होम / विचार मंच / आज पीएम मोदी के भाषण से पहले पढ़ें नोटबंदी से उपजे ये सवाल, फिर भाषण में ढूंढिए जवाब...

आज पीएम मोदी के भाषण से पहले पढ़ें नोटबंदी से उपजे ये सवाल, फिर भाषण में ढूंढिए जवाब...

अंशुमन तिवारी वरिष्ठ पत्रकार न होती नोटबंदी तो... डिमॉनेटाइजेशन में क्‍या ऐसा है जो हमें इसकी मंशा पर नहीं बल्कि इसे नतीजों को लेकर बहुत अााश्‍वस्‍त नहीं कर

समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago

अंशुमन तिवारी

वरिष्ठ पत्रकार

न होती नोटबंदी तो...

डिमॉनेटाइजेशन में क्‍या ऐसा है जो हमें इसकी मंशा पर नहीं बल्कि इसे नतीजों को लेकर बहुत अााश्‍वस्‍त नहीं करता...

सरकारी नीतियों का मूल्यांकन मंशा से नहीं बल्कि ठोस नतीजों पर होता है. इसलिए जब नीतियां उलझती हैं तो राजनेता अमूर्त उम्मीदों की लंबी रस्सी थमा देते हैं. नोटबंदी को लेकर उम्मीदों का दौर खत्म हो रहा है, अब बारी पहले आधिकारिक नतीजों की है, जिनकी तरफ बढ़ता चार बड़े सवालों से मुकाबिल है।

एकः कितना काला धन नकदी में था? नोटबंदी से पहले तक आयकर छापों में औसतन पांच फीसदी अघोषित धन नकद (काले धन पर श्वेत पत्र 2012) के तौर पर मिला है. रिजर्व बैंक के पास लगभग उतनी नकदी पहुंच गई है जितनी बाजार में थी. कालिख वालों को बच निकलने का एक और मौका क्यों मिल रहा है?

दोः काले धन के खिलाफ निर्णायक लड़ाई जरूरी है लेकिन क्या नोटबंदी से इस पर लगाम लगी है? लगता है कि काला धन नए गुलाबी नोटों में बदल गया है. बैंक भ्रष्ट साबित हुए हैं और अब इंस्पेक्टर राज आने वाला है.

तीनः रोजगार को गहरी चोट पहुंची है, फायदे होंगे भी कि नहीं ? पता नहीं कष्ट कितना लंबा होगा? पैसा निकालने से पाबंदियां कब हटेंगी?

चारः अगर इनकम टैक्स के छापे ही काला धन का इलाज थे तो पूरे देश को सजा देने की क्या जरूरत थी?

इन सवालों की रोशनी में नोटबंदी को लेकर चार तरह के निष्कर्ष हमारे सामने हैः

पहलाः नोटबंदी असफल हो चुकी है क्योंकि पूरे अभियान में दर्जनों छेद थे. दूसराः नोटबंदी इतनी कामयाब नहीं हुई कि त्याग व बलिदान बेकार जाते महसूस न होते. तीनः इसकी सफलता इसके बाद उठाए जाने वाले कदमों से तय होगी. चारः काले धन के खिलाफ ऐसा कुछ क्या हो सकता था कि इस दर्द से गुजरना ही न पड़ता.

दरअसल, नोटबंदी के पूरे अभियान को गौर से देखने पर कुछ तथ्य सामने आते हैं, जिनकी नामौजूदगी में पूरी कवायद पटरी से उतर गई. अगर कुछ फैसले पहले ही हो गए होते तो क्‍या पता कि नोटबंदी का दर्द देने की जरूरत ही नहीं पड़ती. दिलचस्प यह भी है कि नोटबंदी को निर्णायक नतीजे तक पहुंचाने के लिए इन्हीं फैसलों को लागू किये बिना बात नहीं बनेगी।

क्या नोटबंदी का दर्द टल सकता था और कैसे?

1. कितना नकद लेन-देन और कितनी नकदी—नोटबंदी शुरू होते ही इनकम टैक्स अफसरों को पता चल गया था कि ज्यादातर काला धन कॉर्पोरेट, सरकारी खजाने, बिजनेस, राजनैतिक दल, वित्तीय कंपनियों, बैंक और धार्मिक संस्थाओं व ट्रस्ट का हिस्सा बनकर सफेद होने जा रहा है. नकदी रखने की कोई सीमा नहीं है. इनकम टैक्स नियमों के तहत व्यक्तिगत करदाताओं को नकद जमा (सोने की खरीद भी) को बताने की शर्त नहीं है जब तक कि आयकर विभाग अघोषित संपत्ति की जांच न करे. कारोबारी नकदी (कैश इन हैंड) को लेकर तो नियम ही नहीं है.

