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वरिष्ठ पत्रकार निर्मलेंदु बोले, पूरे नहीं हुए पीएम मोदी के वादे?
निर्मलेंदु एग्जिक्यूटिव एडिटर दैनिक राष्ट्रीय उजाला ।। पूरे नहीं हुए पीएम मोदी के वादे? पूरे हुए नोटब
समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago
निर्मलेंदु
एग्जिक्यूटिव एडिटर
दैनिक राष्ट्रीय उजाला ।।
पूरे नहीं हुए पीएम मोदी के वादे?
पूरे हुए नोटबंदी के 50 दिन। एग्जाम में 33% मार्क्स मिलने के बाद ही स्टूडेंट पास हो पाते हैं, ऐसे में पीएम के नोटबंदी के 50 दिन पूरे होने पर क्या देश की आम जनता पीएम को 33% मार्क्स देगी? मुझे लगता नहीं, क्योंकि हमारे पीएम सैंकड़ों से ज्यादा लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार हैं। वैसे इसी देश में लाल बहादुर शास्त्री जैसे नेता भी हुए हैं जिन्होंने रेल दुर्घटना पर नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दिया था। पर शायद अब नैतिकता के पैमाने बदल गए हैं।
जिन घरों में चूल्हे नहीं जले, उसके लिए भी वे ही जिम्मेदार हैं। जिस कंपनी में कुछ लोगों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा, उसके लिए भी वे ही जिम्मेदार हैं। बड़े बुजुर्ग आज भी पैसे के लिए एटीएम के चक्कर लगा रहे हैं, उसके लिए वे ही जिम्मेदार हैं, क्योंकि उन्होंने जो वादे किये थे, वे पूरे नहीं हुए।
जनता को 50 दिन बाद राहत के वादे आखिरकार गलत ही साबित हुए। दंभ और अहंकार की हार हुई। प्रधानमंत्री ने दरअसल, कमजोर व्यक्ति, यानी आम जनता से दुश्मनी मोल ली है। उन्हें पता होना चाहिए कि कमजोर व्यक्ति से दुश्मनी ज्यादा खतरनाक होती है, क्योंकि वह उस समय वार करता है, जब कल्पना भी नहीं कर सकते। ढाई साल बाद जनता के पास वोट देने का अधिकार फिर आयेगा, तब पता चलेगा कि जनता चीज बड़ी है मस्त-मस्त, लेकिन करती है अपने वार से पस्त-पस्त।
मजदूरों की मजदूरी खत्म, बड़े-बड़े कल कारखानों का काम ठप। क्या मोदी जी को यह नहीं दिख रहा है कि इस निर्णय के कारण देश की आम जनता परेशान हो गई है। उन्होंने भाषण देते वक्त यह कहा था कि वे कुछ बड़े लोगों को सजा देना चाहते हैं, ईमानदार को कोई कष्ट नहीं होगा, केवल बेईमानों को कष्ट होगा, लेकिन सच तो यही है कि ईमानदार और गरीब जनता ही उनके इस निर्णय के नीचे कुचले जा रहे हैं। शायद इसीलिए ममता बनर्जी ने कहा था कि भाषण के अलावा पीएम मोदी के पास कोई काम नहीं है।
आश्चर्य की बात तो यह है कि भ्रष्टाचार का खेल नये नोटों के साथ भी हो रहा है। जिस नये नोटों के भरोसे पीएम ने देश की जनता को आश्वासन दिया था, वे नोट भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गये। ऐसे में सवाल यह उठता है कि अस्सी करोड़ से ज्यादा नये नोट बाहर कैसे आये, इस बात का अभी तक खुलासा नहीं हुआ है। क्या उन बैंककर्मियों को दंड मिला? क्या उन नेताओं को दंड मिला? नेताओं के पास ही नहीं, नये नोट तो दलालों और आम जनता के पास भी मिले। क्या पीएम ने वादाखिलाफी नहीं की? क्या पीएम ने बैंककर्मी पर कार्रवाई की? हमारा ही पैसा हम नहीं निकाल पा रहे हैं, बैंकों के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं, बैंक का मैनेजर खरी-खोटी सुना है, अफरा तफरी मची हुई है, इससे बड़ी शर्म की बात और क्या है। बस हमारा सवाल यही है कि इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
सच तो यही है कि सरकार के खाते में आए सिर्फ 1% कालाधन। 15 लाख करोड़ की करंसी चलन से बाहर की गई थी। इनमें से 14 लाख करोड़ रुपए के नोट या तो बदले गए या जमा किए गए। 8 नंवबर को पीएम मोदी ने 1000 और 500 के पुराने नोट को बैन करने के जो कारण बताए थे, उनमें कालाधन रोकना अहम मकसद था। विभिन्न एजेंसियों का अनुमान है कि नोटबंदी के वक्त देश में 3 लाख करोड़ की ब्लैकमनी मौजूद थी। वहीं, सरकार के आंकड़े कहते हैं कि अब तक 3100 करोड़ रुपए की ब्लैकमनी देशभर में चली कार्रवाई के दौरान जब्त की गई। इस लिहाज से नोटबंदी के 50 दिन में सरकार महज 1% ब्लैकमनी ही जब्त कर पाई।
