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'इन वजहों से ही लगातार आगे बढ़ रहा है प्रिंट मीडिया...'

प्रिंट इंडस्‍ट्री खत्‍म हो चुकी है और यह बात पिछले पांच...

समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago

एमवी श्रेयम्‍स कुमार

जॉइंट एमडी

मातृभूमि ग्रुप  


प्रिंट इंडस्‍ट्री खत्‍म हो चुकी है, यह बात पिछले पांच सालों में लगातार कई बार लिखी जा चुकी है। लेकिन ऑडिट ब्‍यूरो ऑफ सर्कुलेशन (Audit Bureau of Circulations) ने इस बात को चुनौती दी है कि देश में प्रिंट मीडिया खत्‍म हो चुकी है। ‘ABC’ द्वारा जारी किए गए डाटा में बताया गया है कि टेलिविजन और डिजिटल मीडिया से कड़ी चुनौती मिलने के बावजूद पिछले दस वर्षों में (20062016) अखबारों की 2.37 करोड़ कॉपियों में इजाफा हुआ है।


देश में प्रिंट की बढ़ोतरी के कई कारण रहे हैं। सबसे पहला कारण तो यह है कि पिछले दशक में भारत में साक्षरता की दर में इजाफा हुआ है। वर्ष 2001 में जहां यह 64.8  थी, वह 2011 में बढ़कर 74 प्रतिशत हो गई है।


दूसरा कारण यह है कि भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था ग्रामीण क्षेत्रों से बहुत प्रभावित होती है, क्‍योंकि अभी भी हमारे देश की 65 प्रतिशत आबादी ग्रामीण क्षेत्रों में रहती है। ग्रामीण क्षेत्र की जनसंख्‍या में काफी बदलाव दिखाई दे रहा है खासकर वहां, जहां पर भाषाई रीडरशिप अच्‍छी है। हिंदी, मराठी, उर्दू, गुजराती, मलयालम, तमिल और तेलुगु आदि में क्षेत्रों में, जहां पर पिछले पांच दशकों में सबसे ज्‍यादा कंज्‍यूमर ग्रुप प्रभावित हुआ है और इनकी आमदनी के साथ प्राथमिकताओं में भी बदलाव आया है।


इसके साथ ही प्रादेशिक अखबारों द्वारा स्‍थानीय भाषाओं की कवरेज को भी वरीयता दी गई है, जिससे लोगों को अपनी शिकायतों और अपेक्षाओं को गति देने में काफी बल मिला है। स्‍थानीयता के बढ़ते प्रभाव का ही परिणाम है कि अखबार मल्‍टीपल एडिशंस के साथ स्‍पलीमेंट्स भी निकाल रहे हैं।


इसके अलावा कीमतों की बात करें तो विदेशी अखबारों की तुलना में भारतीय अखबारों ने कीमत कम रखी हैं ताकि ज्‍यादा से ज्‍यादा रीडर्स को इससे जोड़ा जा सके। यह भारत में अखबारों के सबस्क्रिप्‍शन अमाउंट की बात करें तो यह 1000 रुपये वार्षिक से कम है जबकि विदेशों में यह लगभग 15 अमेरिकी डॉलर है।


जैसे-जैसे इंटरनेट का विस्तार बढ़ता है और तकनीकी प्रगति होती हैपारंपरिक प्रिंट प्लेयर भी इन परिवर्तनों के साथ प्रयोग कर रहे हैं और अखबार व डिजिटल में अपनी मौजूदगी बढ़ा रहे हैं। इसके अलावा अपने सर्कुलेशन रेवेन्‍यू को बनाए रखने के लिए प्रिंट मीडिया प्‍लेयर्स कई सक्रिय कदम उठा रहे हैं।

(यह लेखक के अपने विचार हैं)

 

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