काले धन पर एसआइटी ने आयकर कानून में संशोधन के जरिए नकद लेन-देन के लिए तीन लाख रुपए और कारोबार में 15 लाख रुपए तक नकद की सीमा तय करने की सलाह दी थी, जिसे लागू किए बिना बात नहीं बनेगी.

2. कौन खरीद रहा है सोना और जमीन—सोने-जेवरात की बड़े पैमाने पर खरीद बगैर पैन नंबर या पहचान के होती है. इस कारोबार में ग्राहक की पहचान (केवाइसी) निर्धारित करना जरूरी है. नोटबंदी के बाद बड़े पैमाने पर सोने की खरीद हुई. ठीक इसी तरह अगर बेनामी संपत्ति को रोकने का कानून और पहचान रजिस्टर करने का नियम लागू होता तो नोटबंदी के दौरान खासकर कृषि भूमि में बड़े निवेश न होते. नोटबंदी के बाद सबसे बड़ी उम्मीद मकान-जमीन सस्ते होने की है. सर्किल रेट (सरकारी दर) और बाजार मूल्य के बीच अंतर यहां काले धन की वजह है. सर्किल रेट घटाकर इसे रोका जा सकता है जो नोटबंदी के पहले होना चाहिए था. यह काम बाद में भी हो सकेगा, इस पर शक है क्योंकि राज्य सरकारें मुश्किल से तैयार होंगी. नतीजतन नई नकदी वापस जमीन की खरीद में लग जाएगी.

3. दर्जनों कंपनियां-दसियों खाते—काले धन की धुलाई के कानूनी तरीके, गैर-कानूनी तरीकों से कई गुना ज्यादा हैं. नोटबंदी से पहले बैंकों- कंपनियों में अकाउंटिंग रिफॉर्म (फोरेंसिक अकाउंटिंग) होने चाहिए थे ताकि दर्जनों कंपनियां और विदेश में ट्रस्ट बनाकर या राउंड ट्रिपिंग, मल्टीपल अकाउंट, घाटा दिखाने, खर्च दिखाने, कैपिटल बढ़ाकर नकदी की धुलाई न हो पाती. जीएसटी लागू करने के बाद अगर नोटबंदी आती तो शायद कामयाबी ज्यादा होती.

4. सियासत की कालिख —राजनैतिक दलों के लिए इनकम टैक्स कानून (धारा 13 ए) के तहत छूट व गोपनीयता बरकरार रखकर सरकार ने पूरे अभियान की साख को पलीता लगा लिया. राजनैतिक दलों के लिए 20,000 रुपए से कम की राशि को सार्वजनिक न करने की छूट है. ज्यादातर काला चंदा इसी छेद से आता है. 2005 से 2013 के बीच बीजेपी और कांग्रेस सहित पांच प्रमुख दलों के कुल 5,000 करोड़ रुपए के चंदे का 73 फीसदी हिस्सा अज्ञात स्रोतों से आया. सरकार अगर काले धन वालों को राहत देने के लिए नोटबंदी के बीच में ही कानून बदल सकती थी तो सियासत के लिए कानून क्यों नहीं बदला जा सकता?

सरकारों की मंशा कभी खराब नहीं होती. युद्ध भी शांति के इरादे के साथ लड़े जाते हैं. सरकारी नीतियों की सफलता उनके नतीजों से तय होती है. नोटबंदी के दो माह पूरे होने के बाद 31 दिसंबर को प्रधानमंत्री मोदी (यदि) देश से बात करेंगे तो उनके आह्वान पर ''तपस्या" कर चुके लोग अब नोटबंदी के पीछे की मंशा नहीं बल्कि नतीजों पर जवाब की अपेक्षा करेंगे.

सरकार में सबको मालूम है कि नकदी, कॉर्पोरेट अकाउंटिंग, अचल संपत्ति और राजनैतिक चंदे के नियम बदल कर ही नतीजे सामने आ सकते हैं. प्रधानमंत्री को अब यह साबित करना होगा कि नोटबंदी से उन ''खास" लोगों की जिंदगी पर क्या असर पड़ा जिन्हें सजा देने के लिए आम लोगों को गहरी यंत्रणा से गुजरना पड़ रहा है.

