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‘सोशल मीडिया के दौर में हाशिए पर सरकारी आकाशवाणी’
वह जमाना रेडियो का था। ऑल इंडिया रेडियो और विविध भारती का...
समाचार4मीडिया ब्यूरो 6 years ago
मनोज कुमार
वरिष्ठ पत्रकार ।।
वह जमाना रेडियो का था। ऑल इंडिया रेडियो और विविध भारती का। अमीन सयानी के ‘बिनाका गीतमाला’ वाला रेडियो सिलोन या विविध भारती के नाटकों का ‘हवामहल’ प्रोग्राम का। यह दौर है एफएम और कम्युनिटी रेडियो का। समय बदला, जरूरतें बदली और प्रोग्राम के तेवर बदले। प्रसारण का अंदाज बदला और विषयों की गंभीरता बदली।
80 के दशक में हाशिये पर जा रहे रेडियो को एफएम ने नई जिंदगी तो दी लेकिन रेडियो संचार के बजाय एंटरटेनमेंट का जरिया बनकर रह गया। खबरों की प्रामाणिकता हाशिये पर चली गई। रेडियो पर सूचनाओं का भंडार हो गया। एक अर्थ में रेडियो भी गजट बन कर रह गया था। लेकिन बदलाव के साथ रेडियो ने वापसी की धमक दी। ‘मन’ के रास्ते ‘दिल’ की ‘गोठ’ ने रेडियो के लिए नए दरवाजे खोले हैं। सरकार, शासन और समाज के बीच रेडियो एक पुल के रूप में सामने आया है जहां सरकार अपनी बात रख रही है तो लोग सवाल कर रहे हैं।
रेडियो एक बार फिर हर आदमी की जरूरत बन गया है। इसके पहले जब रेडियो का नाम सुनते ही सहसा दिमाग में उस बड़े से डिब्बानुमा यंत्र का चित्र नुमाया होता है जिसके अग्र भाग में जालीदार कव्हर होता था और कुछ बड़े बटन, साथ में स्केलनुमा बना हुआ ग्राफ जिस पर क्लिक करते ही आवाज आने लगती थी.. ये आकाशवाणी का दिल्ली केन्द्र है... ऐसे ही जैसे चमड़ा चढ़ा एक प्लास्टिक का डिब्बा, रेडियो तरंगों को पकडऩे के लिए कुतुब मीनार सा निकला स्टील का एंटीना और स्पीकर से निकलते कानों में रस घोलने वाले मीठे मीठे से शब्द। यह रेडियो का एक अन्य स्वरूप होता है जिसे आम बोलचाल में ट्रांजिस्टर कहते हैं। इसे यूं भी कह सकते हैं उस जमाने से लेकर इस जमाने तक का मोबाइल रेडियो। रेडियो का मतलब होता था प्रामाणिक खबरें और इन खबरों में ही समाज की धडक़न होती थी। यह भी सच है कि तब यह सरकारी मीडिया कहलाता था लेकिन रेडियो की खबरों को ही सच माना जाता था। बाकि बचे समय में मनोरंजन के विविध प्रोग्राम सुनने का एक बड़ा सशक्त और सस्ता माध्यम।
रेडियो जनसंचार का बहुप्रचलित श्रव्य माध्यम है। इसमें रेडियो तरंगों के माध्यम से ध्वनि का प्रसारण होता है। रेडियो ऐसा जनमाध्यम है जिसकी पहुंच विश्व में अन्य जनमाध्यमों की तुलना में सर्वाधिक है। देश में रेडियो (आकाशवाणी) की पहुंच तकरीबन 92 प्रतिशत भू-भाग के साथ 99.19 प्रतिशत लोगों तक है जो अन्य माध्यमों की तुलना में सर्वाधिक है। रेडियो के माध्यम से सूचनाओं के संप्रेषण की गति अत्यंत ही त्तीव्र होती है, जिसके कारण सूचनाओं और जानकारियों का शीघ्र प्रचार-प्रसार संभव है। वहीं अगर इसके आर्थिक पक्ष को देखा जाए तो अन्य माध्यमों की तुलना में ये अपेक्षाकृत सस्ता है। एक बार थोड़ी सी राशि निवेश कर लम्बे समय तक प्रसारित कार्यक्रमों को बिना किसी अतिरिक्त खर्च के आनंद से सुना जा सकता है। साथ ही रेडियो के संचालन के लिए किसी खास तकनीकी ज्ञान या किसी अतिरिक्त साधन की आवश्यकता नहीं होती है।
तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री डॉ. बी. वी केसकर ने आकाशवाणी पर फिल्मी संगीत के प्रसारण पर प्रतिबंध लगाकर शास्त्रीय संगीत के प्रोत्साहन का कार्य किया। उनके इस फैसले से चुनौती और बढ़ गई। इसी दौरान रेडियो सिलोन पर आधी सदी की आवाज कहे जाने वाले अमीन सयानी द्वारा प्रस्तुत कार्यक्रम ‘बिनाका गीतमाला’ भारतीयों में खूब लोकप्रिय हो गया। बढ़ती प्रतिस्पर्धा तथा घटती लोकप्रियता के बीच ‘रेडियो सिलोन’ से मुकाबला करने के लिए ही सन् 1957 में आकाशवाणी ने अपनी विविध भारती सेवा प्रारंभ की थी। विविध भारती के ‘हवा महल’ कार्यक्रम ने अपार लोकप्रियता दी।
रेडियो की दुनिया में स्पर्धा, प्रतिस्पर्धा चलती रही, आगे भी चलेगी लेकिन रेडियो के प्रभाव को जिन लोगों ने समझा, उसका बखूबी उपयोग भी किया। रेडियो के जन्म के साथ राजनीतिक दलों के लिए यह सबसे असरकारी माध्यम था। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर सरदार वल्लभभाई पटेल एवं तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी सहित अनन्य राजनेताओं ने अपनी बात पहुंचाने का सशक्त माध्यम रेडियो को चुना। एक परम्परा सी बन गई है कि आम चुनाव के दरम्यान राजनीतिक दलों को अपनी बात कहने के लिए रेडियो में समय आवंटित किया जाता है। निर्धारित समय में संबंधित राजनीतिक दल अपनी नीतियों और कार्यक्रमों के बारे में आम आदमी तक अपनी बात पहुंचाता है। राज्यों के चुनाव के समय भी इसी तरह समय आवंटित किया जाता रहा है। कई बार समय आवंटन को लेकर विवाद की स्थिति बन जाती है। राजनीतिक दल, सत्तासीन सरकार पर आरोप लगाते हैं कि उनके साथ समय को लेकर पक्षपात किया जा रहा है। यह इस बात का सूचक है कि सभी राजनीतिक दल रेडियो के प्रभाव को समझते हैं।
कई बार आपात स्थिति में भी सरकार रेडियो की सहायता लेती रही है। आम आदमी तक अपनी बात पहुंचाने के लिए वह विशेष प्रसारण के माध्यम से लोगों को इस बात की आश्वासन देती रही है कि कुछ कठोर फैसले समाज के हित में लिए गए हैं। कई बार प्राकृतिक आपदा के समय भी लोगों का साहस बनाये रखने के लिए तथा उन्हें दी जा रही सहायता का विवरण भी रेडियो के माध्यम से दिया जाता रहा है। रेडियो का चयन इसलिए भी किया जाता रहा है क्योंकि इसे संचालित करने के लिए कोई बड़े लाव-लश्कर की जरूरत नहीं होती है। बिजली के उपकरण के बजाय सेल से ही रेडियो का संचालन किया जा सकता है।
साल 80 का दौर गुजरता गया और हाईटेक मीडिया का जमाना आया। इसके साथ ही खामोशी से रेडियो की वापसी हुई एफएम के तौर पर लेकिन आकाशवाणी पहले की तरह मजबूती से खड़ा था। आकाशवाणी कायदे-कानून का रेडियो है, उसकी अपनी शालीन भाषा है और प्रामाणिकता उसके होने का आधार। इधर 80 से लेकर 2014 तक रेडियो ज्यादतर मनोरंजन का साधन बना रहा। 2014 में सत्ता परिवर्तन होते ही संचार के सबसे प्रभावी तंत्र रेडियो का उपयोग आरंभ कर रेडियो को संजीवनी देने का काम किया देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने। प्रत्येक माह रेडियो से ‘मन की बात’ कार्यक्रम का आरंभ किया। सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों और स्वयं की सोच को प्रधानमंत्री श्री मोदी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के माध्यम से देश की जनता को बताने की कोशिश की। खासतौर पर उनका फोकस रहा कि स्कूली बच्चों को जोड़ा जाए। रेडियो पर ‘मन की बात’ कार्यक्रम को प्रभावी बनाने के लिए देशभर से लोगों से सवाल मंगाये