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रवीश जी, रिसर्च पर ज्यादा ध्यान दीजिए, गलतियां कम होंगी

रवीश कुमार एक बेहतर पत्रकार हैं और उन्हें मुद्दों की गहराई में उतरना...

समाचार4मीडिया ब्यूरो 5 years ago

नीरज नैय्यर
युवा पत्रकार।।

रवीश कुमार एक बेहतर पत्रकार हैं और उन्हें मुद्दों की गहराई में उतरना आता है। यही वजह है कि जब वो किसी विषय को पकड़कर सरकार पर तीर दागना शुरू करते हैं, तो फिर कोई उनका हाथ नहीं पकड़ पाता। हालांकि, कभी-कभी तीर दागने की जल्दबाजी में वो गलतियां भी कर जाते हैं। गलती तो वैसे पत्रकारों से होती ही रहती है, लेकिन रवीश की गलती एकदम से इसलिए नज़र आ जाती है, क्योंकि उनका हर सवाल सरकार और उसकी नीतियों के विरुद्ध होता है। फ़िलहाल रवीश अपनी दो रिपोर्ट को लेकर सुर्ख़ियों में हैं या कहें कि विरोधियों के निशाने पर हैं। वैसे, ये बात अलग है कि विरोधियों ने इस बार रवीश की जिन गलतियों को रेखांकित किया है, उनमें काफी दम है। इससे कहीं न कहीं यह भी साबित होता है कि रवीश कुमार लिखने-बोलने से पहले पर्याप्त अध्ययन नहीं करते या फिर उन्हें सरकार को कठघरे में खड़ा करने का सिर्फ बहाना चाहिए।

सबसे पहले बात करते हैं पुलवामा हमले के बाद सामने आई एनडीटीवी के पत्रकार रवीश की रिपोर्ट की। इस रिपोर्ट में उन्होंने ‘शहादत’ का मुद्दा उठाया। रवीश ने कहा ‘हम और आप तो शहीद कहते हैं, लेकिन सरकार से पूछिए कि इन्हें शहीद क्यों नहीं कहती? पूर्ण सैनिक की तरह लड़कर भी ये अर्धसैनिक (सीआरपीएफ) हैं और जान देकर भी यह शहीद नहीं हैं। 11 जुलाई 2018 को सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में हलफनामा दिया था कि अर्धसैनिक बलों को शहीद का दर्जा नहीं दिया गया है। आप चैनल खोलकर देख लें कि कौन एंकर इनके हक़ की बात कर रहा है।’ रवीश की इस रिपोर्ट से ऐसा लगता है कि सरकार दूसरे सैनिकों यानी वीरगति प्राप्त करने वाले सेना के जवानों को शहीद मानती है और केवल अर्धसैनिकों के साथ उसका रवैया पक्षपातपूर्ण है। जबकि ऐसा नहीं है। ‘ऑपइंडिया’ में अभिषेक बनर्जी ने अपने लेख में यह बताया है कि कैसे रवीश कुमार लोगों को भ्रमित कर रहे हैं। बनर्जी के मुताबिक, सरकार आधिकारिक तौर पर किसी को भी शहीद नहीं मानती। फिर चाहे वह सेना के जवान हों या अर्धसैन्य बल के जवान।

अप्रैल 2015 में गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने संसद में अपने एक बयान में कहा था कि शहीद शब्द की कोई परिभाषा नहीं है। सशस्त्र सेना और रक्षा मंत्रालय ने इसकी कोई व्याख्या तय नहीं की है। रिजिजू ने 22 दिसंबर 2015 को लोकसभा में एक बार फिर कहा कि ‘भारतीय सशस्त्र सेनाओं यानी आर्मी, नेवी और एयरफोर्स में किसी तरह की केजुअल्टी के बाबत शहीद शब्द का प्रयोग नहीं किया जाता है। केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों जैसे सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, एसएसबी और असल रायफल्स के जवानों के जान गंवाने पर भी इस शब्द का इस्तेमाल नहीं होता है। लेकिन उनके परिजनों को सेवा शर्तों के मुताबिक पेंशन और क्षतिपूर्ति राशि दी जाती है।’ सीधे शब्दों में कहें तो सरकार वीरगति प्राप्त करने वाले किसी भी जवान को आधिकारिक तौर पर शहीद नहीं मानती, ये हम और आप जैसे लोगों द्वारा दिया गया एक शब्द है। रवीश को चाहिए था कि वो दोनों बातों का उल्लेख करते और फिर जनता को सोचने देते कि आखिर सरकार ऐसा क्यों नहीं करती मगर उन्होंने यह दर्शाने का प्रयास किया कि केवल अर्धसैनिक बलों के साथ ही ऐसा किया जा रहा है।

