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'आसाराम की तस्वीर के जरिए मोदी पर निशाना साधने के मायने'
आसाराम की बची-खुची उम्र अब जेल में ही गुजरेगी। अदालत के फैसले ने आसाराम...
समाचार4मीडिया ब्यूरो 6 years ago
‘आसाराम से रिश्तों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
पर सवाल खड़े करना एक रणनीतिक बेवकूफी है और बीजेपी चाहे तो मोदी को न्यायप्रिय
बता कर इस मामले में सियासी विरोधियों के आरोपों कीं धार को कुंद कर सकती है।’ हिंदी अखबार ‘लोकसत्य’ में
छपे अपने आलेख के जरिए ये कहना है चैनल वन के पूर्व कार्यकारी संपादक अमर आनंद का।
उनका पूरा आलेख आप यहां पढ़ सकते हैं-
आसाराम की तस्वीर के जरिए मोदी पर निशाना
आसाराम की बची-खुची उम्र अब जेल में ही गुजरेगी। अदालत के फैसले ने आसाराम के जेल से बाहर आने की संभावनाओं पर पूरी तरह पानी फेर दिया। मगर कुछ लोग इस फैसले को 2019 से जोड़कर भी देख रहे हैं। आसाराम से आशीर्वाद लेते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पुराने विडियो को सियासी विरोधियों द्वारा जिस तरीके से सोशल मीडिया में दिखाया जा रहा है, उसका एक मकसद ये मोदी की इमेज खराब करना भी है और ये सवाल खड़े करना है कि देखिए किस तरीके से एक रेप के मामले में सजायाफ्ता पूर्व संत से मोदी आशीर्वाद ले रहे हैं। आसाराम और मोदी को जोड़कर दिखाने का विरोधियों का मतलब ये है किस तरह आसाराम की करतूतों के छींटें मोदी और उनकी बीजेपी पर पड़े और जनता के नजर में उन्हें नीचा दिखाया जाए और खुद को उनकी तुलना में बेहतर साबित किया जाए। लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है और वो शायद विरोधियों के दिमाग में नहीं आ रहा है।
हिंदू भावनाओं और हिंदू वोटों को आधार बनाकर सत्ता पर काबिज हुई नरेंद्र मोदी सरकार भला चार करोड़ अनुयायी वाले हिंदू संत आसाराम के असर का चुनावी लाभ क्यों नहीं लेना चाहेगी? और इसके लिए वो आसाराम की रिहाई का रास्ता साफ करने में कोई कसर नहीं छोड़ सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इसके बदले हुआ ये कि आसाराम को उम्र भर जेल की सलाखों के पीछे रहना होगा। अब सवाल ये उठता है कि देश का सबसे बड़ा ताकतवर शख्स जिससे आशीर्वाद लेता रहा था, उसे राहत दिलवाने की अंदरखाने कोशिश करने में उसने रुचि क्यों नहीं दिखाई? और अगर नहीं दिखाई तो ये उस शख्स के लिए बेहद सकारात्मकर माना जाएगा। सचमुच इस मामले में प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करनी होगी। इससे सिर्फ यही संदेश जाता है कि गलत कोई भी हो, कितना भी ताकतवर हो, उससे चाहे कितना भी सियासी नुकसान हो, उसे छोड़ा नहीं जाना चाहिए। इस पूरे वाकये से यही संदेश जाता है। ये प्रधानमंत्री मोदी की इंसाफ पसंद छवि को एक तरह से जस्टिफाइ करता है इसलिए जो सियासी विरोधी आसाराम से आशीर्वाद लेते नरेंद्र मोदी का विडियो सर्कुलेट कर रहे हैं वो एक तरह से मोदी की आलोचना नहीं बल्कि उनकी तारीफ कर रहे हैं।
