होम /
विचार मंच /
पुलिस-प्रशासन पर रवीश कुमार का कड़ा प्रहार, बोले-इंटरनेट बंद करना पहला नहीं, आखिरी कदम होना चाहिए
पुलिस-प्रशासन पर रवीश कुमार का कड़ा प्रहार, बोले-इंटरनेट बंद करना पहला नहीं, आखिरी कदम होना चाहिए
‘मीडिया में रिपोर्ट कम ही होता है कि इंटरनेट बंद होने से लोगों को किस तरह से परेशानी हुई। इंटरनेट हवा पानी की तरह है। क्या प्रशासन हिंसक स्थिति में पानी की सप्लाई बंद कर देता है? अगर ऐसा है तो सरकार को बताना चाहिए कि जब किसी कारण से इंटरनेट बंद होगा तब आप ऐप के अलावा कहां जाकर उसकी सुविधाएं ले सकते हैं?’ अपने ब्लॉग ‘कस्बा’ के जरिए ये कहना है वरिष्ठ
समाचार4मीडिया ब्यूरो
8 years ago
‘मीडिया में रिपोर्ट कम ही होता है कि इंटरनेट बंद होने से लोगों को किस तरह से परेशानी हुई। इंटरनेट हवा पानी की तरह है। क्या प्रशासन हिंसक स्थिति में पानी की सप्लाई बंद कर देता है? अगर ऐसा है तो सरकार को बताना चाहिए कि जब किसी कारण से इंटरनेट बंद होगा तब आप ऐप के अलावा कहां जाकर उसकी सुविधाएं ले सकते हैं?’ अपने ब्लॉग ‘कस्बा’ के जरिए ये कहना है वरिष्ठ टेलिविजन पत्रकार रवीश कुमार का। उनका पूरा आलेख आप यहां पढ़ सकते हैं:
क्या इंटरनेट बंद करना सही कदम है?
प्रशासन और सरकारों को अब सोशल मीडिया से घबराहट होने लगी है। फिर से कश्मीर और गुजरात में कई जिलों में इंटरनेट सेवा बंद की गई है। कश्मीर के कुपवाड़ा, बारामुला, बांदीपुरा, गांदरबल में नेट सेवाएं बंद करने की खबर है। गुजरात में पिछले साल अगस्त के महीने की तरह इस बार भी पटेल आंदोलन को लेकर इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है। अहमदाबाद, राजकोट, वडोदरा, साबरकांठा में इंटरनेट सेवा बंद है। इंटरनेट सेवा बंद करना धड़ से धारा 144 लगा देने जैसा हो गया है। अब तो परीक्षाओं में चोरी रोकने के लिए भी उस दौरान शहर में इंटरनेट सेवा बंद कर दी जाती है। फरवरी महीने में गुजरात में ही राजस्व लेखपाल की परीक्षा के दौरान सुबह नौ बजे से एक बजे तक के लिए इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई ताकि नकल न हो सके। ये फैसले बता रहे हैं कि इंटरनेट अब मुक्त आकाश नहीं रहा।
The Wire नाम की न्यूज साइट ने लिखा है कि कश्मीर में पिछले चार साल में 18 से 25 दिनों के लिए इंटरनेट सेवा बंद की गई है। पिछले साल हॉफिंगटन पोस्ट की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2013 से 2015 के बीच चार राज्यों में 9 बार इंटरनेट सेवाएं बंद की गईं हैं। गुजरात, कश्मीर के अलावा नागालैंड और मणिपुर में इंटरनेट बंद हुआ है। 2011में OECD Organization for Economic Co-operation and Development ने एक अनुमान लगाया था कि मिस्र में 5 दिनों के लिए इंटरनेट बंद कर देने से 9 करोड़ डालर का नुकसान हो गया था। 2015 में जर्मनी की एक संस्था ने पाकिस्तान में इंटरनेट बंद किये जाने को लेकर एक अध्ययन कर बताया था कि कैसे न सिर्फ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला होता है बल्कि राष्ट्रीय या व्यक्तिगत सुरक्षा या बिजनेस को भी नुकसान पहुंच सकता है। भारत में भी टाइम्स ऑफ इंडिया से लेकर इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि गुजरात में पटेल आंदोलन के पहले चरण के दौरान इंटरनेट बंद करने से 30 करोड़ से लेकर 7000 करोड़ तक का नुकसान हुआ है।
हम सबका जीवन अब इंटरनेट से जुड़ा हुआ है। सरकार भी अपना कई काम ऐप के जरिए करती है। ई कॉमर्स, होटल, पर्यटन से लेकर तमाम तरह बिजनेस इंटरनेट के जरिये होते हैं। आम लोगों भी अब स्मार्ट फोन पर उपलब्ध नेट के जरिये जीते हैं। मीडिया में रिपोर्ट कम ही होता है कि इंटरनेट बंद होने से लोगों को किस तरह से परेशानी हुई। इंटरनेट हवा पानी की तरह है। क्या प्रशासन हिंसक स्थिति में पानी की सप्लाई बंद कर देता है? अगर ऐसा है तो सरकार को बताना चाहिए कि जब किसी कारण से इंटरनेट बंद होगा तब आप ऐप के अलावा कहां जाकर उसकी सुविधाएं ले सकते हैं?