रवीश कुमार की दूसरी गलती को भी ‘ऑपइंडिया’ ने रेखांकित किया है। दरअसल, रवीश ने दैनिक जागरण में रुपए की ख़बर का हवाला देते हुए एक लेख लिखा था। इसके आधार पर उन्होंने यहां तक कह दिया था कि ‘हिंदी अख़बारों से सावधान रहें। इस पर विचार करें कि या तो हिंदी के अखबार बंद कर दें या हर महीने अख़बार बदल दें। आख़िर झूठ पढ़ने के लिए आप क्यों पैसा देना चाहते हैं? किसी दिन हॉकर के आने से पहले उठ जाइए और मना कर दीजिए। एक दिन जाग जाइए, बाकी दिनों के लिए अंधेरे से बच जाएंगे। हिंदी अख़बार हिंदी के पाठकों की हत्या कर रहे हैं। सावधान’! जबकि वो दो बातों पर गौर करना भूल गए। पहली ये कि जिस खबर को लेकर उन्होंने हिंदी अख़बारों पर झूठ फैलाने का आरोप लगाया, वो अंग्रेजी मीडिया में भी प्रमुखता से प्रकाशित हुई है। इसके अलावा, यह पूरी स्टोरी विशेषज्ञों के हवाले से लिखी गई है। विशेषज्ञों के मत को प्रकाशित करने को क्या झूठ या प्रोपेगेंडा फैलाना कहा जा सकता है? रवीश कुमार को इसका जवाब देना चाहिए।

मूल स्टोरी ब्लूमबर्ग में प्रकाशित हुई है और उसे दैनिक जागरण सहित देश के सभी महत्वपूर्ण अखबारों ने प्रकाशित किया है। बिजनेस स्टैंडर्ड में ”Rupee could weaken past 75 if Modi fails to win second term: Expert”, हेडलाइन के साथ। इसी तरह फाइनेंशियल एक्सप्रेस में ”Rupee vs Rupiah: Indonesian currency holds edge as polls near”, हेडलाइन के साथ। इसके अलावा ब्लूमबर्ग क्विंट में यह खबर छपी है।

हिंदी खबर में दो विशेषज्ञों के जरिए बात रखी गई है, जिसे हूबहू अंग्रेजी की मूल खबर में पढ़ा जा सकता है। लेकिन रवीश को यह बात समझ नहीं आई। पहला, सिंगापुर स्थित टॉरस वेल्थ एडवाइजर्स के कार्यकारी निदेशक रेनर माइकल प्रीस ने कहा, ‘रुपए (इंडोनेशियाई) के मुकाबले रुपया निवेशकों के लिए बेहतर रिस्क-रिवॉर्ड ऑफर कर रहा है। इंडोनेशिया के मामले में हमारी राय है कि वहां यदि यथास्थिति बनी रहती है, तो यह अच्छी बात होगी। दूसरी तरफ यदि मोदी दोबारा प्रधानमंत्री बनने में सफल नहीं हो पाते हैं तो लोग इसे नकारात्मक परिघटना मानेंगे, नतीजतन रुपए में भारी गिरावट आ सकती है।’ दूसरा, सिंगापुर स्थित आईएनजी ग्रुप एनवी के अर्थशास्त्री प्रकाश सकपाल का कहना है कि यदि मोदी एक बार फिर भारत के प्रधानमंत्री नहीं चुने जाते हैं तो ऐसी स्थिति में रुपया कमजोर होकर 75 प्रति यूएस डॉलर से भी नीचे आ सकता है’। मगर रवीश ने इन्हें नज़रंदाज़ कर दिया और ऐसा दिखाने का प्रयास किया जैसे अख़बार पीएम मोदी के समर्थन में खबर चला रहा है।

उन्होंने अपने लेख में आगे लिखा ‘कहीं इन बातों की आड़ में भ्रम फैला कर माहौल तो नहीं बना रहे हैं? इनका कहना है कि मोदी दोबारा नहीं चुने गए तो इंडोनेशिया की मुद्रा भारत के रुपए से आगे निकल जाएगी। लेकिन यह नहीं बताया कि भारत का रुपया किन मुद्राओं से पीछे है? क्यों इंडोनेशिया के रुपैया से ही अचानक तुलना करने लगे हैं? क्या डॉलर छोड़ अब हमें इंडोनेशिया के रुपए से होड़ करनी है’? कटाक्ष करने से पहले यदि रवीश थोड़ी सी रिसर्च कर लेते, तो उन्हें पता चल जाता कि भारत और इंडोनेशिया की मुद्राओं की तुलना क्यों की जा रही है। ब्लूमबर्ग की स्टोरी में साफ़ तौर पर जिक्र है कि एशिया की दो बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाएं (भारत और इंडोनेशिया) जल्द ही चुनाव का सामना करने जा रहीं हैं और सबसे बड़ा दांव इन दोनों देशों की मुद्राओं पर लगा हुआ है। इसके अलावा, जागरण की खबर में भी इसे शामिल किया गया है। कुल मिलाकर कहा जाए तो रवीश कुमार को हिंदी अख़बारों के साथ-साथ अंग्रेजी की वेबसाइट भी खंगाल लेनी चाहिए। यदि वो थोड़ा और समय रिसर्च में बिताएंगे, तो फिर शायद इस तरह की गलतियों को कम कर सकें। 

‘ऑपइंडिया’ के इन दोनों लेखों को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं-

https://hindi.opindia.com/fact-check/ravish-kumar-fake-news-about-rupees-vs-rupiah-and-modi-as-pm-in-2019/?fbclid=IwAR0T82xEux4gq7EC9L0cj3e_2PtbiGPs-NKHQ0oTUYyggLRezKvIj4CWPec

https://www.opindia.com/2019/02/how-ndtv-ravish-kumar-vinod-dua-misled-people-peddled-fake-news-about-martyr-status-to-crpf-jawans-after-pulwama-attack/

(ये लेखक के निजी विचार हैं।)


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