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सांसदों का यह व्यवहार सरकार के लिए सिरदर्द बन चुका है: निर्मलेंदु
मोदी जब अनुशासन का पाठ प्यार से पढ़ाते हैं, तो लगता है कि हमें एक बेहतर टीचर मिल गया है...
समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago
निर्मलेंदु
कार्यकारी संपादक,
दैनिक राष्ट्रीय उजाला ।।
कुर्सी तो मिल जाती है, लेकिन...
मोदी जब अनुशासन का पाठ प्यार से पढ़ाते हैं, तो लगता है कि हमें एक बेहतर टीचर मिल गया है। प्यार से सहलाते हुए वह जिस तरह से अपने सांसदों को ज्ञान का पाठ पढ़ाते हैं और साथ ही डांटते डपटते और सहलाते हुए गुस्सा करते हैं, वह देखने, समझने, बूझने और अहसास करने लायक है। वैसे, इसमें उनका वात्सल्य और प्रेम भी झलकता है। वह देशप्रेमी हैं, इसलिए सबसे उम्मीद यही करते हैं कि सब उनकी तरह देश से प्रेम करें, क्योंकि अगर देश से प्रेम करेंगे, तो जनता से भी प्रेम करेंगे। अब यदि यह कहें कि अच्छे टीचर हैं मोदी, तो शायद गलत नहीं होगा। ऐसा लगता है कि जैसे वह स्कूल के बच्चों में अपना ज्ञान निवेश कर रहे हैं। शायद उन्हें इस बात का इल्म है कि ज्ञान का निवेश करना सबसे अच्छी बात है- दरअसल, ज्ञानी गुणी कह गये हैं कि समय और अच्छे संस्कार का निवेश हमेशा अच्छा होता है। कहते हैं कि एक श्रेष्ठ बालक का निर्माण सौ विद्यालय को बनाने से भी बेहतर है। वे सांसदों में अपना ज्ञान निवेश कर रहे हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सांसद समझ रहे हैं कि उनसे क्या गलती हो रही है?
सवाल उठता है कि गैरहाजिर रहने वाले बीजेपी सांसदों पर क्यों बरसे मोदी। उन्होंने कहा, जो मन में आए करें, मैं 2019 में देखूंगा। उन्होंने जिस तरह से सांसदों को अपनी जिम्मेदारी का अहसास दिलाया, उससे तो यही लग रहा था कि स्कूल के बच्चों को वह जिम्मेदारी का अहसास दिला रहे हैं। शायद मोदी अपने सांसदों को यह कहना चाह रहे हों कि शर्म की बात है कि आप लोगों को जो लोग चुन कर यहां लाते हैं, उनके प्रति आपका रवैया दिन ब दिन गैरजिम्मेदाराना होता जा रहा है। एक तरह से यह भी कह सकते हैं कि यह आज की राजनीतिक संस्कृति का ही परिणाम है कि निर्वाचित जनप्रतिनिधि उस कार्य में दिलचस्पी लेते ही नहीं, जिसके लिए उनका चुनाव हुआ है। कह सकते हैं कि यह उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है।
उन्होंने सांसदों को बच्चों की तरह समझाते हुए कहा कि अब आपके मौज मस्ती के लक्षण बंद हो जाएंगे। आप लोग अपने को क्या समझते हो। आप कुछ भी नहीं हैं, मैं भी कुछ नहीं हूं, सब कुछ बीजेपी है, पार्टी है। जिस तरह से बच्चे स्कूल से गायब रहते हैं, और क्लास टीचर अटेंडेंस पर जवाबदेही चाहते हैं, ठीक उसी तरह मोदी ने भी अटेंडेंस पर कहा कि अटेंडेंस पर क्यों कहें। बार बार क्यों कहें। शायद वह कहना यह चाहते हैं कि बच्चे भी स्कूल में गैरहाजिर रहते हैं, तो उन्हें भी बार बार कहना पड़ता है, तो आप तो सांसद हैं, उम्र में चार गुणा बड़े, तो आपको बार बार क्यों कहें? आश्चर्य की बात तो यह है कि भाजपा जैसे अनुशासित माने जाने वाले दल के आलाकमान के स्पष्ट निर्देशों को भी ये सांसद नहीं मानते। अनदेखी कर जाते हैं। ऐसे में यदि यह कहें कि भाजपा नेतृत्व का खफा होना लाजिमी था, तो शायद गलत नहीं होगा। अब समय आ गया है कि भाजपा के आलाकमान को और ज्यादा सख्त होना पड़ेगा, नहीं तो बहुत देर हो जाएगी, क्योंकि 2019 में जनता नहीं बख्शेगी। दरअसल, सांसदों की अनुपस्थिति सरकार के लिए सिरदर्द बन चुकी है। यह सरकार के लिए एक बहुत बड़ी समस्या बन चुकी है।
बातों ही बातों में मोदी सांसदों को यह अहसास दिलाना चाहते हैं कि उन्हें ऐसी शिक्षा चाहिए, जिससे सद् चरित्र का निर्माण हो, मन की शक्ति बढ़े, बुद्धि का विकास हो, सांसद अपने पैरों पर खड़े हो सकें और जनता के बारे में सोच सकें। सच तो यही है कि उन्हें बेलाग संदेश दिया गया कि उनका तौर-तरीका स्वीकार्य नहीं है। वह कहना यह चाहते हैं कि जनता के पैसे से ही उन्हें सुख सुविधाएं इसीलिए मिलती हैं कि वे जनता का ध्यान रखें। अन्यथा जनता भी 2019 में भाजपा का ध्यान नहीं रखेगी। बड़े बुजुर्ग कह गये हैं कि कुएं में उतरने वाली बाल्टी यदि झुकती है, तो वह भर कर ही बाहर आती है। जीवन का भी यहीं गणित है, जो झुकता है, वह प्राप्त करता है। कुर्सी मिल जाती है, उसे बचाने के लिए जीवन भर यत्न-प्रयत्न करना पड़ता है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि जो बदलाव हम दुनिया में देखना चाहते हैं, सबसे पहले उसे खुद पर लागू करना होगा। दरअसल, हम दूसरों को नहीं बदल सकते, लेकिन हम खुद को तो बदल ही सकते हैं। ऐसा लगता है कि मोदी ने स्वामी विवेकानंद के इस सत्य को आत्मसात कर लिया है कि जो सत्य है, उसे साहसपूर्वक निर्भीक होकर लोगों से कहना चाहिए। उससे किसी को कष्ट होता है या नहीं, इस ओर ध्यान देना मूर्खता होती है, क्योंकि दुर्बलता को कभी प्रश्रय न दें तो बेहतर।
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