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मीडिया को गालियां बकना किस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता श्रेणी में आता है, हिरानी साहब?
मैं कम फिल्में देखता हूं। बीते दो दशक में बमुश्किल पांच-छह फिल्म देखी हैं...
समाचार4मीडिया ब्यूरो 6 years ago
ब्रजेंद्र पटेल
वरिष्ठ पत्रकार ।।
मैं कम फिल्में देखता हूं। बीते दो दशक में बमुश्किल पांच-छह फिल्म देखी हैं। 'संजू' फिल्म के बारे में सुन रहा था। सोचा था कि पुत्र हार्दिक को भी दिखाउंगा। रविवार को देखने का प्लान बनाया भी था। पर कल फिल्म देख चुके एक व्यक्ति ने पटकथा और उसके अश्लील डायलॉग सुनाए, तो मन उचट गया। बेटे को फिल्म दिखाने का इरादा त्याग दिया। अकेले देखने गया। फिल्म की पटकथा और दृश्यांकन वाकई हैरान करने वाले हैं। सच्चाई से कोसों दूर....।
संजय दत्त के बुरे आचरण पर सहानुभूति का ऐसा लेप चढ़ाया गया है गोया नशाखोर, बदचलन, देशद्रोही और सजायाफ्ता अपराधी का मीडिया के गैरजिम्मेदाराना रवैये ने करियर खराब कर दिया हो। सवाल उठता है कि क्या संजय इतना नासमझ था कि झांसे में आकर सालों ड्रग्स लेता रहेगा और उसे ड्रग्स देने वाला खुद ग्लूकोज का पाउडर पीता रहेगा।
फिल्म में संजय दत्त की असल जीवनी तक का कट पेस्ट है, जो कि कई सवाल खड़े करती है, मसलन...
1. फिल्म में संजय दत्त की पहली वैध शादी, पत्नी और उस बेटी को नहीं दिखाया गया है जो जिंदा है। एक बीमार पत्नी और बेटी को अकेला अमेरिका में मरता छोड़कर भारत भाग आया इंसान कैसे भला इंसान हो सकता है, हिरानी साहब बताएंगे क्या?
2. संजय दत्त के फिल्मी करियर की शुरुआत फिल्म रॉकी से होना दर्शाया गया, जबकि इससे पहले उसकी विधाता फिल्म बतौर अभिनेता प्रदर्शित हो चुकी थी, जिसकी शूटिंग आगरा के मुगल होटल में हुई थी।
3. संजय दत्त ने AK56 किससे ली? यह खतरनाक असलाह खेतों में तमंचा या कट्टा बनाने वाले नहीं बनाते हैं। संजू बाबा, सब जानते हैं यह असलाह सेना के अलावा सिर्फ दुनिया के खूंखार इस्लामिक आतंकवादियों के पास होते हैं। दीपावली पर बिकने वाला तमंचा नहीं है AK56।
4. यदि कोई व्यक्ति किसी आतंकवादी से एक बार मुलाकात भर कर ले तो उसे देशद्रोह के आरोप में जिंदगीभर की सलाखों के पीछे खड़ा रहना पड़ता है, जबकि संजय दत्त के मुंबई बम धमाके आरोपी आतंकवादियों से प्रगाढ़ संबंध रहे हैं। क्या आतंकवादियों से बेहद करीबी ताल्लुक रखने वाले को इसकी सजा नहीं रखनी चाहिए। यदि नहीं तो आतंकवादियों से संबंध रखने पर किसी भी व्यक्ति को कानून की गिरफ्त में न फंसाया जाए। देश में कानून सबके लिए समान होना चाहिए।
5. जिन हथियारों के लाइसेंस होते हैं यदि कोई व्यक्ति ऐसे हथियार बिना लाइसेंस के रखता है तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 25 आर्म्स एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज होती है। पर इस श्रेणी में वे खतरनाक हथियार कतई नहीं आते हैं जिनके लाइसेंस ही नहीं बनते हैं। अवैध तमंचे और AK56 में बड़ा फर्क होता है, मेरे भाई। सवाल उठता है कि यदि संजय दत्त के घर में एंटी एअरक्राफ्ट गन, राकेट लॉन्चर या मिसाइल मिलती तो और पुलिस बरामद करती तो क्या यह भी 25 आर्म्स एक्ट के तहत अवैध असलाह रखने पर मामूली जुर्म की श्रेणी में आंका जाता। फिल्म निर्माता ऐसा ही कहते हैं।
