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वरिष्ठ पत्रकार निर्मलेन्दु के कीबोर्ड से: देखो मैं तो गांधी बन गया...
निर्मलेंदु एग्जिक्यूटिव एडिटर राष्ट्रीय उजाला ।। साला मैं तो साब बन गया साब बन के कैसे तन गया
समाचार4मीडिया ब्यूरो 7 years ago
निर्मलेंदु
एग्जिक्यूटिव एडिटर
राष्ट्रीय उजाला ।।
साला मैं तो साब बन गया
साब बन के कैसे तन गया
यह सूट मेरा देखो, यह बूट मेरा देखो
जैसे गोरा कोई लंदन का
इसी गीत के तर्ज पर मुझे लगता है कि पीएम मोदी पर यह पैरोडी गीत खूब जंचेगा...
देखो मैं तो गांधी बन गया
गांधी बनके सूत कात गया
यह सूत काटना देखो, यह चरखा चलाना देखो
जैसे गांधी यहां स्वयं आ गया
दरअसल, यह गीत दिलीप कुमार की फिल्म गोपी का है। मजरूह सुल्तानपुरी साब ने इस गीत को लिखा था। यह फिल्म गोपी का हिट गीत था। चारों ओर मोदी के चर्खे की चर्चा चल रही है। कोई विरोध कर रहा है, तो कोई सरेआम कह रहा है कि गांधी को कैश करने में हर्ज ही क्या है?
मैं पूछना चाहता हूं कि क्या मोदी के केवल चरखा काटने भर से दुनिया गांधी को भूल जाएगी, या हमें डर इस बात का है कि कहीं मोदी गांधी की जगह न ले ले। दरअसल, हुआ यह कि खादी ग्रामोद्योग के नए साल के कैलेंडर में पीएम मोदी की तस्वीर पर विवाद तब शुरू हुआ, जब लोगों ने देखा कि खादी ग्रामोद्योग के कैलेंडर में चरखा चलाते हुए प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर छपी है। बस क्या था विरोध शुरू, क्योंकि विरोध करना तो हम भारतीयों का जन्मसिद्ध अधिकार है।
अरे भइया, जो गांधी जी को जानता है, उसे इस बात का अहसास हो गया होगा कि मोदी जी गांधी नहीं बन सकते। कॉमेडी और ट्रैजेडी किंग दिलीप कुमार की नकल करके राजेंद्र कुमार से लेकर अमिताभ बच्चन और उसके बाद शाहरुख खान ने भी अपनी ऐक्टिंग की दुकान चलाई। सबकी दुकान इतनी चली कि सब राज कर रहे हैं। कोई बिग बी बन गया, तो कोई बादशाह बन गया, लेकिन क्या ये ऐक्टर दिलीप कुमार बन पाए? दिलीप कुमार ने एक बार एक विज्ञापन वाले को यह कह कर लौटा दिया था कि वह ऐक्टर हैं, भाड़ नहीं। आज भी दिलीप साहब की इंडस्ट्री में इतनी इज्जत होती है, कि नये ऐक्टर सोच ही नहीं सकते।
हम जब बचपन में स्कूल के दिनों में नाटकों में गांधी का रोल किया करते थे, तो क्या हम गांधी बन गये? गांधी बनने के लिए हमें गांधी के विचारों को अपनाना होगा। गांधी जी ने लिखा था कि लगातार पवित्र विचार करते रहें, क्योंकि बुरे संस्कारों को दबाने के लिए एक मात्र समाधान यही है। अब सवाल यह उठता है कि क्या हम बुरे संस्कारों को त्याग पाते हैं। हम राजनीति करते हैं और एक दूसरे की बुराइयों को ढूंढते रहते हैं, क्या हम दूसरों की अच्छाइयों को बता पाते हैं? हमें यह याद रखना होगा कि फूलों की सुगंध केवल वायु की दिशा में फैलती है, लेकिन एक व्यक्ति की अच्छाई हर दिशा में फैलती है। क्या हम गांधी के इस विचार को अपना पाए।
क्या हम गांधी के पांच दर्शन के मर्म को समझते हैं। उन्होंने कहा था कि जो बदलाव दुनिया में देखना चाहते हैं, सबसे पहले उसे खुद पर लागू करना होगा। लेकिन मोदी जी के नोटबंदी के फैसले के कारण जनता परेशान हो गई। गांधी जी ने कहा था कि इंसानियत में भरोसा रखें। इंसानियत सागर है। कुछ बूंदें सूख भी जाएं, तो सागर नहीं सूखता। क्या मोदी जी ने इंसानियत दिखाई। जो लोग नोटबंदी के कारण स्वर्ग सिधार गये, उनके बारे में क्या उन्होंने एक बार भी सोचा। क्या उन्होंने कोई बयान उन लोगों को लेकर दिया, जो परेशान हुए, या परलोक सिधार गये। या फिर जिनके घर में शादी नहीं हुई, क्या मोदी जी ने कभी उनके बारे में कुछ बताया।
सच तो यही है कि यदि आंख के बदले आंख मांगने लगेंगे, तो पूरी दुनिया ही अंधी हो जाएगी। मेरा मानना यही है कि हर एक व्यक्ति में प्रतिभा है। लेकिन यदि हम किसी मछली को उसकी पेड़ पर चढ़ने की योग्यता से आंकेंगे, तो वह अपनी पूरी जिन्दगी यह सोच कर बिता देगी कि वह मूर्ख है। हमें अगर गांधी बनना है, तो उनके विचारों को अपनाना होगा। फैंसी ड्रेस पहनकर, चरखा चलाकर, कैलंडर में फोटो छपवाने से कोई गांधी नहीं बन जाता। दरअसल, हमें ऐसी शिक्षा चाहिए, जिससे चरित्र का निर्माण हो, मन की शक्ति बढ़े, बुद्धि का विकास हो और मनुष्य अपने पैरों पर खड़ा हो सके। लेकिन दुख की बात तो यह है कि भारत जैसे महानतम देश के पीएम से हमारे बच्चे यह सीख नहीं पाते।
