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‘मीडियाकर्मियों के लिए इस भीषण गर्मी में छंटनी के बादल मंडरा रहे हैं’
पिछले दिनों खबर आई कि एक अखबार के पूरी तरह बंद किया जा रहा है...
समाचार4मीडिया ब्यूरो 6 years ago
अमर आनंद
वरिष्ठ टीवी पत्रकार ।।
‘नई राह’ पर चाह और उत्साह का प्रवाह
पिछले दिनों खबर आई कि एक अखबार को पूरी तरह बंद किया जा रहा है। हम कलमकारों के लिए चुनौतयों का वक्त है। एक नामचीन चैनल अस्ताचलगामी सूर्य की गति पर है उसके उदय होने की संभवानाएं फिलहाल नजर नहीं आ रही है। एक बड़े चैनल ने हाल ही में दर्जनों लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया गया। नई दिल्ली से चलने वाला एक चैनल जिसके नाम में लाइव था, ऐसा डेड हुआ कि फिर उठा ही नहीं। दर्जनों निम्न-मध्यम चैनलों और अखबारों की अर्थ व्यवस्था बुरी तरह चरमराई हुई है। मीडियाकर्मियों के लिए इस भीषण गर्मी में छंटनी के बादल मंडरा रहे हैं। मीडिया से जुड़े ज्यादातर लोगों के लिए बेरोजगारी से जूझने का दौर है। जितने लोग नौकरियों में हैं, उससे 10 गुना नौकरियों की तलाश में विकल्प सिमटते जा रहे हैं। इश्तेहार पर चलने वाले टीवी और अखबारों की कमाई सिकुड़ती जा रही है और वो लगातार खर्चे कम कर रहे हैं। लगातार सैकड़ों यूनिवर्सिटी और संस्थानों से मीडिया में छा जाने का सपना देखने वाली उन आंखों की उम्मीदों का होगा, ये एक बड़ा सवाल है। हमें लगातार इन सवालों का सामना करना होगा।
आप मीडिया में किसी से भी पूछिए नौकरी कैसी चल रही है? कुछ को छोड़कर ज्यादातर लोग रोते हुए मिलेंगे। बॉस का फरमान, काम का बोझ और संसाधनों का रोना रोते मिलेंगे। नौकरी रहे या न रहे, इस चिंता में तो सब शामिल हैं ही, अब तो इससे बड़ी चिंता है कि चैनल या अखबार रहे न रहे। चैनल या अखबार के मालिक ने शटर डाउन कर दिया तो आप क्या कर लेंगे, उससे भिड़ तो सकते नहीं। अदालत के चक्कर काट सकते हैं, जब तक धैर्य है। इसके अलावा कोई चारा नहीं। अभी भी कई लोग अपने संस्थानों के मारे अदालतों के चक्कर लगा रहे हैं। मीडियाकर्मी हर दिन एक आशंका के साथ जगता है और दिन के सकुशल खत्म होने पर ईश्वर को धन्यावाद देता है।
नामचीन चैनलों और अखबारों में काम करते हुए मीडिया में 20 साल पूरे करने के बाद 2015 में हमने इन आशंकाओं को भांप लिया था।
ये एक ऐसी राह है, जो आपको जर्नलिज्म से अलग नहीं करती, वो राह जो आपको किसी की नौकरी नहीं करने देती, वो राह जो आपको जन समस्याओं और जन भावनाओं को जोड़े रखती है। वो राह जो आपको उनके जज्बे बढ़ाने में मदद करती है, जो लोग देश, समाज और इंसानियत के लिए जीते हैं। वो राह जो आपके अंदर एक ऐसी चाह पैदा करती है जिसका प्रवाह एक सांस्कृतिक आंदोलन की शक्ल ले सकता है। एक ऐसी राह जिसमें आप सांस्कृतिक शैली में सामाजिक अभियान चला सकते हैं और लोगों को जोड़कर देश भर में इसका दायरा बना सकते हैं। मैंने अपने इस अभियान का नाम ईवेंट जर्नलिज्म रखा है। ईवेट जर्नलिज्म यानी सांस्कृतिक, संगीतमय समारोह जिसे आप टीवी पत्रकारिता या प्रिंट पत्रकारिता का हिस्सा बना सकते हैं या फिर इसे आजाद पत्रकार की तरह कर सकते हैं। आखिर मास कम्युनिकेशन यानी जन संचार का ही तो एक रूप है यह भी।
जनता की परेशानियों से दूर भागते टीवी चैनलों की 'थप्पड़ मार' बहस, अखबारों
की भोथरी धार के बीच ये कौन नहीं जानता कि मीडिया में सरकार का कितना और असर है और
सरोकार की कितनी जगह। मीडिया का रोल और सोशल मीडिया की अतिरिक्त सक्रियता और इसमें
असर कर चुके निरर्रथक राजनीतिक बहसों के इस दौर में अगर आप बतौर पत्रकार समाज के
सामने सकारात्मक शैली में कुछ नया और लीक से हटकर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं तो
जाहिर तौर पर ये कोशिश लोगों का ध्यान खींचेगी और ऐसा हो भी रहा है।
जिंदगी के जद्दोजहद में जुटे कुछ लोगों के लिए भी हमने एक उम्मीद जगाई है। हमारा मकसद उन लोगों का हौसला बढ़ाना है जो देश और समाज का हौसला है। उनका जज्बा बढ़ाना है जो देश और समाज का जज्बा है। उन चेहरों पर खुशी लाने की कोशिश करना है जो गम में हैं। ऐसा हम गीत-संगीत, पत्रकारिता के जरिए सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से कर रहे हैं।
मैं इस बात को लेकर निश्चिंत हूं कि ईंवेट जर्नलिज्म का ये अभियान पूरे देश में फैलेगा और इसमें उन पत्रकारों के लिए भरपूर संभावनाएं हैं जिनके पास रोजी रोटी नहीं है, लेकिन लोगों को जोड़ने का सामर्थ्य है। इसके लिए चैनल या अखबार के फरमान पर इश्तेहार जुटाना मुश्किल है मगर किसी सामाजिक आयोजन के लिए संसाधन जुटाना आसान। ये एक नई राह है जिस पर चाह और उत्साह के प्रवाह से हम मीलो दूर तक का सफर तय कर सकते हैं वो भी उम्मीद भरी उस मुस्कान के साथ, जिसे लाने में आपकी भूमिका होगी, वो मुस्कान जो एक सार्थक काम करने की वजह से आखिरकार आपके चेहरे पर भी होगी।
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