फिल्म ऐसे चरित्र का चित्रण है जिसका पूरा जीवन घिनौना, बदचलनी और अपराध से सराबोर है पर पटकथा लेखक उसे आदर्श बताने पर उतारू हैं। यह फिल्मी दुनिया का वह कुरुप चेहरा है जो समाज को जबरन बुरा देखने, सुनने और बुरा बोलने की गंदगी परोस रहा है। फिल्म निर्माता की नजर में हो सकता है कि आतंकवादियों का सहयोगी और न्यायालय से सजायाफ्ता अपराधी की कलंक कथा आदर्श हो पर मैं मानना हूं कि ऐसा दिखाया जाना देश की भावी पीढ़ी को भ्रमित करना है। देश को आभास दिलाना खिलजी और मुगलों का गलीज गंदगी सामाजिक परिदृश्य है।
फिल्म में संजय दत्त खुद कहता है कि उसने सवा तीन सौ से ज्यादा लड़कियों को अपनी हवस का शिकार बनाया है। वह अपने ही हमदर्द की महिला मित्र के साथ हमबिस्तर होता है और फिर दूसरे दिन उस महिला के चरित्र पर सवाल खड़ा करता है।
फिल्म में बेवजह अश्लीलता परोसी गई है। पुरुष के अंडकोश को कई बार ईटा कहा गया है। सेक्स को घपाघप...। अश्लीलता ऐसे परोसी गई है जैसे सामान्य बाते हों और भारतीय संस्कृति और सभ्यता में सहज बात हो।
मीडिया के काम पर प्रश्न उठाना गलत नहीं है। पर गाने में मीडिया को गालियां बकना किस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता श्रेणी में आता है, हिरानी साहब? माना मीडिया में कई बार खबरें अतिरंजित हो जाती हैं। पर मतबल ये तो कतई नहीं की पूरा मीडिया जगत गलत है।
जिस अभियक्ति की स्वतंत्रता के आधार पर सवाल उठा रहे हो, यह वही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है कि जिसे आधार बनाकर सिल्वर स्क्रीन पर मीडिया को अश्लील गालियां देने का गाना दिखा रहे हो।
कोई व्यक्ति टाडा में गिरफ्तार हो तो क्या मीडिया कहने लग जाए कि टाडा आरोपी व्यक्ति आतंकवादी नहीं देशभक्त है? संजय दत्त AK56 हथियार रखने का जुल्म खुद कबूलता है। फिल्म देखकर लगता है कि अब कानून की नजर में अपराध करने वाला व्यक्ति अपने अपराधी होने की परिभाषा खुद तय करता है कि वह किस श्रेणी का अपराधी है। कमाल है भाई। जनता को इतना भी उल्लू न समझो।
फिल्म में संजय दत्त को एक हिंदू माफिया के धमकाने का दृश्य तो है पर उसके दाउद की रंगीन रातों में शामिल होने के दृश्य नहीं दिखाए गए। संजय दत्त खुद को भले ही कितना पाक साफ कहें। एक नहीं सौ फिल्म बना लें। पर भारत के कानून में वह सजायाफ्ता कहलाएगा। जीवनभर। ऐसा व्यक्ति न तो कभी ग्राम पंचायत के सदस्य का चुनाव लड़ सकता है और न ही राष्ट्रपति का। उसकी किसी भी शासकीय पद पर नियुक्ति नहीं हो सकती है।
देश के दुश्मन आतंकवादियों से जो दोस्ती रखे, मेरी नजर में वह व्यक्ति देशभक्त कतई नहीं हो सकता है। कभी नहीं।
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