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डॉ. वैदिक का सवाल- चंदादाताओं की जानकारी छिपाने का क्या मतलब निकाला जाए?
डॉ. वेदप्रताप वैदिक वरिष्ठ पत्रकार ।। अन्ना हजारे ने आम आदमी पार्टी को आड़े हाथों लिया है। इस पार्टी का जन्म अन्ना-आंदोलन के गर्भ से ही हुआ है लेकिन अन्ना को निराशा यह है कि यह पार्टी भी अन्य पार्टियों की तरह गो
समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago
डॉ. वेदप्रताप वैदिक
वरिष्ठ पत्रकार ।।
अन्ना हजारे ने आम आदमी पार्टी को आड़े हाथों लिया है। इस पार्टी का जन्म अन्ना-आंदोलन के गर्भ से ही हुआ है लेकिन अन्ना को निराशा यह है कि यह पार्टी भी अन्य पार्टियों की तरह गोरखधंधे में फंस गई है। अन्ना पूछते हैं कि ‘आप’ की वेबसाइट से चंदादाताओं के नाम क्यों हटा लिये गए हैं? भ्रष्टाचार-विरोधी आंदोलन से जन्मी यह पार्टी क्या अब खुद भ्रष्टाचार में नहीं फंस गई है?
अपने चंदादाताओं की जानकारी छिपाने का क्या मतलब निकाला जाए? एक तरफ ‘आप’ भाजपा से मांग करती है कि वह अपने चंदादाताओं की सूची प्रकट करे और दूसरी तरफ उसने प्रकट की गई अपनी सूची को अब छिपा लिया है। अन्ना का यह तिलमिलाना एक तरह से मोदी पर लगाए जा रहे अरविंद केजरीवाल के आरोपों का जवाब है। लेकिन अन्ना यह क्यों नहीं समझते कि आज की राजनीति काजल की कोठरी है। इसमें वे खुद भी बैठते तो उनका मुंह भी काला हो जाता। सहारा और बिड़ला समूह की डायरियों से प्रधानमंत्री समेत लगभग सभी प्रमुख पार्टियों के 100 नेताओं के नाम निकले हैं। इनमें से एक भी नेता ने यह नहीं कहा है कि उसने रिश्वत नहीं खाई है। वे सब यही कहते हैं कि दूसरों ने खाई है। याने वे स्वीकार करते हैं कि सब चोर हैं। जनता की अदालत उनके बयानों के आधार पर ही उन्हें अपराधी मान लेगी।
सर्वोच्च न्यायालय चाहे इन सब पर कोई कार्रवाई नहीं करे लेकिन भारत सरकार को तो चाहिए कि इन डायरियों में से निकले सभी ‘विकास-पुरुषों’ और ‘स्वच्छ पुरुषों’ पर जांच बिठा दे। यह जांच समयबद्ध हो, निष्पक्ष हो, तत्काल हो और उच्च-स्तरीय हो। ऐसा इसलिए भी हो कि इसमें वर्तमान प्रधानमंत्री का नाम भी जुड़ा हुआ है। यदि जांच नहीं होगी तो प्रधानमंत्री पर कीचड़ जमकर उछलेगा और वह उन पर चिपकता भी चला जाएगा। उनकी स्वच्छ छवि पर ग्रहण लग जाएगा। सब नेता तो अगल-बगल से निकल भागेंगे लेकिन प्रधानमंत्री का बच निकलना मुश्किल होगा।
जांच की मांग करने वाले राहुल गांधी-जैसे अ-नेता भी नेता बन जाएंगे। यदि निष्पक्ष जांच नहीं हुई तो यह सिद्ध हो जाएगा कि ‘मैं खाता हूं और खाने देता हूं।’ ‘न खाऊंगा और न खाने दूंगा’’ की बात सिर के बल खड़ी हो जाएगी। यदि जांच में यह सिद्ध हो जाए कि सभी नेताओं ने रिश्वत खाई है तो वे खुले-आम स्वीकार करें कि हां, उन्होंने खाई है। व्यवस्था ही ऐसी है कि खाए बिना काम नहीं चल सकता। अब हम सब संकल्प करते हैं कि सड़ी-गली पार्टी और चुनाव व्यवस्था को हम आमूल-चूल बदलेंगे ताकि देश की राजनीति में अर्थ-शुचिता का सूत्रपात हो।
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