत्व है ही नहीं। हिन्दुओं में जगह का महत्व है। हिन्दू मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करते हैं। वहां तो ऐसा है ही नहीं। वहां तो नमाज पढ़ी जा रही थी। वहां कौन सी प्राण प्रतिष्ठा है। किसी ने आपसे कह दिया कि वो भगवान राम का जन्म स्थान है। क्या राम का जन्मस्थान भी कोर्ट डिसाइड करेगी। क्या राम भी ऐसे ही पैदा हुए हैं, जैसे आप और हम? राम तो अवतार थे। वे अवतरित हुए थे। उस जगह पैदा नहीं हुए थे। अब राम और कृष्ण अवतार थे। अवतारों की इज्जत करिए। हमारी जो इतनी समृद्ध परंपरा है, इतनी गरिमापूर्ण सोच है, उसका उत्थान करिए। हमारी नई पीढ़ियों को बताइए। एक मित्र से गीता प्रेस, गोरखपुर के संदर्भ में हिन्दू धर्म के प्रचार पर बात हो रही थी। तो आज जरूरत है उसे डिजिटल करने की। नई पीढ़ी के लोग जो उस भाषा को समझ सकें। उन्हें संस्कृत नहीं आती। क्लिष्ट हिन्दी भी उनकी समझ से परे है। उनको सरल भाषा में समझाने की जरूरत है। हिन्दू क्या चाहते हैं? हिन्दू क्या है?
हमारी परंपरा वसुधैव कुटुम्बकम की है। पूरी दुनिया इसका आदर करती है। हम किसी की एक ईंच जमीन नहीं लेना चाहते हैं। हम अपनी भी एक ईंच जमीन नहीं देंगे। हमारा आत्म सम्मान है। हिन्दुओं का जो मूल सिद्धांत है, उसे वापस लाने की जरूरत है। उससे देश में एकदम शांति आ जाएगी। हिन्दू बहुत सहनशील आदमी है। कोई हिन्दू ऐसा नहीं है कि साइकल पर जा रहा हो तो गाड़ी पर पत्थर मार देगा क्योंकि उसके पास कार नहीं है। ये हिन्दुओं की सोच ही नहीं है। वे मानकर चलते हैं कि हरेक आदमी के पास अपना जो पात्र होता है, उतना ही भरेगा। उसी को आगे चलाइए। आप सरकार में हैं। आधुनिक टेक्नोलॉजी और पैसे हैं, तो कुछ करिए। अब केवल मुंबई, अहमदाबाद बुलेट ट्रेन चलाने से तो भारत का भला नहीं होगा। करिए, वो भी करिए। मैं इन चीजों की आलोचना नहीं कर रहा हूं, लेकिन ऐसा कुछ करिए जिससे सब लोग साथ में जुड़ें। एक-डेढ़ साल हैं। देखते हैं, क्या करते हैं?
(साभार: चौथी दुनिया)
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