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क्या मीडिया अब यू-टर्न मोड पर आ गया है?
संपूर्ण विश्व में भारत वर्ष की लोकतांत्रिक व्यवस्था का डंका है। यही एक अच्छे लोकतंत्र...
समाचार4मीडिया ब्यूरो 5 years ago
मानवेंद्र मल्होत्रा
वरिष्ठ पत्रकार।।
संपूर्ण विश्व में भारत वर्ष की लोकतांत्रिक व्यवस्था का डंका है। यही एक अच्छे लोकतंत्र की पहचान है कि अपने कार्यों के लिए जवाबदेह और लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कही जाने वाली मीडिया इतनी जागरूक होनी चाहिये कि वह लगातार बिना डर और झिझक के सत्ता धारियों से सवाल करती रहे और एक सजग प्रहरी की भूमिका निभाये। दुर्भाग्य है कि भारत के लोकतंत्र की वर्तमान स्थिति यह है कि सत्ताधारियों के महिमामंडन में जुटे इस चौथे स्तम्भ के अधिकतर लंबरदारों ने चापलूसी और चाटुकारिता की ऐसी अति कर रखी है कि इसे रसातल में जाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचा है।
केंद्र सरकार में काबिज सत्ताधारियों से सवाल पूछने या उसकी आलोचना करने वाले रवीश, अभिसार और पुण्य प्रसून बाजपेयी के साथ किस तरह का सुलूक हो रहा है, यह किसी से छुपा नहीं है। गत दिनों पुण्य प्रसून वाजपेयी को एंटी सरकार कैंपेन चलाने के आरोप लगाकर ‘सूर्या समाचार’ से हटने के आदेश दे दिए गए। आजकल मीडिया पर एक तरह का अदृश्य अंकुश लगा हुआ है और मीडिया प्लानर न्यूज के नाम पर व्यूज और महिमामंडन को इस बारीकी से आमजनमानस के मस्तिष्क में रोपने में लगे हैं कि सवाल पूछने चाहिये सत्ता से और उनके सुर में सुर मिला कर उनके दर्शक उल्टे सवाल पूछ रहे हैं विपक्ष से। बात होनी चाहिये अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर, रोजगार/नौकरियों के मुद्दों पर, भ्रष्टाचार के मुद्दों पर, कानून व्यवस्था के मुद्दों पर, तमाम सरकारी योजनाओं की सफलत-विफलता के मुद्दों पर, लेकिन इन टीवी स्टूडियोज की महफिलें सजती हैं मुसलमानों, राम मंदिर, पाकिस्तान, जंग, मसूद अजहर ‘जी’ के मुद्दों पर।
इनकी हरकतें भी एक तरह से इतनी नार्मल सी और एक जैसी हो गयी हैं कि अब आम लोग भी इनके खेल को समझने लगे हैं। ऐसे में रवीश और अभिसार की गोदी मीडिया के बहिष्कार की व्यापक अपील भी असर दिखाने लगी है और ट्राई के नये नियमों ने लोगों को कचरे से दूर रहने की एक सहूलियत तो दी ही है। ऐसे में शायद इन्हें पब्लिक की उकताहट समझ में आने लगी है और दूसरे इस आशंका ने भी उन्हें किसी हद तक डराया है कि बॉयकॉट की अपील आम दर्शकों के साथ सभी विपक्षी दलों से भी की जा रही है।
मीडिया का एजेंडा विपक्षी दल भी अब खूब समझने लगे हैं, प्रचार और अपनी बात रखने के लिये सोशल मीडिया भी एक सशक्त माध्यम बनकर उभरा है, जिसके कारण अगर वो लोग मीडिया का बॉयकॉट कर दें तो कोई ताज्जुब नहीं। ऐसे में इन एजेंडेबाज चैनलों के रवैये में थोड़ा बदलाव आया तो है कि अब उन्होंने विपक्ष को स्पेस देना शुरू कर दिया है और भले मजबूरी में सही, लेकिन सत्ता से सवाल पूछने का साहस दिखाया तो है। आगे यह क्या यू टर्न लेते हैं, यह भविष्य के गर्भ में है लेकिन कम से कम इन्होंने शुरुआत तो की है। अब ये ही रास्ता बचा है। खुद की पहचान खोने के डर से कुछ पत्रकार सवाल तो करने लगे जनता को सच तो दिखाने लगे।
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