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ये समय है जब टीवी देखने से मना करने वालों की साजिश समझिए!

देश के प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी हरसंभव कोशिश कर रहे थे कि दुनिया में...

समाचार4मीडिया ब्यूरो 5 years ago

हर्ष वर्धन त्रिपाठी
वरिष्ठ पत्रकार।।

देश के प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी हरसंभव कोशिश कर रहे थे कि दुनिया में भारत के संबंध ऐसे मजबूत हो जाएं कि किसी निर्णायक मौके पर भारत उससे हासिल ताकत का प्रभाव दुनिया को दिखा सके। उस समय भारत के बहुतेरे पत्रकार, बुद्धिजीवी वॉट्सऐप पर चुटकुले बढ़ा रहे थे। पूछ रहे थे कि मोदीजी देश में कभी रहा करो। सऊदी के शेखों से मिलने पर भी चुटकुले अच्छे बन पड़ रहे थे। आज साफ दिख रहा है कि विदेश नीति क्या होती है।

– संयुक्त राष्ट्र संघ ने बाकायदा पाकिस्तान के आतंकवादी संगठन जैश ए मोहम्मद की नाम के साथ निंदा की है। चीन भी उसे एक हफ्ते से ज्यादा रोक नहीं पाया।

– जब इमरान को सबसे ज्यादा जरूरत थी, चीन उसके साथ खड़ा नहीं हो सका क्योंकि भारत लगातार बातचीत के जरिए चीन पर दबाव बनाए हुए था।

– अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन मसूद अजहर पर प्रतिबंध का प्रस्ताव फिर से लेकर आए हैं।

– इस्लामिक देशों के संगठन में भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज आतंकवाद पर खरी-खोटी सुनाती रहीं और पाकिस्तान, पहले रोया-गिड़गिड़ाया कि भारत को इस मंच से मान्यता मत दो, मुस्लिम देशों के संगठन नहीं माने तो पाकिस्तान भाग खड़ा हुआ, भगोड़ा बन गया।

लेकिन इस सबसे क्या? यह सारा काम तो मोदी सरकार में हुआ है और मोदी विरोध उन पत्रकार, बुद्धिजीवियों का मूल है। 2014 की हार उन्हें अपनी हार लग रही है। कुछ ने 2014 के पहले सार्वजनिक चिट्ठी लिखकर मोदी को हराने की अपील की थी, कुछ 2014 के बाद से ही 2019 की लड़ाई लड़ने लगे हैं। मोदी विरोध में इतना नीचे गिर गए हैं कि अंधरा गए हैं, देश विरोध में जुट गए हैं। युद्ध जैसे हालात में दुश्मन देश के प्रधानमंत्री को महान बता रहे हैं। इनका कहा-बोला-लिखा, हेग न्यायालय में पाकिस्तान इस्तेमाल करता है। सीआरपीएफ जवानों की शहादत को भुलाकर इन्हीं पत्रकार, बुद्धिजीवियों का कहा-बोला-लिखा पाकिस्तान खुद को शांतिप्रिय राष्ट्र के तौर पर साबित करने में कर रहा है। इनका भी संकट पाकिस्तान से कम नहीं है। जैसे, पाकिस्तान का नेतृत्व, वहां के कट्टरपंथियों, आतंकवादियों, आईएसआई और सेना का बंधक है, वैसे ही इन पत्रकार, बुद्धिजीवियों की बुद्धि को इनके संघ-भाजपा विरोध ने बंधक बना रखा है। डर भी है कि अगर 2019 में नरेंद्र मोदी की सरकार आ गई तो इनका वजूद खत्म हो जाएगा।

कमजोर, डरे बुद्धिजीवी आजकल प्रवचन की मुद्रा में हैं। जिस टीवी ने उन्हें पहचान दी, उसी टीवी को न देखने का ज्ञान बांट रहे हैं, क्योंकि अब उनको टीवी पर लोग देखना नहीं चाहते। जिस टीवी पर दिखने की वजह से वे महान बने, जिस टीवी पर बोलने की वजह से देश-दुनिया में उनको बोलने के लिए बुलाया जाने लगा, देश के विश्वविद्यालयों में ज्ञान देने जाने, अगर उसी टीवी को लोकसभा चुनाव तक बंद करने की सलाह वे देने लगे हैं तो साजिश गंभीर है, खतरा भी गंभीर है। दरअसल, विचार की चाशनी में लपेटकर शब्दों की जुगाली का जवाब टीवी पर ही कर्कश स्वर में मिल रहा है। बरसों से मीठी चाशनी चूस रही जनता के मुंह में चाशनी का आवरण हटने के बाद का असली जहरीला कड़वा स्वाद आने लगा है। इतना जहर, चाशनी के भीतर था कि जनता कर्कश, कभी-कभी तो बेस्वाद कर देने वाला टीवी भी पसंद कर ले रही है। ट्विटर पर #GaddarList ट्रेंड कर रहा है।

नरेंद्र मोदी का विरोध करते देश विरोध की हद पार कर जाने वालों की सूची छापी जा रही है। बुरा लगता है, कोई, किसी को भी गद्दार कहे, लेकिन अभी पुलवामा की शहादत के कुछ समय बीतते ही इमरrनवा के गुणगान करने वाले कौन हैं? पाकिस्तानी टीवी पर केजरीवाल से लेकर सागरिका तक का बयान पाकिस्तान को अमनपसंद देश साबित करने के लिए इस्तेमाल हो रहा है। गद्दारी और क्या होती है? 2019 का चुनाव होने जा रहा है। खूब खबरें पढ़िए, टीवी देखिए। बल्कि ज्यादा देखिए क्योंकि जब कुछ पत्रकार, बुद्धिजीवी विरोध में इस हद तक जा चुके हैं कि पुलवामा की शहादत को राजनीतिक लाभ के लिए हुई घटना बता रहे हैं तो हर खबर ठीक से पढ़िए, देखिए। पाकिस्तान में बैठा जैश ए मोहम्मद, आतंकवादी हमले की जिम्मेदारी ले रहा है, लेकिन हमारे यहां के कुछ पत्रकार, बुद्धिजीवी भारतीय जनता पार्टी पर जिम्मेदारी डालने की साजिश रच रहे हैं, क्योंकि चुनाव आ गया है। साजिश गहरा रही है, देश में चुनाव आ गया है। लोकसभा चुनाव तक टीवी जमकर देखिए और अच्छा-बुरा खुद तय कीजिए। किसी बाबा टाइप प्रवचन करने वाले पत्रकार, बुद्धिजीवी की मत सुनिए, मेरी भी नहीं, लेकिन ऐसा आप तभी कर सकेंगे, जब सब कुछ देखेंगे, सुनेंगे और समझेंगे।

(ये लेखक के निजी विचार है)

 

 


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