जिस तरह साध्वी प्रज्ञा और असीमानंद के मामले में अदालतों के फैसले आए, उन्हें बरी किया गया, उससे ऐसा लगने लगा कि केंद्र में बैठी बीजेपी अपने हिंदू परस्त छवि को बरकरार रखने के लिए कुछ भी कर गुजरेगी और आसाराम के मामल में अपने प्रभाव का पूरा-पूरा इस्तेमाल करेगी, लेकिन आसाराम पर आए फैसले ने इन धारणाओं पर एक तरह से पानी फेर दिया। इसका एक पहलू ये भी है कि बीजेपी के समर्थक कट्टर हिंदू जो आसाराम को साजिशन फंसाए जाने का आरोप लगा रहे थे और मोदी को हिंदुत्व के पुरोधा और रक्षक के तौर पर देख रहे थे उन्हें निराशा हाथ लगी है और जाहिर तौर पर आसाराम के चार करोड़ समर्थकों के साथ-साथ वो भी 2019 के चुनाव में बीजेपी के साथ खड़े होने से पहले जरूर सोचेंगे।
मोदी और आसाराम के गृह राज्य में इसका चुनावी असर तो देखने को तो मिलेगा ही राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश समेत तकरीबन सभी उन राज्यों में लोकसभा में विधान सभा चुनावों में इसका असर देखने को मिल सकता है जहां आसाराम के अनुयायियों और समर्थकों की अच्छी खासी तादाद है। आसाराम के समर्थकों में कई ऐसे समर्थकों के निशाने पर भी केंद्र में बैठी बीजेपी आ सकती है, जो किसी भी हाल में बाबा को कसूरवार मानने को तैयार नहीं है। ऐसे समर्थकों के मुताबिक आसाराम को साजिश की तहत ही फंसाया गया है। केंद्र की सत्ता में बैठी बीजेपी की मुस्लिम विरोधी और कट्टर हिंदूवादी छवि को आसाराम प्रकरण से नुकसान पहुंचेगा ऐसा समझा जा रहा है। बीजेपी चुनावी संभावनाओं के लिए किस तरह धार्मिक गुरुओं का इस्तेमाल करती है ये किसी से छुपा हुआ नहीं है। रेप के आरोप में जेल मे सजा काट रहे गुरमीत राम रहीम और उसके डेरा सच्चा सौदा का किस तरह हरियाणा विधान सभा चुनाव में इस्तेमाल किया गया, ये सबने देखा है और बाद में गुरमीत राम रहीम का बुरा हश्र होते भी सबने देखा है।
बहरहाल उन्नाव में रेप का आरोप झेल रहे विधायक कुलदीप सिंह सेंगर और कठुआ में नाबालिग से
रेप के आरोपी का समर्थन करने की वजह से सवालों में आई बीजेपी के लिए ये एक राहत
भरी खबर हो सकती है। पोक्सो एक्ट में बदलाव करते हुए नाबालिग से रेप के मामले में
फांसी की सजा का कानूनी प्रावधान लाना तो समाज के लिए
एक बेहतरीन कदम माना ही जा रहा था, आसाराम को सज़ा
दिलाने का श्रेय भी जाने अनजाने सरकार के खाते में ही जाता हुआ दिखाई पड़ रहा है
और इस मामले में सरकार की आलोचना करना सिर्फ ओछी राजनीति का सबब ही माना जाएगा।
चुनावी सियासत का एक सबसे बड़ा नकारात्मक पहलू है कि वो दुश्मन पार्टी की अच्छाई
को भी बुराई की तरह पेश करती है और आसाराम के मामले में मोदी के विरोधी यही कर रहे
हैं, जबकि इससे उन्हें कोई फायदा नहीं होने वाला है।
आसाराम प्रकरण की वजह से हिंदू परस्त बीजेपी की 2019 में चुनावी संभावनाएं चाहे जो हो, आसाराम से रिश्तों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल खड़े करना एक रणनीतिक बेवकूफी है और बीजेपी चाहे तो मोदी को न्यायप्रिय बताकर इस मामले में सियासी विरोधियों के आरोपों कीं धार को कुंद कर सकती है।
(साभार: लोकसत्य)
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