यदि यह कहें कि ऐसे में आम जनता न घर की रही और न ही घाट की, तो शायद गलत नहीं होगा। पड़ताल के बाद यही बात सामने आ रही है कि आम जन को कोई बड़ी राहत नहीं मिली। कहीं पर केवल 24 हजार के लिए बीस दिनों से अग्रवाल परिवार के लोग भटक रहे हैं, तो कहीं पर यानी बलिया में बैंक की कतार में खड़े 70 साल के बुजुर्ग की मौत हो जाती है। अब तो यह कह सकते हैं कि चिदंबरम ने कहा था कि नोटबंदी के कारण रोजी रोटी में आएगा संकट, वे सही थे।
90 प्रतिशत पुराने नोट सिस्टम में तो लौट चुके हैं, लेकिन क्या इससे आम जनता को राहत मिली? तस्वीर का एक पहलू यह भी है कि अभी भी नोटबंदी के प्रभाव के कारण एटीएम में लंबी कतारें देखने को मिल रही हैं। अभी भी लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। विपक्षी दलों ने भी सरकार को इस मुद्दे पर चौतरफा घेरा है। शर्म की बात तो यह है कि हाल में खत्म हुआ पूरा शीतकालीन सत्र नोटबंदी की भेंट चढ़ गया। पिछले 15 वर्षों में इस शीतकालीन सत्र की उत्पादकता सबसे कम रही। एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया से रिटायर्ड जीएम शरत चंद्र अग्रवाल दिल्ली के रानी बाग इलाके में अपनी पत्नी के साथ रहते हैं। 20 दिन से अग्रवाल परिवार के लोग बैंक से 24 हजार रुपए निकालना चाह रहे हैं, लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी इन्हें अब तक पैसे नहीं मिले। इनका खाता पंजाब एंड सिंध बैंक में है।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने बैंक खातों से पैसे निकालने की लिमिट तय किए जाने की आलोचना की। कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा कि जनता का पैसा है, किस आधार पर मोदीजी ने 24 हजार रुपए की लिमिट लगाई है। राहुल ने कहा कि 8 नवंबर को पीएम मोदी ने कहा था कि वे कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ यज्ञ कर रहे हैं।
एक और तस्वीर। दरअसल, नोटबंदी के कारण ही गाजियाबाद जिले में अब तक सात मौत हो चुकी है। नोटबंदी से परेशान होकर विजयनगर के मवई गांव में रहने वाले एक शख्स ने सोमवार देर रात स्युसाइड कर लिया। बताया जा रहा है कि नोटबंदी के बाद 48 दिन में उसे महज 2 दिन ही काम मिला था। दरअसल, 2 महीने से न तो वह बच्चों की फीस भर पाया था, जिससे बच्चों को स्कूल से निकाल दिया गया था। 2 महीने से घर का किराया भी नहीं दे सका था।
प्रधानमंत्री का नोटबंदी का फैसला गाजियाबाद में रहने वाले कई परिवारों पर कहर बनकर टूटा है।
11 नवंबर : लोनी में डॉक्टर ने चेंज न होने की वजह से एक बच्चे की इलाज करने से इनकार कर दिया। इससे बच्चे की मौत हो गई।
15 नवंबर : कुंवरपाल के 2 साल के बेटे को एक प्राइवेट डॉक्टर ने 500 रुपए का पुराना नोट होने के चलते दवा नहीं दी। समय से इलाज न मिलने से बच्चे ने जान गंवा दी।
17 नवंबर : हादसे में घायल महावीर का इलाज हॉस्पिटल ने पुराने नोट न होने के चलते नहीं किया। इलाज के अभाव में उन्होंने दम तोड़ दिया।
19 नवंबर : बीमार होने के बावजूद ढाई घंटे तक लाइन में लगी मुरादनगर की सलीमन को कैश नहीं मिला तो वह चक्कर खाकर सड़क पर गिर गईं। डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
29 नवंबर : न्यू आर्यनगर के रहने वाले मुन्ना लाल की मौत कैश नहीं होने के कारण हो गई थी। डॉक्टरों ने फोड़ा बताया था, जिसका इलाज न होने के चलते उनकी मौत हो गई।
11 दिसंबर : विजयनगर क्षेत्र की चरण सिंह कॉलोनी में 2 दिन से कैश की किल्लत से जूझ रहे मुन्ना सिंह की मौत तबीयत बिगड़ने के कारण हो गई थी।
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