गए। उन सेक्टर को भी तलाशा गया जहां नवाचार हो रहा है। एक प्रक्रिया पूर्ण होने के बाद चयनित सवालों का प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जवाब दिया जिसमें उन्होंने सवाल करने वाले के नाम का उल्लेख किया। इसी तरह देश के विभिन्न हिस्सों में हो रहे नवाचार का उल्लेख ‘मन की बात’ कार्यक्रम में किया। यह अपने किस्म का अलग तरह का प्रयोग था। लोगों का जुड़ाव बढ़ता गया और रेडियो ने नया स्वरूप ग्रहण किया। इस कार्यक्रम से रेडियो की लोकप्रियता भी बढ़ने लगी। आम आदमी के लिए यह बड़ी बात थी कि देश के प्रधानमंत्री श्री मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम में उसके नाम का उल्लेख किया।
प्रधानमंत्री मोदी की इस पहल से संचार माध्यमों में ऊर्जा आयी और रेडियो की उपयोगिता को स्वीकार किया जाने लगा। यही नहीं, केवल मनोरंजन का साधन बन रहे रेडियो की सामाजिक उपयोगिता का पुराना वैभव लौट आया। प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ कार्यक्रम की तर्ज पर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने ‘दिल से’ कार्यक्रम का आरंभ किया। राज्य शासन की नीतियों, कार्यक्रमों और जनकल्याण के लिए किए जा रहे कार्यों की जानकारी स्वयं मुख्यमंत्री शिवराजसिंह ने अपने ‘दिल से’ कार्यक्रम के माध्यम से आम आदमी को देने की पहल की। लोगों से सवाल मंगाये गए और ‘दिल से’ कार्यक्रम के माध्यम से उनका जवाब मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने दिया। इसका प्रभाव भी दिखने लगा। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह मध्यप्रदेश के एक बड़े आदवासी समाज तक सहज रूप से पहुंच सकते थे और इसके लिए मध्यप्रदेश आदिमजाति कल्याण विभाग द्वारा मध्यप्रदेश में बोलियों पर आधारित आठ सामुदायिक रेडियो केन्द्र संचालित हैं, जहां से भी ‘दिल से’ कार्यक्रम का प्रसारण किया जा सकता था। इसकी कोशिश आने वाले दिनों में होना चाहिए क्योंकि सामुदायिक रेडियो की सार्थकता इसी में है कि समुदाय के लोगों के कल्याण के लिए किए जा रहे कार्यों की सूचना उन तक पहुंचे। बात तब और बड़ी हो जाती है, जब स्वयं मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान का रेडियो प्रोग्राम हो और वे स्वयं लोगों को जानकारी दे रहे हों। बहरहाल, रेडियो के प्रभाव का लाभ मध्यप्रदेश के लोगों को मिल रहा है। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के संवाद में सामान्य बिंदुओं को शामिल करने के लिए मध्यप्रदेश शासन द्वारा सुझाव आमंत्रित किया जाता है। इस कार्यक्रम के जरिए वे समाज के हर वर्ग के लोगों से अपनी बात करते है। सोशल साइटों के जरिए लोगों से अपनी पहुंच बनाने के बाद मुख्यमंत्री रेडियो के जरिए भी प्रदेश की जनता से सीधे जुड़ गए है। ट्विटर पर शिवराज सिंह चौहान के करीब 29 लाख फॉलोअर्स भी हैं।
रेडियो की वापसी और प्रधानमंत्री की पहल के बाद छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह ने ‘रमन के गोठ’ कार्यक्रम का आरंभ किया। मोदी और शिवराजसिंह से अलग प्रयोग मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह ने यह किया कि वे स्थानीय बोली में अपने रेडियो कार्यक्रम ‘रमन के गोठ’ लेकर आए। छत्तीसगढ़ में यह अलग तरह का प्रयोग था बल्कि ठेठ स्थानीय अंदाज में। एक तो रेडियो का प्रभाव और दूसरी स्थानीयता ने मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह के ‘रमन के गोठ’ कार्यक्रम को खासा लोकप्रिय बना दिया है। मुख्यमंत्री डॉ. रमनसिंह भी अपने ‘रमन के गोठ’ कार्यक्रम के माध्यम से शासन की नीतियों, कार्यक्रमों और आने वाले दिनों में जनकल्याण के कार्यक्रमों को लेकर रमनसिंह छत्तीसगढ़ की जनता से सीधे बात करते हैं।
