ऐसे चुपचाप अचानक चले जाएंगे-सोचा भी नहीं था। उमर भी नहीं थी। पर कोविड काल के बाद कुछ ऐसा हो गया है कि कब काल किसको झपट्टा मारकर उठा ले, कहा नहीं जा सकता।
उन दिनों सारे हिन्दुस्तान में खुशी की लहर ने लोगों के दिलों को भिगोना शुरू कर दिया था...
‘न्यूजक्लिक’ पर सरकारी एजेंसियों की कार्रवाई और उसके पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार के विरोध में देश के तमाम पत्रकार संघों ने सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई चंद्रचूड़ को चिठ्ठी लिखी है।
जस्टिन ट्रुडो के पिता भी प्रधानमंत्री रह चुके हैं। उनके कार्यकाल में ख़ालिस्तानी उग्रवादी संगठनों को पनाह दी जाती रही।
एक सप्ताह से चुप था। कुछ टीवी न्यूज एंकरों पर विपक्षी गठबंधन ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस' (I.N.D.I.A) ने अपनी ओर से जो पाबंदी लगाई हैं, उसका प्रबंधन और संपादकों पर असर देखना चाहता था।
सरकारी मदद पर होने वाले कागजी सम्मेलनों में छाती पीटने से कुछ नहीं होगा। अपना घर ठीक कीजिए-हिंदी आपको दुआएं देगी।
‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ' इंडिया’ भारत के संपादकों की सर्वोच्च सम्मानित संस्था है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गिल्ड के सदस्य अपने प्रोफेशनल काम तथा गंभीरता के कारण पहचाने जाते हैं।
तात्पर्य यह कि लोकतंत्र की सर्वोच्च पंचायत की गरिमा बनाए रखने के लिए सदन की सभी बैंचों से प्रयास किए गए तभी संसद शान से काम कर पाई।
.छतरपुर जिले से एक पत्रकार के सिर पर पेशाब करने का शर्मनाक वाकया सामने आ गया। इस मामले का आरोपी सत्ताधारी दल का नेता नहीं, बल्कि एक पुलिस अफसर है।
महात्मा गांधी ने आठ अगस्त 1942 को मुंबई के गवालिया मैदान में करो या मरो का नारा दिया। उसी रात वे गिरफ्तार कर लिए गए।