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पाक पर हमले को लेकर भूपेंद्र चौबे ने दागा ये 'बड़ा' सवाल
पुलवामा हमले के बाद देश गुस्से में है। हर तरफ से बस एक ही आवाज़ उठ रही है कि पाकिस्तान का नामोनिशान...
समाचार4मीडिया ब्यूरो 5 years ago
भूपेंद्र चौबे
एग्जिक्यूटिव एडिटर, न्यूज़18 नेटवर्क।।
हमें अब भी पाकिस्तान से बातचीत क्यों करनी चाहिए?
पुलवामा हमले के बाद देश गुस्से में है। हर तरफ से बस एक ही आवाज़ उठ रही है कि पाकिस्तान का नामोनिशान मिटा देना चाहिए। जनता अब आर-पार की लड़ाई के मूड में है, सोशल मीडिया पर एक अलग ही जंग लड़ी जा रही है। लेकिन क्या जंग इस समस्या का हल है?
कई लोगों ने मुझसे पूछा कि जब छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ के 70 जवान नक्सली हमले में शहीद हुए, तब इस तरह का गुस्सा क्यों देखने को नहीं मिला? क्या हमें उसका दुःख नहीं था? जिस तरह के कैंडल मार्च अभी निकाले जा रहे हैं, उस वक़्त कोई क्यों सामने नहीं आया? उस वक़्त किसी ने क्यों नहीं कहा कि आर-पार की लड़ाई होनी चाहिए? लेकिन अब जब पुलवामा हमले में पाकिस्तानी हाथ उजागर हुआ है, तो हम सभी बड़ी कार्रवाई चाहते हैं। इससे यह पता चलता है कि जब बात शांति की राह में बाधा बनने वाले पाकिस्तान की आती है, तो हम उसे ख़त्म कर देना चाहते हैं। मैंने भी ऐसा कुछ ट्वीट किया है और यदि आप मेरी टाइमलाइन देखें तो मैंने लिखा है ‘पाकिस्तान को ख़त्म कर दो’। लेकिन फिर मैंने इसके बारे में सोचा। मैंने देखा कि किस तरह से इस गुस्से के रिएक्शन सामने आ रहे हैं। बॉलिवुड स्टार सलमान खान ने कहा कि वो आतिफ असलम को उनकी फिल्म का हिस्सा नहीं बनने देंगे। अजय देवगन, अक्षय कुमार, अनुपम खेर, सभी ने एकसुर में कहा कि बॉलिवुड को किसी भी पाकिस्तानी के साथ काम नहीं करना चाहिए।
यहां सवाल ये है कि जब मुंबई हमला हुआ, उरी हमला हुआ, कहा गया कि दोनों देशों के बीच किसी भी तरह का सांस्कृतिक आदान-प्रदान बंद किया जाना चाहिए। अब न तो मैं युद्धविरोधी हूँ और न ही युद्ध चाहता हूं। मेरी दिलचस्पी समाधान खोजने में है। क्योंकि जब कारगिल युद्ध हुआ था तो हमने क्या किया? हमने ऑपरेशन पराक्रम चलाया, करीब एक महीने तक हमारी सेना सीमा पर तैनात रही। क्या हमें कोई क्लाइमैक्स मिला, नहीं। इस स्टोरी में कोई क्लाइमैक्स नहीं था। जब मुंबई हमला हुआ, तब क्या हुआ? फिर से कहा गया कि ईंट का जवाब पत्थर से दो, हमें दुश्मन के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी चाहिए। एक बार फिर हम दहाड़े, लेकिन हमने काटने से मना कर दिया। अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार यह कह रहे हैं कि वो न केवल दहाड़ लगायेंगे, बल्कि दुश्मन पर वहां वार करेंगे, जहां उसे सबसे ज्यादा चोट पहुंचे। आप उन्हें लगातार चोट पहुंचाते रहें, लेकिन क्या आपको समाधान मिलेगा? लगभग सभी रक्षा विशेषज्ञ, पूर्व सैन्य अधिकारियों का यही मानना है कि कश्मीर विवाद में सेना को समाधान के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। सेना केवल एक बैकअप हो सकती है, लेकिन दीर्घकालीन राजनीतिक समाधान प्रदान नहीं कर सकती। क्या हम अपने पड़ोसी के अस्तित्व को नज़रंदाज़ करके राजनीतिक समाधान प्राप्त कर सकते हैं?
यदि मैं अपनी आँखें बंद कर लूँ तो क्या मैं अपने आसपास को बदल सकता हूं? इसका ये मतलब भी नहीं है कि मैं अपने इकोसिस्टम को बदलने में सक्षम हो सकूंगा। हमने मोस्ट फेवरेट नेशन का दर्जा पाकिस्तान से वापस ले लिया है। हमने कहा है कि हम पाकिस्तान से कोई व्यावसायिक रिश्ता नहीं रखेंगे। लेकिन आखिरी में हम एक ऐसे देश की बात कर रहे हैं, जिसका सालाना रक्षा खर्च हमारे मुकाबले 300 गुना कम है। क्या फिर भी हमें पाकिस्तान पर हमला करने के बारे में सोचना चाहिए? मुझे लगता है कि ऐसे समय में जब हम सभी दुखी हैं,आहत हैं, हमें दीर्घकालीन समाधान तलाशने पर ध्यान देना होगा। दीर्घकालीन समाधान की बात तभी आती है, जब आप सबसे ज्यादा आहत महसूस करते हैं। कहा जाता है कि ‘बदला एक ऐसा व्यंजन है, जिसे ठंडा करके परोसना अच्छा रहता है’। लेकिन मैं आपसे पूछना चाहता हूँ कि क्या बदला लेने से इस बात की गारंटी मिल जाएगी कि हम पुन: ऐसी स्थिति में नहीं होंगे? इस सवाल का जवाब आख़िरकार यही है कि हमारी दीर्घकालीन पाकिस्तानी नीति क्या होनी चाहिए? और मेरा मानना है कि हमें अब भी पाकिस्तान से बातचीत करनी चाहिए। हां, हम नहीं जानते कि इमरान खान पर भरोसा किया जा सकता है या नहीं और हमने किसी भी पूर्व पाकिस्तानी प्रधानमंत्री पर भरोसा नहीं किया है, लेकिन फिर भी हमें यह सोचना होगा कि बातचीत के लिए माहौल कैसे निर्मित किया जाए?
(लेखक के विडियो के आधार पर ये लेख तैयार किया गया है)
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