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गोरखपुर की घटना पर रोहित सरदाना की खरी-खरी, नेताओं-मीडिया को दिखाया आइना...

पत्रकार रोहित सरदाना ने गौरखपुर में घटित दुखद घटना पर एक पोस्ट अपने फेसबुक पर लिखी है...

समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago

देश के अहम मुद्दे पर स्टैंड लेने वाले जी न्यूज के पत्रकार रोहित सरदाना ने गौरखपुर में घटित दुखद घटना पर एक पोस्ट अपने फेसबुक पर लिखी है, जिसे हम ज्यों का त्यों शेयर कर रहे हैं...

आज से पाँच- छः साल पहले का वाकया है। मैं Zee News Health Awards को होस्ट कर रहा था। ग़ुलाम नबी आज़ाद स्वास्थ्य मंत्री कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे। गोरखपुर का दौरा कर के लौटे थे। क्योंकि उस साल गोरखपुर में एन्सेफ़लायटिस से 400 से ज़्यादा बच्चे मर चुके थे। ग़ुलाम नबी आज़ाद ने गोरखपुर यात्रा का बड़ा मार्मिक वृत्तांत सुनाया। लगा कि जब स्वास्थ्य मंत्री इतना चिंतित है तो इस बार तो ये बुखार निपट ही जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

कल ग़ुलाम नबी आज़ाद एक बार फिर गोरखपुर में थे। इस बार पूर्व स्वास्थ्य मंत्री और विपक्ष के नेता के तौर पर। तीस बच्चों की मौत पे सरकार से इस्तीफ़ा माँग रहे थे।

लेकिन बच्चों के मरने पे कौन इस्तीफ़े देता है? कम से कम गोरखपुर के बच्चों के मरने पे तो कोई नहीं देता!

बच्चों के मरने पे इस्तीफ़े होते तो 1978 से शुरू हुआ ये मौत का खेल अब तक बंद हो गया होता। एक अनुमान के मुताबिक़, गोरखपुर में पिछले चार दशक में 25000 बच्चों की जान एन्सेफ़लायटिस की वजह से गयी है। और ये सरकारी आँकड़ा है। ग़ैर सरकारी आँकड़े तो कहते हैं 50,000 से ज़्यादा बच्चे अस्पताल पहुँचने के पहले ही दम तोड़ गए।

साल 2005 में इसी गोरखपुर ने 1000 से ज़्यादा बच्चों की मौत देखी। योगी आदित्यनाथ तब सांसद थे। आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। एन्सेफ़लायटिस तब भी था, एन्सेफ़लायटिस आज भी है। पाँच बार सांसद बन के तो वो गोरखपुर को इस बुखार से बचा नहीं पाए, भगवान करे अब की बार कुछ उपाय निकाल पाएँ। पर बच्चों की मौत पे झूठ बोल देने वाले अफ़सरों/मंत्रियों के रहते ऐसा हो सकेगा?

ग़लती हम मीडिया वाले भी करते हैं। बच्चे मरते हैं तो फ़ौरन छतरियां और कैमरा तान देते हैं। साल भर कभी गोरखपुर, गोंडा का मुँह नहीं करते कि इतने गंदे शहर में कौन जाएगा!

ना उस तंत्र की पोल खोलते हैं जो ऑक्सिजन के सिलेंडर के लिए भी कमीशन खाता है, ना उस व्यवस्था की जो काग़ज़ों पे सफ़ाई अभियान चला के फ़ोटो खिंचवाती है और ना उस समाज को शर्मिंदा करते हैं जो दो महीने बच्चों की लाशें ढो के भी बाक़ी के दस महीने ख़ुद लाश बना रहता है।

असल में हमारी सरकारों, राजनीतिक पार्टियों, अफ़सरशाही, हम सबको एक क़िस्म का दिमाग़ी एन्सेफ़लायटिस है। लेकिन इस एन्सेफ़लायटिस से ना भ्रष्टाचार मरता है, ना लापरवाही, ना बेशर्मी! इससे सिर्फ़ बच्चे मरते हैं। और वो भी मरने बाद वोट में तब्दील हो जाते हैं!

 

 


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