होम / विचार मंच / औरों के लिए लड़ता हूं, पर अपने लिए कहां बोल पाता हूं! हां मैं पत्रकार कहलाता हूं
औरों के लिए लड़ता हूं, पर अपने लिए कहां बोल पाता हूं! हां मैं पत्रकार कहलाता हूं
‘न जाने कितने ऐसे पत्रकारों की हत्याएं हो चुकी हैं। कुछ हत्याएं सुर्खियां बन गई, और कुछ की रात के अंधेरे में कीमत चुका दी गई। यह पेशा काफी चुनौती भरा है, जिसे कुछ लोग ही करना चाहते हैं। आइए, हम आपको कुछ ऐसी और घटनाओं के बारे में बताते हैं, जहां रिपोर्टिंग करना, बिल्कुल काल के गाल में समाने जैसा था।’ हिंदी वेबपोर्टल ‘
समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago
‘न जाने कितने ऐसे पत्रकारों की हत्याएं हो चुकी हैं। कुछ हत्याएं सुर्खियां बन गई, और कुछ की रात के अंधेरे में कीमत चुका दी गई। यह पेशा काफी चुनौती भरा है, जिसे कुछ लोग ही करना चाहते हैं। आइए, हम आपको कुछ ऐसी और घटनाओं के बारे में बताते हैं, जहां रिपोर्टिंग करना, बिल्कुल काल के गाल में समाने जैसा था।’ हिंदी वेबपोर्टल ‘गजबपोस्ट’ में छपे अपने आलेख के जरिए ये कहना है कि पत्रकार बिक्रम सिंह का। उनका पूरा आलेख आप यहां पढ़ सकते हैं:
औरों के लिए लड़ता हूं, पर अपने लिए कहां बोल पाता हूं! हां मैं पत्रकार कहलाता हूं
‘खबरों की खबर वह रखते हैं
अपनी खबर हमेशा ढकते हैं
दुनिया भर के दर्द को अपनी
खबर बनाने वाले
अपने वास्ते बेदर्द होते हैं’ (विनायक विजेता)
पत्रकार होने का मतलब क्या होता है? ये पत्रकार दिखते कैसे हैं? क्या पत्रकार चापलूस होते हैं? न जाने कितने ऐसे सवाल, जो हम सभी के मन में समाचार पढ़ते या देखते हुए आते हैं। आने भी चाहिए, क्योंकि ये पेशा है ही ऐसा कि सवाल उठना लाजिमी है। देश-दुनिया की सभी घटनाओं पर पत्रकारों की नज़र रहती है। खबरों के संकलन से लेकर दर्शकों तक पहुंचाने तक के क्रम में एक पत्रकार को कितनी मेहनत करनी पड़ती है, उसे शायद आप नहीं महसूस कर सकेंगे, क्योंकि आप पत्रकार नहीं हैं।
मॉर्निंग में बिना ब्रेक और ब्रेकफास्ट के साथ, हाथ में बूम माईक लेकर और नोट-कॉपी के साथ कलम लिए, जब एक पत्रकार घर से निकलता है तो देखने वालों को सुपरस्टार जैसा लगता है। लेकिन।।। थोड़ा सा रुक कर आप उस पत्रकार से पूछिएगा कैसे हैं आप? वो पत्रकार मुस्कुराते हुए आपको जवाब देगा कि बढ़िया है। जबकि सच्चाई ये है कि उसके दिल में कई चीज़ें एक साथ चल रही होती है। बॉस के साथ मॉर्निंग मीटिंग, डेली प्लान, स्टोरी आइडिया और शाम को रिपोर्ट सबमिट करना। इन सब के बीच में उसकी ज़िंदगी और उसके परिवार का कहीं जिक्र नहीं है। हालांकि परिवार वाले शेखी बघारते रहते हैं कि बेटा शहर में बड़ा पत्रकार है।
हम आपको यहां ज्ञान नहीं देना नहीं चाहते हैं, बस पत्रकारों की ज़िंदगी पर थोड़ा प्रकाश डालना चाहते हैं। एक खबर के लिए पत्रकार को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। कभी ज़ख्म खा जाते हैं, तो कहीं चोटिल हो जाते हैं। दिन में अपनी ड्यूटी निभाने के बाद रात के 12 बजे तक ऑफिस में डटे रहते हैं। वॉर, दंगा-फसाद और छिट-पुट हिंसा में जाना इनकी आदत सी हो गई है। आइए आज हम आपको पत्रकारों की ज़िंदगी से रू-ब-रू करवाते हैं।
‘कारगिल’ की पहली महिला रिपोर्टर
पत्रकारिता जगत में बरखा दत्त एक ऐसा नाम है, जिन्होंने कई अवार्ड्स तो जीते ही हैं, साथ ही ऐसे कारनामे भी किए हैं, जो उनसे पहले किसी भी महिला पत्रकार ने नहीं किए। कारगिल युद्ध की कवरेज करने वाली बरखा पहली महिला रिपोर्टर हैं, जिसके लिए उन्होंने अपनी जान जोखिम में डाली। पिछले साल के नवंबर महीने में मुंबई पर हुए आतंकी हमले की लाइव कवरेज में भी बरखा आगे रहीं और पूरी मुस्तैदी से पल-पल की खबर देती रहीं।
टैग्स