पत्रकारिता के इतिहास में हमें पढ़ाया और बताया जाता है कि पत्रकारिता सोसायटी के लिए ‘वॉच डॉग’ की भूमिका में है लेकिन बदलते समय में अब सोसायटी पत्रकारिता के लिए ‘वॉच डॉग’ की भूमिका में आ गया है।
शुरुआती दौर में रेडियो सामान्य दिनचर्या का एक हिस्सा बना हुआ रहता था, वहीं देश और दुनिया से जोड़े रखने का भी यही एक माध्यम था। मोबाइल का दौर आया और रेडियो बाजार से गायब हो गए।
इस मौके पर वरिष्ठ प्राध्यापक व कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. मानसिंह परमार तथा पत्रिका 'समागम' के संपादक मनोज कुमार भी मौजूद थे।
पत्रकारिता और मीडिया के मध्य की लक्ष्मण रेखा सिमट गई। पत्रकारिता समाज का आईना था, तो मीडिया समाज का न्यायाधीश बना हुआ है।
आज भी सवालों को उठाने वाली पत्रकारिता की धमक अलग से दिख जाती है, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि हम सवालों से किनारा कर गए।
‘मन की बात’ के जरिये ऑल इंडिया रेडियो का कायाकल्प हो गया। रेडियो के राजस्व में जितनी बढ़ोत्तरी ‘मन की बात’ कार्यक्रम के माध्यम से हुई, वह अब तक के रिकॉर्ड को ध्वस्त करने वाला है।
2022 में सबसे ज्यादा विश्वसनीय बनकर उभरा तो प्रिंट मीडिया। प्रिंट मीडिया में भी अखबारों की भूमिका संजीदा रही।
हिन्दुस्तान अपनी आजादी के 75वें वर्ष का उत्सव मना रहा है। साल के हिसाब से देखें तो 75वां वर्ष उम्रदराज होने का संदेश देता है
किसी भी समाज की मजबूत नींव उसकी शिक्षा व्यवस्था से होती है। खासतौर पर प्राथमिक शिक्षा में क्या पढ़ाया जा रहा है, यह भविष्य को तय करता है।
किसी व्यक्ति के नहीं रहने पर आमतौर पर महसूस किया जाता है कि वो होते तो यह होता...