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वरिष्ठ पत्रकार निर्मलेंदु का सवाल- क्या सचमुच मोहम्मद रफी रोते ज्यादा थे और गाते कम थे?

निर्मलेंदु कार्यकारी संपादक, राष्ट्रीय उजाला क्या मोहम्मद रफी गायक नहीं थे? फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ की मुश्किलें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। दरअसल, सर्जिकल स्ट्राइक के बाद फिल्म में

समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago

निर्मलेंदु

कार्यकारी संपादक, राष्ट्रीय उजाला

क्या मोहम्मद रफी गायक नहीं थे?

फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ की मुश्किलें खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही हैं। दरअसल, सर्जिकल स्ट्राइक के बाद फिल्म में पाकिस्तानी कलाकारों के होने पर विवाद खड़ा हो गया था। बाद में किसी तरह फिल्म रिलीज तो हो गई, लेकिन रिलीज के बाद फिल्म के एक डायलॉग को लेकर निर्देशक करण जौहर मुश्किल में घिरते दिख रहे हैं। महान गायक मोहम्मद रफी के बेटे शाहिद रफी ने फिल्म ‘ऐ दिल है मुश्किल’ के एक डायलॉग पर आपत्ति जताई है। आश्चर्य की बात तो यह है कि फिल्म में दिग्गज गायक मोहम्मद रफी की काबिलियत पर सवाल उठाए गए हैं।

इस पर खुदा गवाह फेम सिंगर मोहम्मद अजीज ने करण जौहर को फेसबुक पर खरी-खरी सुनाई है, ‘हम करण को समझदार फिल्ममेकर समझते थे, लेकिन उन्हें संगीत की समझ ही नहीं है।’

दरअसल, ऐ दिल है मुश्किल में एक डायलॉग है, जिसमें कहा गया है कि मोहम्मद रफी गाता कम था और रोता ज्यादा था। इस पर मोहम्मद अजीज काफी नाराज हो गए हैं। उन्होंने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए एक वीडियो फेसबुक पर अपलोड किया है। इसमें उन्होंने कहा, ‘जिस बेवकूफ ने भी लिखा है यह डायलॉग और हमारे करण जौहर साहब, जिन्हें मैं बहुत समझदार और काबिल समझता था, लेकिन बड़ा अफसोस हुआ यह जानकर कि उन्होंने इस डायलॉग को पास किया? शर्म की बात तो यह है कि ये लोग उस अजीम हस्ती के बारे में कह रहे हैं, जिन्हें आप प्लेबैक सिंगिंग का फाउंडर कह सकते हैं। मेल सिंगर्स में उन्होंने क्या नहीं किया, क्या नहीं गाया? फिर चाहे उनका गाना 'हम काले हैं तो क्या हुआ… हो या फिर चाहे कोई मुझे जंगली कहे... हो, या फिर ये चांद सा रोशन चेहरा..., ये गाने क्या उन्होंने रोते-रोते गाए थे? अगर कोई बात कही जा रही है, तो उसके पीछे कोई वजह तो होनी चाहिए।

सच तो यही है कि रफी साहब ने हर मूड के और कई भाषाओं में गाने गाए हैं। 26 हजार से ज्यादा गाने उन्होंने गाए हैं। उनके किसी भी गाने पर आप उंगली नहीं उठा सकते। इनके बारे में लता मंगेश्कर एक बार कहा था कि उन्हें गर्व है कि रफी जी के साथ सबसे ज्यादा गाने उन्होंने गाए। आशा भोसले, किशोर कुमार और मन्ना डे जैसे बेहतरीन सिंगर रफी साहब की तारीफ करते हुए नहीं थकते थे। दरअसल, जब मैंने फिल्म देखी, तो मुझे न केवल बहुत दुख हुआ, बल्कि हैरानी हुई कि करण जौहर जैसे सुलझे हुए व्यक्ति ऐसी ओछी सोच कैसे रख सकते हैं। क्या उनके विचार खत्म हो गये?

आप इतने महान सिंगर के बारे में ऐसी बात कर रहे हैं। पूरी दुनिया में उनके चाहने वाले हैं। लोग उनकी पूजा करते हैं। लोगों के घरों में उनके मंदिर हैं। कितने ही सिंगर ने उनको देखकर गाना सीखा। आप रफी साहब के बारे में ऐसी बातें कर रहे हो। मतलब यह है कि उन्हें संगीत की समझ ही नहीं है। आज तो पब्लिसिटी के दम पर गाने हिट हो जाते हैं। करण जी, आप जिन रियलिटी शोज में जज बनकर जाते हैं, उनमें भी पुराने सिंगर्स के ही गाने ज्यादा सुनाई देते हैं। जो नई पौध तैयार हो रही है, वे सब के सब रफी के गानों से ही इंस्पायर हैं। इसलिए संगीत की समझ पहले पैदा करो फिर किसी महान सिंगर पर सवाल उठाना। मेरा एक ही सवाल है कि क्या सचमुच वह रोते ज्यादा थे और गाते कम थे?

