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जाना तेजिंदर का ‘गगन’ में...
तेजिंदर गगन, यह नाम किसी के लिए कथाकार के रूप में हो सकता है...
समाचार4मीडिया ब्यूरो 6 years ago
मनोज कुमार
वरिष्ठ पत्रकार व संपादक, ‘समागम’ पत्रिका ।।
तेजिंदर गगन, यह नाम किसी के लिए कथाकार के रूप में हो सकता है तो कोई उन्हें आकाशवाणी-दूरदर्शन के कामयाब अधिकारी के रूप में उल्लेखित कर सकता है लेकिन मेरे लिए यह नाम बहुत मायने रखता है। इसलिए नहीं कि वे साहित्य और मीडिया से संबद्ध थे बल्कि इसलिए कि मैं उन्हें बचपन से उसी तरह देखता आ रहा हूं जैसा कि पिछले हफ्ते उनसे फोन पर हुई बातचीत में।
तेजिंदर भाईसाहब, मेरे बड़े भैय्या, लियाकत भैय्या, आसिफ इकबाल भाई साहब, लीलाधर मंडलोई और इन लोगों की टीम के लिए मैं कभी बड़ा हुआ ही नहीं। हमेशा छोटा भाई बना रहा। खैर, पत्रकार के रूप में तो क्या मैं इन महारथियों के सामने खड़ा हो पाता लेकिन जो स्नेह, जो संबल और जो साहस इन लोगों से मिला और मिलता रहता है, वही मेरी ताकत है। इनमें से कभी किसी ने सीधे मुझे ना कुछ कहा और ना सिखाया लेकिन गलती पर कान खींचने में देरी नहीं की।
तेजिंदर भाईसाहब के अचानक चले जाने से मन उदास हो गया है। यह शायद नहीं होता अगर एक सप्ताह पहले उनका फोन नहीं आता। मेरे मोबाइल पर घंटी बजती है और दूसरी तरफ से आवाज आती है-मनोज? आने वाला मोबाइल नम्बर अनजाना था, सो आदतन जी, बोल रहा हूं। मैं तेजिंदर.. इतना सुनते ही मैं बल्लियों उछल पड़ा। समझ में ही नहीं आ रहा था कि कैसे रिएक्ट करूं। प्रणाम के जवाब में आशीर्वाद मिला और वे बिना रुके करीब 20 मिनट बोलते रहे। अच्छा काम कर रहे हो। खूब मेहनत से ‘समागम’ का प्रकाशन कर रहे हो। एकदम नई दृष्टि के साथ। विषयों का चयन उत्तम है। आदि-अनादि और भी बहुत सारी बातें कहते रहे। कानों में जैसे शहद घुल रहा था। अपनी तारीफ भला किसे अच्छी नहीं लगती है? मुझे भी अच्छा लग रहा था। बरबस मैं बीच में बोल पड़ा आप लोगों ने जो सिखाया, बस, उसे ही आगे बढ़ाने का काम कर रहा हूं।
उन्होंने मुझे टोकते हुए कहा- इसमें हम लोगों ने कुछ नहीं किया.. सब तुम्हारी मेहनत है। वे ‘समागम’ के बालकवि बैरागी अंक के बारे में बात कर रहे थे। वे कहते रहे कि कई दिनों से तुम्हें फोन करने का मन था लेकिन टल जा रहा था.. आज यह अंक देखकर रोक नहीं पाया.. हां, ये मेरा नंबर है..सेव कर ले... रायपुर कब आ रहा है? मिलकर जाना। जवाब में मैंने कहा था कि जुलाई में आने का प्रोग्राम है, आकर आपसे मिलता हूं। लेकिन ये कहां तय था कि उनसे नहीं.. उनकी यादों से मुलाकात होगी। तेजिंदर भाईसाहब ये तो तय नहीं था। आप लोगों से कभी बोलने की हिम्मत नहीं होती है लेकिन आज तो शिकायत है। ऐेसे कैसे जा सकते हैं.. पर क्या करें... नियति का लेखा है.. दुख इस बात का है कि अभी प्रभाकर सर, गोविंदलाल जी भाईसाहब, केयूर भूषण और अब ...ईश्वर मुझे शक्ति दे।
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