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‘ख़बरों की सुर्ख़ियों में वो पहचान अलग है, इंसान बहुत देखे वो इंसान अलग है’
नागर सर...। समझ नहीं आ रहा कहां से शुरू करूं और कहां पर खत्म...
समाचार4मीडिया ब्यूरो 6 years ago
तृप्ति शुक्ला
युवा पत्रकार ।।
ख़बरों की सुर्ख़ियों में, वो पहचान अलग है
इंसान बहुत देखे, वो इंसान अलग है...
नागर सर...। समझ नहीं आ रहा कहां से शुरू करूं और कहां पर खत्म। ख़ैर, सबसे पहले आपके काम की बात (जो आप चाहते हैं कि सब हिंदीभाषियों के काम की बात बन जाए) 'भाषा' से जुड़ी अग्रिम माफ़ी। इस लेख में कोई गलती रह जाए तो माफ़ करिएगा लेकिन आपके सुधार का इंतज़ार फिर भी रहेगा। अपने केबिन से निकलकर आपने पहली बार मुझे भाषागत गलती पर ही डांटा था और वह भी पूरी टीम के सामने। मैं तब उस टीम में हफ़्ते भर पहले ही शामिल हुई थी। पता नहीं आपको याद होगा या नहीं, आपने मुझे Fixer की गलत स्पेलिंग पर डांटा था और यह गलत स्पेलिंग फोटोगैलरी की कॉपी में नहीं, बल्कि SEO टाइटल में थी। इसे कहते हैं पारखी नज़र आपने डांटते हुए पूछा कि यह गैलरी किसने बनाई है और मेरा नाम पता चलते ही फ़ौरन भड़कते हुए बोले, तृप्ति इतनी ख़राब इंग्लिश तो नहीं है तुम्हारी!
आज आपको बता रही हूं कि मुझे वह डांट अच्छी लगी थी क्योंकि उस डांट में भी एक भरोसा था कि तुमसे गलती से यह गलती हुई होगी, वरना तुमको इतना तो पता ही होगा। उसके बाद तो आपसे डांट खाने और तारीफ़ें मिलने का जो सिलसिला शुरू हुआ उसमें अब तक अनगिनत कड़ियां जुड़ चुकी हैं और उम्मीद है आगे भी जुड़ती रहेंगी। इन सब कड़ियों का ज़िक्र करने बैठूं तो अपनी पहली किताब ही लिख लूं लेकिन फ़िलहाल बस एक याद और शेयर करूंगी जिसने आपके व्यक्तित्व के बहुत कोमल पहलू से मेरा परिचय कराया था।
याद है आपको जब मेरी एक कविता का ज़िक्र करते-करते आप भावुक हो गए थे और फिर पास रखी बोतल से पानी पिया था? उस वक्त आप भविष्य की अनिश्चितता के बारे में सोचकर व्यथित हो गए थे। आपके शब्द थे कि तुम्हारी यह कविता पढ़कर लगा कि जैसे यह मेरी कहानी है या शायद हम सबकी ही कहानी है। मैं भी चाहता हूं कि कभी तो ऐसा दिन आएगा जब रिटायरमेंट के बाद मैं नीला के साथ आराम से बैठकर कोई शाम गुज़ारूंगा। वह मटर छील रही होगी और मैं उसके कटोरे से मटर उठा-उठाकर खा रहा होऊंगा और साथ में चाय (या शायद कॉफी) पी रहा होऊंगा। पता नहीं ऐसा दिन आएगा भी या नहीं...। और बस, इतना कहते-कहते आपकी आंखें भर आई थीं।
उम्मीद करती हूं कि अब आप ऐसी शामें गुज़ार रहे होंगे लेकिन ध्यान रखिएगा कि मटर अगर ज़्यादा उठा लीं तो मैम डांट देंगी। इसी के साथ बस दो लाइनें और:
बस चंद ही कदम हैं, बस चंद ही पहर हैं
ये ज़िंदगी का आंचल, कभी शाम है, सहर है
गुज़रो कभी इधर तो आवाज़ देते जाना
हम आज तो यहां हैं, कल क्या पता किधर हैं
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