आश्चर्य की बात तो यह है कि इस इंडस्ट्री में रफी साहेब के बारे में कोई भी बुरा नहीं बोलता है। यह उनका अपमान है। यह बेवकूफी भरा है। मोहम्मद अजीज ने सही कहा है कि जिसने भी ये डायलॉग लिखा है वो बेवकूफ है।

हम सब जानते हैं कि दिलीप कुमार से लेकर शम्मी कपूर, राजेंद्र कुमार, जॉय मुखर्जी, विश्वजीत के लिए उन्होंने गाने गाए हैं। प्यार भरे गीत से लेकर कौव्वाली तक हर तरह के गीत उन्होंने गाए। जब वह मधुबन में राधिका गाते हैं, तो सितार की धुन पूरे वातावरण में तैरने लगती है। आवाज में इतनी कशिश कि मुंह से निकल जाता है वाह रफी वाह। जब बिना म्यूजिक के वह गाते हैं लाल किला का ये गाना उसकी बानगा है- न किसी की आंख का नूर हूं। और जब वह गाते हैं -- बहारों फूल बरसाओ मेरा महबूब आया है। और जब वह गाते हैं -- तुमने मुझे देखा, होकर मेहरबां। क्या इन गानों में वे रोते हुए दिखाई दिए। चौदहवीं का चांद हो में भी उनकी आवाज में जो प्यार और तरन्नुम है, वह तो कहीं भी नहीं मिलेगी। सोनू निगम आज उन्हीं की देन है। मैं भी हैरान हूं कि करण जौहर ने इस डायलॉग को फिल्म में कैसे शामिल किया। मुझे लगता है कि करण जौहर को यह अहसास ही नहीं है कि उन्होंने किस तरह की गलती की। एक व्यक्ति, जिन्हें दुनिया पूजती है, उनका अपमान कर दिया। अनजाने में या जानकर, अपमान तो अपमान ही होता है। अब यदि यह कहें कि यह रफी साहब का अपमान है, तो शायद गलत नहीं होगा।

स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि हमें ऐसी शिक्षा चाहिए, जिससे चरित्र का निर्माण हो, मन की शक्ति बढ़े, बुद्धि का विकास हो और मनुष्य अपने पैर पर खड़ा हो सके। क्या यही शिक्षा हमारे फिल्ममेकर आज की पीढ़ी को दे रहे हैं। हम सब न केवल जानते हैं, बल्कि मानते भी हैं कि बच्चों पर निवेश करने की सबसे अच्छी चीज है अपना समय, अच्छे विचार और अच्छे संस्कार। लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि एक फिल्ममेकर अपनी फिल्म के माध्यम से आज की पीढ़ी को क्या सीख दे रहे हैं? केवल कॉफी विद करण से फेमस होने से नहीं होता। संघर्ष करके करण जौहर आगे नहीं बढ़े, बल्कि सच तो यही है कि विरासत में मिले फेम को कैश कर रहे हैं। संघर्ष करते, तो पता चलता कितने धान में कितने चावल होते हैं। फिल्म की समझ तो उन्हें होगी, क्योंकि यह सम्पत्ति उन्हें विरासत में मिली है, संस्कार की समझ करण को नहीं है। मान अपमान का बोध नहीं है। वह नहीं समझ सकते कि उन्होंने क्या किया। हम फिल्म इंडस्ट्री को विश्वविद्यालय भी कह सकते हैं। यहां महापुरुषों के निर्माण के कारखाने हैं और अध्यापक हैं उन्हें बनाने वाले कारीगर। एक तरह से कहें, तो करण जौहर इस विश्वविद्यालय के अध्यापक हैं, लेकिन वे क्या सीखा पढ़ा रहे हैं? अनपढ़ नहीं हैं करण जौहर? कहते हैं कि प्रशंसा वह हथियार है, जिससे शत्रु को भी मित्र बनाया जा सकता है। हम जितना जानते हैं, रफी के बारे में, उनका कभी कोई शत्रु नहीं रहा, तो फिर अचानक यह शत्रुता कैसी?

याद रखें, करण जौहर जी, केवल प्रेम ही वास्तविकता है, यह महज एक भावना नहीं है, यह एक परम सत्य है, जो सृजन के हृदय में वास करता है। यह भी याद रखें कि बड़प्पन अमीरी में नहीं, ईमानदारी और सज्जनता में सन्निहित है। अहंकार में नहीं।

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