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मोदी सरकार राष्ट्रवादी है तो खत्म करें अंग्रेजी की अनिवार्यता , बोले वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वैदिक
डॉ. वेदप्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार ।। अब हिरणों पर लदेगी घास हमारे सरकारी अफसर नरेंद्र मोदी सरकार का बेड़ा गर्क करने पर उतारु हैं। मोदी ने 12 सचिवों की एक सम
समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
वरिष्ठ पत्रकार ।।
अब हिरणों पर लदेगी घास
हमारे सरकारी अफसर नरेंद्र मोदी सरकार का बेड़ा गर्क करने पर उतारु हैं। मोदी ने 12 सचिवों की एक समिति बनाई, यह तय करने के लिए कि देश के करोड़ों बच्चों की शिक्षा का माध्यम क्या हो और उन्हें कौनसी भाषा पढ़ाई जाए! ये 12 सचिव मोदी के 12 रत्न हैं, जैसे अकबर बादशाह के दरबार में नवरत्न थे। इन 12 रत्नों का कहना है कि छठवीं कक्षा से आगे तक सभी कक्षाओं में अंग्रेजी की पढ़ाई अनिवार्य होनी चाहिए और भारत के 6612 खंडों (ब्लाकों) में सरकार को अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों की स्थापना करनी चाहिए।
मुझे विश्वास है कि मोदी सरकार इस कमेटी के इस मूर्खतापूर्ण सुझाव को रद्दी की टोकरी के हवाले कर देगी। बच्चों पर अंग्रेजी लादना ऐसा ही है, जैसे हिरणों पर घास लादना। सबसे पहले तो आश्चर्य की बात यह है कि मोदी ने ऐसी कमेटी बनाई ही क्यों? क्या शिक्षा संबंधी मंत्रालयों के सचिवों में इतनी योग्यता होती है कि वे देश की शिक्षा-नीति तय कर सकें? इन सरकारी पदों पर तरह-तरह के अफसर आते-जाते रहते हैं। उनका काम सरकार की शिक्षा-नीति बनाना नहीं है बल्कि बनी हुई नीति को लागू करना है। देश की शिक्षा में भाषा-नीति बनाने के लिए अफसरों की बजाय शिक्षाविदों और भाषाविदों की समिति बनाई जानी चाहिए।
इसके विपरीत अफसरों की समिति बनाई गई हैं, इसी से पता चलता है कि हमारे प्रधानमंत्री की समझ का स्तर कितना ऊंचा है। इन सचिवों को क्या यह पता है कि देश में हर साल करोड़ों बच्चे स्कूलों से क्यों भाग खड़े होते हैं? अन्य कारणों के अलावा अंग्रेजी की पढ़ाई इसका सबसे बड़ा कारण है। सबसे ज्यादा बच्चे अंग्रेजी में फेल होते हैं और सबसे ज्यादा मेहनत उन्हें इसी विदेशी भाषा को रटने पर लगानी पड़ती है। इसी के कारण अन्य विषयों की उपेक्षा होती है। छात्रों की मौलिकता नष्ट होती है। वे नकलची बन जाते हैं। वे मानसिक दृष्टि से पश्चिम की गुलामी करने लगते हैं। स्वभाषा और स्वदेश प्रेम में गिरावट आती है। बचपन से ही भारत और इंडिया की दिमागी खाई पैदा हो जाती है। दुनिया के किसी भी शक्तिशाली राष्ट्र के बच्चों की पढ़ाई विदेशी भाषा में नहीं होती।
यदि मोदी की सरकार राष्ट्रवादी है तो उसे अंग्रेजी की पढ़ाई सारे स्कूलों में स्वैच्छिक कर देनी चाहिए। अंग्रेजी माध्यम के सारे स्कूलों पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए। कोई भी स्वेच्छा से विदेशी भाषाएं पढ़ना चाहे तो जरुर पढ़े। सरकारी नौकरियों की भर्ती में अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म करनी चाहिए। सारा संसदीय, अदालती और सरकारी काम-काज स्वभाषाओं और राष्ट्रभाषा में होना चाहिए। अंग्रेजी का सह-राजभाषा का स्थान खत्म किया जाना चाहिए। भाजपा के सांसद यह प्रस्ताव संसद में क्यों नहीं लाते?
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