इस तरह से रेडियो के प्रभाव का उपयोग आम आदमी से जुडऩे में किस तरह किया जा सकता है, इस बात को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रमाणित कर दिखाया। मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और डॉ. रमनसिंह ने इस प्रयोग को आगे बढ़ाकर शासन, सरकार और आम आदमी के बीच निकटता लाने का उत्कृष्ट प्रयास किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ को खास और आम आदमी सुनते हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि वो इस तरह के विषयों पर बात करते हैं, जो कहने-सुनने में छोटे लगे, लेकिन आम जन मानस की रोजमर्रा जिंदगी में बड़ी अहमियत रखते हैं। ‘मन की बात’ को शुरू करने से पहले एक विदेशी मीडिया हाउस से बात करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहते हैं कि ‘मैं उस अंतर को जानता हूं, जो रेडियो समाप्त कर सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति ने इसका बेहतरीन उपयोग किया। बहुत सारे लोगों ने मार्टिन लूथर किंग को सुना होगा। रेडियो पर बोलना मेरा सपना है। इसके जैसी बदलाव की शक्ति किसी और माध्यमम में नहीं है।’
सोशल मीडिया के दौर में सरकारी आकाशवाणी लगभग हाशिए पर है लेकिन इसकी पहुंच सुदूर गांवों तक है जहां आदिवासी, किसान, खेत मजदूर, गरीब, वंचित लोग रहते हैं। इस दौरान ‘मन की बात’ का कुल 18 भाषाओं और 33 बोलियों में प्रसारण किया गया। ‘मन की बात’ कार्यक्रम के अंग्रेजी और संस्कृत अनुवाद भी प्रसारित किए गए हैं। यह कार्यक्रम घरेलू और वैश्विक दोनों श्रोताओं के लिए उपलब्ध होता है। वैश्विक श्रोता इसे इंटरनेट और शॉर्टवेव ट्रांसमिशन के जरिए सुन पाते हैं। प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ कार्यक्रम से आकाशवाणी ने शुरू के दो साल में 10 करोड़ रुपए कमा लिए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘मन की बात’ कार्यक्रम की शुरुआत तीन अक्टूबर 2014 को हुई थी। विगत दिनों संसद में केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण राज्यमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ ने जानकारी दी कि ‘मन की बात’ कार्यक्रम के दौरान प्रसारित विज्ञापनों से ऑल इंडिया रेडियो (एआईआर) को 2015-16 में 4.78 करोड़ रुपए की आमदनी हुई। इसी तरह 2016-17 में 5.19 करोड़ रुपए की आय हुई।
बदलते समय में रेडियो का यह बदलता स्वरूप शुभ सूचक है। केन्द्र सरकार की नीतियों के अनुरूप वर्तमान समय में एफएम एवं सामुदायिक रेडियो केन्द्रों को समाचार प्रसारण की अनुमति नहीं है किन्तु आकाशवाणी के प्रसारित समाचार का अंश जरूर प्रसारित कर सकते हैं। संभव है कि आने वाले समय में संचार के सबसे प्रभावी माध्यम रेडियो के लिए सरकार और उदार हो और नई नीति बने ताकि सवा सौ करोड़ की आबादी वाला भारत मन की सुन सके, दिल से कह सके और अपनों से गोठ कर सके।
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