प्रशासन को डर रहता है कि सोशल मीडिया के जरिये अफवाहें फैलने से स्थिति नियंत्रण से बाहर हो सकती है। कई बार वो अपनी नाकामी के किस्से फैलने से रोकने के लिए भी बंद करती होगी। पटेल आंदोलन के दौरान पटेल लोगों ने शिकायत की थी कि पुलिस ने उनके घरों में घुसकर मारा है। कारें तोड़ी हैं। उनके पास विडियो हैं मगर इंटरनेट बंद होने के कारण किसी को भेज नहीं सकते। तो यह भी ध्यान रखना चाहिए कि इंटरनेट बंद करने का मकसद हिंसा रोकना ही नहीं आंदोलन को कुचलना भी होता है। लोकतंत्र में पुलिस का काम आंदोलन होने देना भी है। पटेल समाज को भी सुनिश्चित करना होगा कि आंदेलन को अहिंसक बनाकर पुलिस की मदद करें।
सोशल मीडिया पर रोज अफवाहें फैलती रहती हैं तो क्या रोज ही फेसबुक और वॉट्सऐप बंद कर दिया जाए। सोशल मीडिया का उभार एक ऐसे स्पेस के रूप में हुआ था जहां सिर्फ लोग थे, जो मीडिया और राजनीतिक दलों से अलग एक नए स्पेस की रचना कर रहे थे और अपनी बातें लिख रहे थे। अब बताने कि जरूरत नहीं है कि किस तरह से दलों ने इस स्पेस का राजनीतिकरण किया है। इस खेल में सत्ताधारी दल से जुड़ें समर्थकों और संगठनों का ही पलड़ा भारी रहता है। इनके खिलाफ शायद ही कभी कार्रवाई होती है। संगठित रूप से गाली दी जा रही है। धमकी दी जा रही है और मन माफिक न लिखने पर राजनीतिक समर्थक वॉट्सऐप से लेकर फेसबुक और ट्विटर पर बदनाम करने का खेल खेलने लगते हैं।
बहुत बड़ी संख्या में लोगों को सोशल मीडिया पर लगाया गया है ताकि वे बहसों और मुद्दों को नियंत्रित कर सकें। इनके हंगामा करने से न्यूज चैनलों के न्यूज रूप में भूचाल सा आ जाता है। एंकर इन्हें जनता समझकर इनकी भाषा बोलने लगते हैं। और जब ये चुप हो जाते हैं तो वो मुद्दा चैनलों से गायब हो जाता है। जैसे गुजरात में जमानत पर रिहा हुए अधिकारी को पुलिस प्रमुख बना दिया। इसे लेकर इन समर्थकों ने मीडिया को गाली नहीं दी कि आप चुप क्यों हैं, जबकि जिस व्यक्ति को हटाया गया है वो खुलेआम कह रहा है कि उन्होंने पद से हटाने की गुजारिश नहीं की थी। उन्हें पुलिस प्रमुख के पद से नहीं हटाया जाए। डी.जी. वंझारा जेल से छूटकर आते हैं और सार्वजनिक रूप से तलवार लेकर डांस करते हैं। वे खुद को देशभक्त बताते हुए दूसरे देशभक्तों का शुक्रिया अदा करते हैं। यही घटना अगर किसी दूसरे राज्य में हुई होती तो ये लोग गाली गलौज का अंबार लगा देते कि मीडिया बिक गया है। फलाना पत्रकार चोर है। दलाल है।
सत्ताधारी दल के साथी संगठनों और समर्थकों को अफवाह फैलाने और गाली गलौज करने की छूट है। लोगों में इनकी बातों से तनाव भी फैला मगर अब वे भी समझने लगे कि किस बात पर भरोसा करना है किस पर नहीं। अगर लोग नहीं चेते तो उनके हाथ से ये माध्यम भी छिन जाएगा। अभी हाल ही में आम्रपाली हाउसिंग सोसायटी को लेकर चंद लोगों ने आंदोलन किया। उन्होंने सोशल मीडिया का अच्छा इस्तेमाल कर धोनी से लेकर आम्रपाली ग्रुप पर ठीक ठाक दबाव पैदा कर दिया, जिसकी वजह से मीडिया में भी खबरें चलीं लेकिन खास विचारधारा को लेकर पत्रकारों को गाली देने वाले समर्थकों के जनसमूह ने इन नागरिकों का साथ नहीं दिया। आप पाठकों को इनकी टाइमलाइन पर जाकर चेक करना चाहिए।
आम तौर पर लोग अफवाहबाजों की बातों को नजरअंदाज कर देते हैं या ब्लॉक कर देते हैं। लेकिन जब प्रशासन ऐसा करने लगे तो इस पर सार्वजनिक बहस होनी चाहिए। क्या आरक्षण को लेकर हिंसक प्रदर्शन इंटरनेट से पहले के दौर में नहीं हुए? हिंसा इंटरनेट के कारण ही भड़कती है क्या ये हर मामले में होता है?
