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अंग्रेज भारत लाए थे समलैंगिकता की बीमारी, बोले वरिष्ठ पत्रकार डॉ. वैदिक

समलैंगिकता को लेकर हमारा सर्वोच्च न्यायालय और सरकार, दोनों ही...

समाचार4मीडिया ब्यूरो 6 years ago

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

वरिष्ठ पत्रकार ।।

समलैंगिकता पर समय की बर्बादी

समलैंगिकता को लेकर हमारा सर्वोच्च न्यायालय और सरकारदोनों ही अपना समय बर्बाद कर रहे हैं। पिछले लगभग 10 साल से ये दोनों ही इस मुद्दे पर अपनी दुम दबाए हुए हैं। दोनों में से कोई भी इस मुद्दे पर अपनी दो-टूक राय जाहिर नहीं करना चाहता।

समलैंगिकता मुद्दा बनी थीअंग्रेज के लिए। क्योंकि 1857 के स्वाधीनता संग्राम ने लंदन के छक्के छुड़ा दिए थे। अंग्रेज अफसर पैसे और हुकूमत के लालच में भारत तो आ जाते थे लेकिन डर के मारे अपने बीवी-बच्चों को वहीं छोड़ आते थे। ऐसी स्थिति में अपनी वासना को वे अपने मातहत पुरुष कर्मचारियों के माध्यम से शांत करना ज्यादा सुरक्षित समझते थे। स्त्रियों के साथ सहवास तो संतानोत्पत्ति के कारण पकड़ा जा सकता था लेकिन समलैंगिकता को प्रमाणित करना लगभग असंभव था। उसी का इलाज किया लॉर्ड बेबिंगटन मैकाले ने।

मैकाले की फौज और सरकारी मशीनरी को इस बीमारी से बचाने के लिए 1861 में ‘इंडियन पीनल कोड’ की धारा 377 का जन्म हुआ। यह धारा अभी तक भारत के गले में अटकी हुई है। यह धारा रहे या न रहेइससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता। स्वेच्छा और सहमति से दो अविवाहित पुरुष या दो स्त्रियां या दो स्त्री-पुरुष आपस में क्या संबंध रखते हैंइससे किसी तीसरे को क्या मतलबयदि वे विवाहित होते हुए विवाहेतर संबंध रखेंगे तो वह कानूनन अपराध है। कानून का दखल तो तभी होगा जबकि पुलिस को पता चलेगा। जो स्वेच्छा से समलैंगिक संबंध करेंगेवे पुलिस में क्यों जाएंगे?

पिछले डेढ़ सौ साल मेंखास तौर से 70 साल में धारा 377 के कितने मामले सामने आए हैंइसमें शक नहीं कि समलैंगिक संबंध अप्राकृतिक हैं और सृष्टि-क्रम के विरुद्ध है। कोई भी समाज इसे प्रोत्साहित क्यों करना चाहेगा लेकिन इसे अपराध मानकर आजीवन कारावास दिया जाएयह तो अक्ल का दीवाला ही है। जीवन एक बहुत उलझी हुई पहेली है। उसकी हर समस्या का समाधान कानून से नहीं हो सकता। समलैंगिक संबंधों को शिक्षा और संस्कार द्वारा हतोत्साहित करना बेहतर है। इसीलिए इंडियन पीनल कोड की धारा 377 को रद्द किया जाना चाहिए और इस मुद्दे पर देश का समय फिजूल बर्बाद नहीं किया जाना चाहिए।



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