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सतही मीडिया कवरेज के बीच करनी होगी ऐसे रिपोर्टर की तारीफ, बोले पत्रकार सैय्यद हुसैन

आइये वेलेंटाइन-डे के बहाने मीडिया की भेड़चाल आपको समझाते...

समाचार4मीडिया ब्यूरो 5 years ago

सैय्यद हुसैन अख्तर
वरिष्ठ पत्रकार।।

आइये वेलेंटाइन-डे के बहाने मीडिया की भेड़चाल आपको समझाते हैं। बात सन 2000 की है, जब मैं लखनऊ विश्वविद्यालय में पत्रकारिता का छात्र था। हमारा एक ग्रुप था जो पता नहीं क्यों मुझ पर अतिरेक विश्वास करता था। इसी साल के फरवरी की छह या सात तारीख रही होगी। डिपार्टमेंट के बाहर हमारा ग्रुप गप्पबाजी में लगा था, अचानक मैंने ग्रुप मेंबर से पूछा, मीडिया में हाईलाईट होना है क्या?

मीडिया में हाईलाईट होना भला किसे बुरा लगता है, सबने एक स्वर में कहा हां, लेकिन कैसे? सबने एक स्वर में पूछा तो मैंने कहा कि चार-पांच दिन बाद वेलेंटाइन-डे है! चलो इसका विरोध करते हैं। अखबार में नाम आने और फ़ोटो छपने का सब पर ऐसा भूत चढ़ा कि अगले पल से ही पूरा ग्रुप इस विरोध की रूपरेखा तैयार करने में जुट गया। सबसे पहले तत्कालीन एचओडी डॉ. आरसी त्रिपाठी को अपनी मंशा से अवगत कराया, वह बल्लियों उछल पड़े  और कहा, ‘शाबाश बच्चो, मेरी जो भी मदद चाहिए बताओ?’ मदद-वदद तो कुछ चाहिए नहीं थी, लिहाज़ा बताते क्या? मेरे ग्रुप की एक छात्रा को कुछ नहीं सूझा तो उसने कहा, ‘सर बस आप 14 तारीख तक एक क्लास रूम दे दीजिए, जहां हम लोग विरोध प्रदर्शन की तैयारी करें और 14 को विरोध प्रदर्शन स्थल पर हमारे साथ मौजूद रहिएगा। आरसी त्रिपाठी सर सहर्ष तैयार हो गए।

हां, एक बात और यहां बताना भूल गया कि मैंने किसी बहुत बड़े मिशनरी प्रमुख की तरह यह हिदायत दे रखी थी कि खबरदार, कोई यह नहीं बताएगा कि हम लोग यह सब मीडिया में हाईलाईट होने के लिए कर रहे हैं। यह बात ग्रुप का टॉप सीक्रेट बन गई। देखते ही देखते 9 छात्र-छात्राओं का यह मिशन परवान चढ़ने लगा। हमारा ग्रुप बढ़कर सौ से दो सौ की तादाद पर पहुंच गया। कमिश्नर से परमीशन लेकर दो सौ छात्र-छात्राओं का हाथों में तख्तियां लिए यह जुलूस जब हज़रतगंज स्थित गांधी प्रतिमा पर पहुंचा तो हजारों की भीड़ इकट्ठा हो गई। जमकर भाषणबाज़ी हुई। अखबार वालों का तांता लग गया। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया उस ज़माने में बहुत उन्नत नहीं था। एक-दो चैनल थे और लोकल चैनलों का क्रेज़ हुआ करता था, सबने बाइट ली। अखबारी फोटोग्राफरों ने अपने ठेठ अंदाज़ में आपस के लोगों को ही धकियाते हुए सैकड़ों फ़ोटो खीचीं।

अखबार और लोकल चैनलों के जाते ही एक-एक कर एचओडी साहब समेत सभी शिक्षक व सहयोगी भी धीरे से खिसक लिए। अंत में हम लोगों का वही 9 सदस्यीय मिशनरी ग्रुप बचा, हम लोगों ने मुस्कुराकर विजय मुद्रा में एक-दूसरे को देखा और आंखों ही आंखों में कहा भी,मिशन फतह, कामयाब। बस एक ग़लती हो गई कि जब सब चले गए, तब हम लोगों ने गांधी प्रतिमा के बगल वाले पार्क में पार्टी सेलिब्रेट करते हुए पैटीज-समोसा उड़ा डाला। किसी सिरफिरे ने गुलाब-वुलाब भी आपस में दे डाला। बहरहाल, अगले दिन के अखबार का इंतज़ार करते रात नहीं कट रही थी, क्योंकि हमारा तो मकसद ही कुछ और था यानी मीडिया में हाईलाईट। अल्लाह अल्लाह करते सुबह हुई, भोर होते ही चारबाग भागा, एक तरफ से हिंदी उर्दू इंग्लिश छोटे बड़े मंझोले सब अखबार खरीद डाले। हर अखबार के फ्रंट पेज पर सचित्र हमारा ही जलवा था,विजय मुद्रा में भागे भागे डिपार्टमेंट पहुंचे। एचओडी के आने का इंतज़ार किया। 10 बजते ही त्रिपाठी साहब आये तो गुस्से से उबल रहे थे। हमने सोचा कि अखबारों के बंडल देखकर वह उछल पड़ेंगे, लेकिन यहां सब कुछ उल्टा नज़र आ रहा था। अचानक फुंफकारते हुए उन्होंने चुप्पी तोड़ी, ‘गधे हो तुम लोग, धरना-प्रदर्शन के बाद वहां रुकने की क्या ज़रूरत थी, अभी भी उनकी पूरी बात समझ में नहीं आई थी। उन्होंने दैनिक हिन्दुस्तान की खबर दिखाते हुए कहा, यह क्या है? मारे खुशी के फ्रंट पेज की जिस खबर को हम लोग कई बार देख चुके थे, उसमें छपे एक छोटे से बॉक्स पर नज़र नहीं जा रही थी, ‘वेलेंटाइन-डे के विरोधियों ने भी मनाया वेलेंटाइन-डे’।

बहरहाल, यह तो बानगी हुई खबर के फालोअप की, जिसके लिए हिन्दुस्तान के रिपोर्टर की तारीफ करनी पड़ेगी जो आज के उड़नछू रिपोर्टरों से अलग बाद तक हमें फॉलो करता रहा और सोलह-सत्रह अखबारों की भीड़ में वह इकलौता था, जो एक्सक्लूसिव बॉक्स लगाने में कामयाब रहा और मीडिया की सतही रिपोर्टिंग की मिसाल यह कि घंटों रिपोर्टरों ने हमसे बात की, लेकिन वे अंदाज़ा न लगा सके कि हमारा मकसद वेलेंटाइन का विरोध नहीं, बल्कि अपना नाम और चेहरा चमकाना है। हां, तारीफ उन संगठनों की ज़रूर करनी पड़ेगी, जिन्होंने वर्ष 2000 में हमारे विरोध से आइडिया लिया और 2001 के बाद से इस दिन हर वर्ष मीडिया में जगह पाते रहे।


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