कश्मीर में अफवाह ही उड़ी कि एक लड़की को कथित रुप से सेना के लोगों ने छेड़ा है। वो लड़की बार बार कह रही है कि सेना के लोगों ने ऐसा नहीं किया है। अगर उसे पत्रकारों से मिलाया जाता, उसके विडियो को इंटरनेट के जरिये फैलाया जाता तो क्या सही सूचना के आधार पर प्रशासन भीड़ से बेहतर मुकाबला नहीं कर पाती। वहां लड़की की मां का प्रेस कॉन्फ्रेंस रोक दिया गया। इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई। प्रशासन को सोचना चाहिए कि इंटरनेट बंद करने से पहले उसका सही इस्तेमाल कैसे किया जा सकता है। कोई तरीका निकालना चाहिए कि सभी इंटरनेट उपभोक्ताओं को सामूहिक रूप से सूचना भेजी जा सके। इस तरह की अफवाहें तो कई बार मुख्यधारा की मीडिया से भी फैल जाती हैं। कई जगहों पर प्रशासन ने कई जगहों पर चैनलों को भी बंद किया है।
राजनीतिक समर्थकों की भाषा बोलने वालों की निष्ठा सिर्फ अपने दल के प्रति होती है। देश के प्रति होती तो वे सूखे को लेकर हंगामा कर रहे होते। वही हाल विरोधी दलों के समर्थकों की हो गई है। जनता को इस मैच से कई बार नुकसान उठाना पड़ता है। ये अफवाह फैलाई गई कि भारत में पहली बार पानी की रेल चली है। केंद्रीय मंत्री उमा भारती भी ये बात हमारे सहयोगी श्रीनिवास जैन के इंटरव्यू में कह रही हैं। उन तक ये बात सरकार से पहुंची या सोशल मीडिया के जरिये? इंडियन एक्सप्रेस ने रविवार में छपा है कि 2 मई 1986 को भारत में पहली बार गुजरात के राजकोट में पानी की रेल चली थी। मुझे किसी ने सूचना दी थी कि 50 के दशक में इलाहाबाद से बुंदेलखंड के माणिकपुर के बीच पानी की रेल चलती थी। मैं इस सूचना की पुष्टि नहीं कर सका हूं लेकिन सरकार के लोग इतनी आसानी से कैसे बोल दे रहे हैं कि पहली बार पानी की रेल चली है। क्या वे अपने तथ्यों की सही से जांच करते हैं।
बेहतर है कि हम समाज से ही बात करें। प्रशासन सही तथ्यों को उस तक पहुंचाये और इसके लिए जरूरी है कि इंटरनेट सेवा बंद न हो। कुछ साल पहले लंदन में दंगे भड़क उठे। पुलिस ने पाया कि सोशल मीडिया के जरिये कुछ बातें फैलाई गईं हैं। इंटरनेट सेवा बंद करने की जगह पुलिस ने अपनी बात लोगों तक पहुंचानी शुरू कर दी। नतीजा यह हुआ कि हिंसा थम गई। बकायदा इसे लेकर रिपोर्ट बनाई गई थी कि क्या इंटरनेट के कारण दंगे भड़कते हैं। जरूरत है कि हम इस अफवाह संस्कृति के राजनीतिक पक्ष को उजागर करें और सही तथ्यों से मुकाबला करें। इंटरनेट बंद करना अंतिम उपाय होना चाहिए, पहला कदम नहीं।
(साभार: कस्बा ब्लॉग )
समाचार4मीडिया देश के प्रतिष्ठित और नं.1 मीडियापोर्टल exchange4media.com की हिंदी वेबसाइट है। समाचार4मीडिया.कॉम में हम आपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय, सुझाव और ख़बरें हमें mail2s4m@gmail.com पर भेज सकते हैं या 01204007700 पर संपर्क कर सकते हैं। आप हमें हमारे फेसबुक पेज पर भी फॉलो कर सकते हैं।
टैग्स