साभार: अर्थात 

समाचार4मीडिया देश के प्रतिष्ठित और नं.1 मीडियापोर्टल exchange4media.com की हिंदी वेबसाइट है। समाचार4मीडिया.कॉम में हम आपकी राय और सुझावों की कद्र करते हैं। आप अपनी राय, सुझाव और ख़बरें हमें mail2s4m@gmail.com पर भेज सकते हैं या 01204007700 पर संपर्क कर सकते हैं। आप हमें हमारे फेसबुक पेज पर भी फॉलो कर सकते हैं।


टैग्स
सम्बंधित खबरें

‘भारत की निडर आवाज थे सरदार वल्लभभाई पटेल’

सरदार वल्लभभाई पटेल का जीवन ऐसी विजयों से भरा था कि दशकों बाद भी वह हमें आश्चर्यचकित करता है। उनकी जीवन कहानी दुनिया के अब तक के सबसे महान नेताओं में से एक का प्रेरक अध्ययन है।

4 hours ago

भारत और चीन की सहमति से दुनिया सीख ले सकती है: रजत शर्मा

सबसे पहले दोनों सेनाओं ने डेपसांग और डेमचोक में अपने एक-एक टेंट हटाए, LAC पर जो अस्थायी ढांचे बनाए गए थे, उन्हें तोड़ा गया। भारत और चीन के सैनिक LAC से पीछे हटने शुरू हो गए।

1 day ago

दीपावली पर भारत के बही खाते में सुनहरी चमक के दर्शन: आलोक मेहता

आने वाले वर्ष में इसके कार्य देश के लिए अगले पांच वर्षों में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने और 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की नींव रख सकते हैं।

1 day ago

अमेरिकी चुनाव में धर्म की राजनीति: अनंत विजय

अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव प्रचार हो रहे हैं। डेमोक्रैट्स और रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवारों डोनाल्ड ट्रंप और कमला हैरिस के बीच बेहद कड़ा मुकाबला है।

1 day ago

मस्क के खिलाफ JIO व एयरटेल साथ-साथ, पढ़िए इस सप्ताह का 'हिसाब-किताब'

मुकेश अंबानी भी सेटेलाइट से इंटरनेट देना चाहते हैं लेकिन मस्क की कंपनी तो पहले से सर्विस दे रही है। अंबानी और मित्तल का कहना है कि मस्क को Star link के लिए स्पैक्ट्रम नीलामी में ख़रीदना चाहिए।

1 week ago


बड़ी खबरें

क्या ब्रॉडकास्टिंग बिल में देरी का मुख्य कारण OTT प्लेटफॉर्म्स की असहमति है?

विवादित 'ब्रॉडकास्टिंग सर्विसेज (रेगुलेशन) बिल' को लेकर देरी होती दिख रही है, क्योंकि सूचना-प्रसारण मंत्रालय को हितधारकों के बीच सहमति की कमी का सामना करना पड़ रहा है। 

17 hours ago

फ्लिपकार्ट ने विज्ञापनों से की 2023-24 में जबरदस्त कमाई

फ्लिपकार्ट इंटरनेट ने 2023-24 में विज्ञापन से लगभग 5000 करोड़ रुपये कमाए, जो पिछले साल के 3324.7 करोड़ रुपये से अधिक है।

17 hours ago

ZEE5 ने मनीष कालरा की भूमिका का किया विस्तार, सौंपी अब यह बड़ी जिम्मेदारी

मनीष को ऑनलाइन बिजनेस और मार्केटिंग क्षेत्र में 20 वर्षों का अनुभव है और उन्होंने Amazon, MakeMyTrip, HomeShop18, Dell, और Craftsvilla जैसी प्रमुख कंपनियों में नेतृत्वकारी भूमिकाएं निभाई हैं।

9 hours ago

विनियमित संस्थाओं को SEBI का अल्टीमेटम, फिनफ्लुएंसर्स से रहें दूर

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने भारत के वित्तीय प्रभावशाली व्यक्तित्वों, जिन्हें 'फिनफ्लुएंसर' कहा जाता है, पर कड़ी पकड़ बनाते हुए एक आदेश जारी किया है।

18 hours ago

डॉ. अनुराग बत्रा की मां श्रीमती ऊषा बत्रा को प्रार्थना सभा में दी गई भावभीनी श्रद्धांजलि

‘BW बिजनेसवर्ल्ड’ के चेयरमैन व एडिटर-इन-चीफ और ‘e4m’ ग्रुप के फाउंडर व चेयरमैन डॉ. अनुराग बत्रा की माताजी श्रीमती ऊषा बत्रा की याद में दिल्ली में 28 अक्टूबर को प्रार्थना सभा का आयोजन किया गया।

15 hours ago