हमें यह समझना होगा कि कुएं में उतरने वाली बाल्टी यदि झुकती है, तो भर कर ही बाहर आती है। जीवन का भी यही गणित है जो झुकता है वह प्राप्त करता है। दादागिरि तो हम मरने के बाद भी करेंगे, लोग पैदल चलेंगे और हम कंधों पर।
स्वामी विवकानंद ने कहा है कि जिस इंसान के कर्म अच्छे होते हैं, उसके जीवन में कभी अंधेरा नहीं होता..! वह जो हमारे चिंतन में रहता है, वह करीब है, भले ही वास्तविकता में वह बहुत दूर ही क्यों ना हो; लेकिन जो हमारे हृदय में नहीं है, वह करीब होते हुए भी बहुत दूर होता है।
जो मनुष्य अपने क्रोध को अपने ही ऊपर झेल लेता है, वह दूसरों के क्रोध से बच जाता है। यहां हम जनता के क्रोध की बात कर रहे हैं, जो कि नोटबंदी के बाद घर में बेरोजगारी के कारण मोदी को कोस रहे हैं। क्या मोदी उनका सामना कर सकते हैं? जीवन में दो ही व्यक्ति असफल होते हैं। पहले वे जो सोचते हैं, पर करते नहीं, दूसरे वे जो करते हैं, पर सोचते नहीं। हां, इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे पीएम सोचते भी हैं, दिमाग भी लगाते हैं और करते भी हैं। सर्जिकल स्ट्राइक करवा दी, भले ही हमारे 100 से ज्यादा जवान शहीद हो गये हों। नोटबंदी करवा दी, भले ही हमारे 120 लोगों की बलि चढ़ी हो। वे तो पीएम हैं, सर्वज्ञाता हैं, सब कुछ कर सकते हैँ। उनके पास पॉवर है, सेना है, हुक्म बजाने वाले नौकरशाह हैं, इसलिए वे कुछ भी कर सकते हैं।
हमारे देश में दो तरह के लोग होते हैं - एक वे जो काम करते हैं और दूसरे वे, जो सिर्फ क्रेडिट लेने की सोचते हैं। मोदी जी हर काम में के्रडिट लेने की सोचते हैं, तो इसमें विरोध क्यों? अमिताभ बच्चन ने भी अपने सह कलाकारों को कभी क्रेडिट नहीं दिया। यह हम नहीं, ऋषि कपूर कह रहे हैं। लेकिन देखिए, आमिर खान ऐसा नहीं करते। वे अपने सभी साथियों को पूरा का पूरा क्रेडिट देते हैं। खैर, हमारा लेख भटक गया। नोटबंदी के कारण और लाइनों में लग कर रात रात भर कैश उठाने के चक्कर में दिमाग का दही हो गया है। बस बात यह हो रही है कि अगर मोदी जी ने चरखा काट ही लिया, तो इसमें हाय हल्ला मचाने की जरूरत क्या है। हम भी चरखा कात सकते हैं। घर में बैठे आप भी चरखा कातते हुए फोटो खींचवा सकते हैं। फेसबुक, ट्विटर पर उसकी प्रदर्शनी कर सकते हैं। हर्ज क्या है दोस्तों। बात का बतंगर न बनाएं, क्योंकि हर व्यक्ति की अपनी इमेज होती है, हर व्यक्ति के विचार अलग होते हैं, केवल नकल करने से अगर कोई गांधी बन जाता, तो ऐसे गांधी की हमें जरूरत नहीं।
दरअसल, बड़प्पन पीएम के पद में नहीं, ईमानदारी और सज्जनता में सन्निहित है। अगर श्रद्धा से किसी का किसी के सामने सिर झुक जाए, तो वहीं पर उस व्यक्ति की जीत हो जाती है। गांधी जी के सामने श्रद्धा से हमारा मस्तष्क झुक जाता है और भविष्य में भी झुकता रहेगा। यही गांधी जी की उपलब्धि है। उन्होंने जो देश को दिया, वह एक असाधारण व्यक्ति ही दे सकता है। असाधारण, अद्भुत, अकल्पनीय व्यक्त्वि है गांधी का। क्या हम अपने गाल पर चांटा खा सकते हैं, पहीं न, लेकिन गांधी खाते थे। बस यही है गांधी। हमारे पीएम परिश्रमी हैं, लेकिन गरीबों के लिए परिश्रम नहीं करते। अमीरों के लिए उन्होंने धर्म खाता खोल कर रखा है। लेकिन गांधी जी गरीबों के लिए मसीहा थे। उन्होंने अमीर अंगे्रजों को भगाकर देश को जनता के हवाले कर दिया। शायद जाते जाते वह कह गये होंगे -- अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों। किसी ने खूब लिखा है ...
वक़्त सबको मिलता है।
जिन्दगी बदलने के लिए।।
पर जिन्दगी दोबारा नहीं मिलती।
वक़्त बदलने के लिए।।
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