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‘न्यूजरूम में खबरें तय करने वाले संपादक अपनी चुप्पी तोड़ बताएं कि कितना और गिरेंगे?’
सबसे बड़ा सवाल टीवी न्यूज मीडिया को उन संपादकों पर ही उठ रहा है...
समाचार4मीडिया ब्यूरो 6 years ago
अभिज्ञान प्रकाश
वरिष्ठ टीवी पत्रकार ।।
सबसे बड़ा सवाल टीवी न्यूज मीडिया के उन संपादकों पर ही उठ रहा है, जो न्यूजरूम में खबरें तय करते हैं, खबर से खेलते हैं, पर क्या अब लाश से भी खेलने लगे हैं? घटना पर रिपोर्टिंग कीजिए पर एक-दूसरे से इतना कॉम्पिटिशन किस बात का है, इस बात का है कि हम टीवी पर तमाशा क्रिएट करने में तुमसे भी नीचे गिर सकते हैं।
चाहे राम रहीम के मामले में हनीप्रीत की खोज की खबरें हों, या फिर इंद्राणी मुखर्जी केस या फिर राधे मां की नौटंकी, हमारे न्यूज चैनल अपना कितना मजाक उड़वाएंगे। क्या बाथटब रिपोर्टिंग को नेशनल जोक बनाना चाहते हैं? कल से बॉलिवुड के मेरे कई दोस्त फोन करके यही पूछ रहे हैं कि मौत का तमाशा बनाना पत्रकारिता है क्या? आप लोग बड़े-बड़े मंचों और सेमीनार्स में तो मीडिया की क्रेडिबिलिटी को बड़े जोर-शोर से उठाते हों, पर क्या ऐसे तमाशों से आपकी क्रेडिबिलिटी बनती है? ‘कंटेंट इज किंग’ का अलाप गाने वाले टीवी के कई बड़े संपादक आज चुप क्यों बैठे हैं, उठिए रोकिए इस तमाशे को, वरना वे दिन दूर नहीं जब हमारी पहचान पत्रकार से तमाशबीन में बदल जाएगी।
वाकई बड़ी अजीब स्थिति है, पब्लिक प्लेटफॉर्म पर संपादक कितने पॉलिटिकलि करेक्ट रहते हैं। बडे-बड़े भाषण कंटेंट की क्वॉलिटी और जर्नलिज्म के एथिक्स को लेकर दिए जाते हैं, पर असल में जो होता है, उस पर पब्लिक मीडिया को लेकर जोक बनाती है। वाकई अब हम पत्रकार एक जोक बनकर ही रह जाएंगे क्या? क्या टीआरपी के आगे संवेदनशीलता और मानवता ने दम तोड़ दिया है?
टीवी में विजुअल्स और रिक्रिएशन के नाम पर जो घिनौना खेल खेला जा रहा
है, वो अब सीमाएं लांघ चुका
है, ऐसे में कैसे क्रेडिबिलिटी बचेगी, ये
समझ से परे हैं। आप श्रीदेवी की मौत पर प्रिंट मीडिया को देखिए, उन्होंने भी खबर और कई सूचनाएं दी है, पर मौत को
तमाशा नहीं बनाया है।
ये वक्त है जब टीवी न्यूज मीडिया के कर्ता-धर्ता संपादकों को आगे आकर जवाब देना चाहिए कि आखिर वे क्यों और किसलिए इस तरह की कवरेज दिखा रहे हैं, क्या ऑब्जेक्टिव है उनका ये सब दिखाने के पीछे, क्या उनके लिए यही एथिकल जर्नलिज्म है?
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